एक बार फिर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का बढ़ा मान 

मेरे लिए तो एजुरैंक-2025 द्वारा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.) लुधियाना को 100 में से 93वां स्थान प्रदान करना भी गर्व की बात है। विश्व भर के 4407 संस्थानों में से पी.ए.यू. भारत का एक मात्र प्रदेशिक कृषि विश्वविद्यालय है, जो इस शीर्ष सूची में शामिल हुई है। यह दर्जाबंदी पी.ए.यू. के वर्चस्व तथा स्तर को एक बार फिर सिद्ध करती है।  उल्लेखनीय है कि एजुरैंक एक स्वतंत्र ग्लोबल रैंकिंग प्लेटफार्म है, जो कृषि अनुसंधान का औचित्य तथा अकादमिक प्रभाव जैसे मापदंडों के आधार पर 14,000 से  अधिक संस्थानों का मूल्यांकन करता है। पी.ए.यू. का शीर्ष 100 संस्थानों में शामिल होना वैश्विक स्तर पर कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा में इस विश्वविद्यालय के बढ़ रहे प्रभाव का सूचक है।
ध्यान रहे कि एशिया से सिर्फ 22 संस्थानों ने ही कृषि विज्ञान में शीर्ष 100 संस्थानों में जगह बनाई है। इनमें  से 13 चीन से हैं, 2 जापान से तथा इज़रायल, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा भारत से एक-एक संस्था शामिल है। भारत का प्रतिनिधित्व इस श्रेणी में सिर्फ दो कृषि संस्थानों द्वारा किया गया जिनमें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था नई दिल्ली 47वें स्थान पर तथा पी.ए.यू. 93वें स्थान पर रहीं। 
यह उपलब्धि पी.ए.यू. की लगातार सफलताओं के रूप में देखी जा सकती है। विश्वविद्यालय को शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय संस्थागत दर्जाबंदी फ्रेमवर्क (एन.आई.आर.एफ.) द्वारा लगातार दो वर्षों, 2023 तथा 2024 के लिए भारत के सभी प्रादेशिक कृषि विश्वविद्यालयों में से शीर्ष दर्जा दिया गया था। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्थागत दर्जाबंदी फ्रेमवर्क-2025 एक प्रमुख निजी क्षेत्र की एजेंसी ने पी.ए.यू. को देश की शीर्ष प्रादेशिक कृषि विश्वविद्यालय की दर्जाबंदी से सम्मानित किया है।
1962 में स्थापित हुई पी.ए.यू. ने भारत की कृषि में गुणात्मक योगदान डाल कर हरित क्रांति के रूप में देश में खाद्य सुरक्षा को आकार दिया है। मैं 1978-80 में इस विश्वविद्यालय के संचार केन्द्र का प्रमुख रहा हूं। मौजूदा समय में पी.ए.यू में वातावरण पक्षीय तथा दीर्घकालिक कृषि एवं कृषि खाद्य क्षेत्र के लिए समर्था निर्माण में नवीनताओं के क्षेत्र में कार्य जारी हैं। 
यह अंतर्राष्ट्रीय दर्जाबंदी पी.ए.यू. के समूह वैज्ञानिकों, कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों को इस संस्था के और विकास के लिए जद्दोजहद करते रहने के लिए प्रेरित करेगी। यह भी खटकड़कलां जैसा ही स्वागत मांगती है।
महिला पत्रकारों की बल्ले-बल्ले 
कोई समय था पत्रकारिता के व्यवसाय को महिलाएं नहीं अपनाती थीं। वर्तमान में मीडिया संस्थानों में महिलाओं की भरमार है। यदि अकेले चंडीगढ़ का प्रमाण देना हो तो इस शहर की ज्योति मल्होत्रा (मुख्य सम्पादक, ट्रिब्यून), मनराज ग्रेवाल (रैज़िडैंस सम्पादक, इंडियन एक्सप्रैस), अरविन्दर पाल कौर (सम्पादक, पंजाबी ट्रिब्यून), मीनाक्षी (न्यूज़ सम्पादक, दैनिक ट्रिब्यून), कमल दोसांझ तथा कवि दविन्द्र (स्पोक्समैन) इस व्यवसाय से संबंधित हैं या रहे हैं। इस व्यवसाय में महिलाओं की बहुतायत का स्रोत महिलाओं की उड़ान ही नहीं, इसमें डिजिटल साधनों की बहुतायत भी है। 70 वर्ष से सराकरी तथा गैर-सरकारी प्रकाशनों से संबंधित रहा होने के कारण मैं इस रूझान का स्वागत करता हूं।
शहीद भगत सिंह की विरासत
अब मैं अपने जीवन के उस पड़ाव में से गुज़र रहा हूं जब व्यक्ति अपने जीवन के अतीत को याद करने का बहाना ढंढता रहता है। पंजाब सरकार द्वारा मेरे पैतृक गांव सूनी के निकट शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के पूर्वजों के गांव खटकड़कलां में 51 करोड़ 70 लाख की लागत वाले विरासती परिसर का शिलान्यास करना हम जैसों के लिए अहम कार्य है। इसलिए मुझे अपने समय का खालसा हाई स्कूल तथा कालेज याद आ जाना स्वाभाविक है। यह दोनों माहिलपुर में स्थित हैं। बड़ी बात यह कि यह कस्बा अब ज़िला भगत सिंह नगर का हिस्सा बन चुका है।
मैं खुश हुं कि यह प्रयास इस मिट्टी से जुड़े भगत सिंह सपूत की लासानी विरासत की सम्भाल तथा प्रसार का स्रोत बनेगा। विरासती गलियारा भी इसी प्रोजैक्ट का अहम हिस्सा होगा। यह विरासती गलियारा शहीद भगत सिंह संग्रहालय को शहीद भगत सिंह के पूर्वजों के घर से जोड़ेगा।
इस गलियारे को ऐसे प्रतिमाओं तथा दीवार-चित्रों से सजाया जाएगा, जो भगत सिंह तथा अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की बात करेंगे। इस परिसर में 700 सीटों की क्षमता वाला आडिटोरियम पूरी तरह वातानुकूल (ए.सी.) होगा जहां सांस्कृतिक तथा सैमीनारों सहित अन्य गतिविधियां करवाई जाएंगी। भगत सिंह के अदालती मुकद्दमे का दृश्य भी सृजित किया जाएगा, जो पर्यटकों को अतीत में ले जाएगा। पर्यटकों के लिए सुविधा केन्द्र तथा ठहरने का स्थान, बाग-बगीचे, संगीतमय फुव्वारा तथा पार्किंग के लिए उचित स्थान भी बनेगा। 
अंतिका
(पंजाबी लोक टप्पा)
मेरे कंत ने चुबारा पाया,
चढ़दी दे पट्ट फुल्ल गये।   

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