जिसका दोस्त अमरीका जैसा हो, उसे दुश्मन की क्या ज़रूरत
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प शांति का नोबल पुरस्कार लेने की फिराक में तो ज़रूर हैं, परन्तु उनके फैसलों व बयानों से यही नज़र आ रहा है। गोया, उन्होंने पूरे विश्व को अशांत व विचलित करने का ठेका ले रखा है। चूँकि वह स्वयं एक व्यवसायी पृष्ठभूमि से सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए उनके अनेक फैसलों व बयानों में व्यवसायिकता का भाव साफ देखने को मिलता है। इत्तेफाक से यही डोनाल्ड ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल के दौरान झूठ बोलने व भ्रामक दावे करने का भी कीर्तिमान बना चुके हैं। अमरीकी प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ के मुताबिक ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में कुल 30,573 झूठे या भ्रामक दावे किए थे यानी उन्होंने औसतन प्रतिदिन लगभग 21 झूठे दावे किए थे। 2021 में राष्ट्रपति भवन से उनकी विदाई कितनी हिंसक व शर्मनाक थी, यह भी दुनिया ने देखा था। बहरहाल उनकी दक्षिणपंथी सोच के चलते एक बार फिर अमरीकी जनता ने उन्हें निर्वाचित कर लिया है, परन्तु इस बार वे कुछ अलग ही भूमिका में नज़र आ रहे हैं। जहां वह विश्व शांति दूत बनने की फिराक में युद्धरत देशों के बीच ‘युद्ध विराम’ करने वाले एक महान शांतिप्रिय नेता के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाह रहे हैं वहीं अपनी व्यवसायिक मानसिकता के कारण वे युद्धग्रस्त देशों को शस्त्रों की आपूर्ति करने में भी पीछे नहीं हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने इस दूसरे कार्यकाल में ‘टैरिफ बम’ फोड़ कर भी अनेक देशों को विचलित कर दिया है।
समाचारों के अनुसार राष्ट्रपति ट्रम्प अब तक 92 देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर चुके हैं जो संभवत: 7 अगस्त, 2025 से लागू होंगे। विभिन्न देशों पर अलग-अलग कारणों से टैरिफ लगाने के अतरिक्त इसी सन्दर्भ में पिछले दिनों उन्होंने भारत व रूस को लेकर जो गैर- ज़िम्मेदाराना बयान दिए, वे पूरी तरह असत्य व असभ्य थे। राष्ट्रपति ट्रम्प ने गत 30 जुलाई को सोशल मीडिया पर भारत और रूस की अर्थव्यवस्थाओं को ‘मृत अर्थव्यवस्था’ कह डाला। उन्होंने भारत से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ और रूस से तेल व सैन्य उपकरणों की खरीद के लिए भारत पर अतिरिक्त जुर्माना लगाने तक की घोषणा कर दी। ट्रम्प की सोच है कि भारत और रूस के बीच गहरे व्यापारिक और रणनीतिक संबंध अमरीका के व्यापारिक हितों के खिलाफ हैं। ट्रम्प ने भारत और रूस को ब्रिक्स समूह का हिस्सा होने के कारण भी निशाना बनाया, जो अमरीकी डॉलर को वैश्विक व्यापार में चुनौती देता है।
इसी सन्दर्भ में ट्रम्प ने भारत और रूस की रणनीतिक साझेदारी, खासकर रूस से तेल और हथियारों की खरीद को लेकर तंज़ कसते हुये कहा कि उन्हें परवाह नहीं कि भारत रूस के साथ क्या करता है, लेकिन दोनों देश अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को और नीचे ले जा रहे हैं। यह बयान भारत के रूस के साथ संबंधों को लेकर अमरीका की नाराज़गी को दर्शाता है, विशेष रूप से तब, जब अमरीका रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। भारत ने भले ही ‘मृत अर्थव्यवस्था’ कहने पर ट्रम्प को कोई माकूल जवाब नहीं दिया, परन्तु रूसी सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने ज़रूर ट्रम्प को धमकी भरा जवाब दे दिया। मेदवेदेव ने अपने टेलीग्राम चैनल पर लिखा कि ट्रम्प को अपनी पसंदीदा फिल्म ‘द वॉकिंग डेड’ याद करनी चाहिए और यह सोचना चाहिए कि ‘डेड हैंड’ कितना खतरनाक हो सकता है। दरअसल ‘डेड हैंड’ शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ की एक स्वचालित परमाणु हथियार नियंत्रण प्रणाली थी, जो बड़े पैमाने पर रूसी नेतृत्व के नष्ट होने पर भी स्वचालित रूप से परमाणु हमला करने में सक्षम है। मेदवेदेव ने ट्रम्प को साफ शब्दों में चेतावनी दी कि रूस की ताकत को कम न आकें।
उधर राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की चेतावनी के जवाब में रूस के निकटवर्ती क्षेत्रों में दो परमाणु पनडुब्बियों को तैनात करने का आदेश दे दिया। हालांकि ट्रम्प ने यह साफ नहीं किया कि ये पनडुब्बियां परमाणु हथियारों से लैस हैं या केवल परमाणु ऊर्जा से संचालित हैैं।
रूस की ओर से भी यह बता दिया गया है यह दोनों ही अमेरिकी पनडुब्बियां उसके निशाने पर हैं। गोया दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। सवाल यह कि राष्ट्रपति ट्रम्प को किसी देश की अर्थव्यवस्था को मृत कहने का क्या अधिकार है? वैसे भी विश्व बैंक, आईएमएफ सहित और भी कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.3-6.7 प्रतिशत अनुमानित की है। यह जीडीपी वृद्धि दर अमेरिका की 1.9 प्रतिशत की तुलना में कहीं ज़्यादा है। इन आंकड़ों से ही पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था मृत नहीं, जीवंत है और साथ ही प्रति व्यक्ति आय कम होने के बावजूद यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में एक है।
सच पूछिये तो आज यूक्रेन भी जिस बुरे दौर से गुज़र रहा है उसका कारण भी यूक्रेन को दिया जाने वाला अमरीकी व नाटो समर्थन ही है यानी यूक्रेन अमरीका की दोस्ती का नतीजा भुगत रहा है और अमरीका उसका साथ देने के बजाये इसमें भी व्यवसाय कर रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे यह साबित होता है कि जिसका ‘दोस्त’ अमरीका हो उसे दुश्मन की ज़रूरत ही क्या है?
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