चीन की कथनी और करनी
ऑपरेशन सिंदूर के तहत जब भारत ने पहलगाम में हुए रक्तपात (बेरहम और नृशंस) के बाद आतंकी ठिकानों पर हमला किया जो पाकिस्तान में मौजूद थे, तब ज़ाहिर तौर पर चीन ने पाकिस्तान की मदद की थी जिसका धन्यवाद पाकिस्तान ने भी किया। लेकिन आज के राजनीतिक संबंधों की स्थायी दुश्मनी या स्थायी मित्रता होती नहीं। इसी तज़र् पर इन चार दिनों के युद्ध के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चला लेकिन वह अधिक मुखर नहीं हुआ। बदले हुए दिनों में भारत-चीन के संबंधों में सुधार देखा गया जिसे पत्रकार की भाषा में ‘री सैट’ कहा जाने लगा है।
कुछ दिन पहले भारत ने फिर से चीन के नागरिकों को टूरिस्ट वीज़ा देना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, एक भारतीय मैन्यूफैक्चरर और चीन की एक बड़ी टेक फर्म के बीच संयुक्त उपक्रम को मंजूरी भी दे दी गई। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद दोनों देशों के लोगों और कारोबारियों के आपसी संबंध फिर से सक्रिय होने लगे हैं। सुर बदले हुए नज़र आये हैं। चीज़ें जो बिखराव के आस-पास थीं, आहिस्ता-आहिस्ता सामान्य होने लगी हैं, परन्तु इतनी जल्दबाज़ी भी ठीक नहीं लगती, जो जटिल संबंधों का सवाल है वे तो अपनी जगह हैं। जितनी जल्दी कारोबारी या राजनीतिज्ञ बदलते हैं, उतनी जल्दी जनता का मन नहीं बदलता। फिर सवाल उठता है कि क्या यह राजनीतिक व्यवहारिकता है या जोखिम से भरा एक अतिविश्वासी कदम? पहले देखना होगा कि क्या-क्या बदला है? टूरिस्ट वीज़ा की बात? लगभग पांच साल पहले भारत ने चीन से आने वाले पर्यटकों के लिए ‘मना’ की तख्ती लगा दी थी। पहले कोविड वजह थी, जो स्वाभाविक थी, फिर गलवान घाटी का संघर्ष। अत: यह रास्ता बंद है की तख्ती हटा ली गई है। 2019 का रिकार्ड बताता है कि 3.40 लाख से ज्यादा चीनी पर्यटक भारत आये थे। पुन: ऐसी ही उम्मीद की जा रही है। ज़ाहिर-सी बात है कि यह बड़ा कदम है लेकिन कूटनीतिक तौर पर और भी बड़ा माना जा रहा है क्योंकि भारत ने चीन से कहा है कि हम संबंधों को पहले जैसा बनाने को तैयार हैं।
भारत की डिक्सन टैक्नोलाजी और चीन की लॉन्गचियर टैक्नोलाजी के बीच एक नये संयुक्त उद्यम की स्थापना जैसा बड़ा कदम उठाया गया है। डिक्सन भारत के प्रमुख अनुबंध आधारित मैन्यूफैक्चरर में से है जो सैमसंग और शओमी जैसी वैश्विक कम्पनियों की आपूर्ति करता है। लॉन्गचियर चीन की एक फर्म है जो स्मार्टफोन, टैबलेट और स्मार्ट डिवाइस को डिज़ाइन करती है। दोनों का यह मिश्रित एडवेंचर भारत में फोन से लेकर कार कंसोल तक सब कुछ निर्मित करेगा। एक बात और महत्त्वपूर्ण है कि इस संयुक्त उपक्रम में डिक्सन की हिस्सेदारी 74 प्रतिशत रहेगी और लॉन्गचियर की मात्र 26 प्रतिशत रहेगी, जिससे साफ पता चलता है कि यह संयुक्त कार्यक्रम भारत की शर्तों का निर्वाह कहा जा सकता है। जिससे भारत की तकनीकी नौकरियों में कुछ अधिक और सम्भावित लाभ की गुंजाइश है, लेकिन जोखिम की साइड भी देख लेनी चाहिए। वह भी उतना ही है। ऊपर से जो कुछ जितना कुछ पाजिटिव लगता है, चीन के होते हुए वह उतना ही नेगेटिव हो सकता है।
सीमा विवाद अभी तक सुलझा नहीं है। भारत की आपत्ति के बावजूद चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बड़ा बांध बना रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत जब भारत अपने आत्म-सम्मान की लड़ाई लड़ रहा था, चीन ने पाकिस्तान को खुफिया जानकारी और हथियार देकर पाकिस्तान की मदद की थी।