अपने पांवों पर खड़े होने का यत्न
आज दुनिया बड़ी तेज़ी से बदलती दिखाई दे रही है। इज़रायल-हमास युद्ध तथा रूस एवं यूक्रेन यूद्ध ने समूचे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चिन्ता में डाल दिया है। इसके साथ ही अमरीका के इसी वर्ष चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीका को भिन्न-भिन्न देशों की ओर से किये जाने वाले निर्यात पर अधिक टैक्स लगाने की अपनी ओर से की गई घोषणाओं को क्रियात्मक रूप देना शुरू कर दिया है। भारत पर भी 25 प्रतिशत टैक्स लगाने की घोषणा के साथ ही ट्रम्प ने यह भी धमकी दी है कि वह रूस से तेल न खरीदे, नहीं तो उसे और भी जुर्माना देना पड़ेगा। इस घोषणा के बाद समाचार ये भी आए थे कि भारतीय तेल कम्पनियों ने रूस से कम तेल आयात करने की योजना बनाई है, परन्तु उसके बाद सरकारी प्रवक्ता ने इन समाचारों को निराधार बताते हुए स्पष्ट रूप में यह कहा कि भारत रूस से तेल पहले की तरह ही आयात करता रहेगा।
जहां तक रूस का संबंध है, भारत के साथ इसके चिरकाल पुराने रिश्ते ही नहीं, अपितु बहुत-से क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर सहयोग भी बना रहा है। भारत की ओर से इसका साथ दशकों से परखा हुआ है। इसके साथ ही विगत दिवस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सभा में बोलते हुए पुन: इस बात को दोहराया है कि देश को स्वदेशी उत्पादन पर ज़ोर देना चाहिए। कभी समय था कि जब भारत गेहूं तक अमरीका तथा अन्य देशों से मंगवाने के लिए मजबूर था। यह भी कि अपनी डगमगाती अर्थ-व्यवस्था के दृष्टिगत इसने अपने सोने के भंडार भी गिरवी रखने शुरू कर दिये थे, परन्तु आज भारत विश्व की एक बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन चुका है। इसके साथ ही इसने अनेक क्षेत्रों में अपने उत्पादन में भी वृद्धि की है। चीन तथा जापान का उदाहरण हमारे सामने है। उन्होंने अपने देश में बनी वस्तुओं की धाक विश्व भर में जमाई हुई है। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है। इसके युवाओं को रोज़गार देने के लिए लघु औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहन देने की भी ज़रूरत है। चीन ने भी ऐसा ही तजुर्बा किया था, जिसमें उसे व्यापक स्तर पर सफलता प्राप्त हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता सम्भालते ही ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया था जिसे हर हाल में क्रियात्मक रूप में सफल बनाने की ज़रूरत है। जहां तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक संबंधों का मामला है, भारत ने अब तक अमरीका के साथ इन संबंधों पर विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श किया है, परन्तु उसने कृषि उत्पाद तथा लघु उद्योगों द्वारा तैयार किये जाने वाले सामान के क्षेत्रों को अमरीकी उत्पादनों के लिए खोलने से इन्कार कर दिया है। भारत इन क्षेत्रों को अमरीकी व्यापार समझौते से अलग रखने के लिए यत्न कर रहा है। अब तक अपने इस यत्न में वह सफल भी रहा है।
आज विश्व भर के अधिकतर देश अमरीका की आर्थिक नीतियों से परेशान दिखाई देते हैं, जिस कारण वे अमरीका के बजाय व्यापारिक आदान-प्रदान के लिए अन्य देशों से समझौते कर रहे हैं। इसी समय भारत ने भी ब्रिटेन से व्यापारिक समझौता को सम्पन्न किया है और यूरोपियन यूनियन के देशों से भी वह व्यापार समझौते के लिए पहल के आधार पर बातचीत कर रहा है। अब देश उस पड़ाव पर अवश्य पहुंच चुका है, जहां उसे अपनी व्यापारिक तथा आर्थिक प्राथमिकताओं का ऐसी चयन करना होगा, जो इसकी अर्थ-व्यवस्था को संबल देने के साथ सीढ़ी दर सीढ़ी ऊंचाई की मंज़िलें तय करने में सहायक हों। पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से ही भारत ने अपनी विदेश नीति को निष्पक्ष तथा संतुलित रखने का लगातार यत्न किया है। ऐसी नीति ही उससे मान-सम्मान में वृद्धि करने में सहायक हो सकेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द