कहीं अमरीका पर ही भारी न पड़ जाए ट्रम्प की टैरिफ ब्लैकमेलिंग 

अंतत: अपनी सनकभरी घोषणाओं के लिए विख्यात हो चुके अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 30 जुलाई 2025 को ऐलान किया था कि 1 अगस्त, 2025 से अमरीका भारत पर 25 फीसदी टैरिफ  लगाने जा रहा है, लेकिन अब ट्रम्प की ताज़ा घोषणा के बाद यह टैरिफ सात अगस्त से लागू किया जाएगा। उन्होंने भारत द्वारा रूस से हथियार और तेल खरीदने पर अमरीका की चेतावनियों पर ध्यान न देने के लिए 10 फीसदी का जुर्माना और लगा दिया है। इस तरह अमरीका ने भारत पर 25 नहीं 35 फीसदी  टैक्स लगा दिया है। दुर्भाग्य देखिए कि भारत और अमरीका के संबंधों के लिए यह कड़वाहट भरी खबर तब आती है, जब दोनों देशों के विज्ञान संगठन इसरो और नासा ऐतिहासिक साझेदारी के चलते दुनिया का अब तक का सबसे ताकतवर सैटेलाइट ‘निसार’ लांच किया है। 12 हज़ार 500 करोड़ की लागत का अब तक सबसे महंगा और ताकतवर आब्जर्वेशन सैटेलाइट नासा-इसरो सिंथेटिक अपरचर रडार (निसार) हर 97 मिनट में पृथ्वी का चक्कर लगा लेगा और 12 दिनों में धरती में 1171 चक्कर लगाकर यह पृथ्वी का एक एक इंच का सटीक नक्शा उपलब्ध करायेगा। यह भारत और अमरीका के वैज्ञानिकों की सबसे महान और विश्वसनीय दोस्ती का नतीजा है। लेकिन जिस दिन यह दोस्ती परवान चढ़ रही थी, उसी दिन डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ ब्लैकमेलिंग का भारत पर चाबुक चला दिया और साबित कर दिया कि वह हमें भले झूठ-मूठ का अपना दोस्त कहते रहते हों, लेकिन उनके मन में दबी इच्छा है कि भारत अमरीका का पिछलग्गू बनकर रहे। 
इसलिए जब बार-बार उनकी चेतावनियों का भारत पर कोई असर नहीं पड़ा कि भारत रूस से तेल और हथियार न खरीदें, तब उन्होंने बड़ी निर्लज्जता से इसे हमारा अपराध बताकर 10 प्रतिशत टैक्स ठोक दिया जबकि आज़ादी के बाद से ही भारत अपनी निरगुट नीति के लिए जाना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब दुनिया दो खेमों में बंट गई थी, तब भी भारत ने अपनी गुट-निरलेप की इस नीति को बरकरार रखा और किसी भी खेमे का अंध अनुयायी नहीं बना, लेकिन ट्रम्प चाहते हैं कि जो कभी नहीं हुआ वह हो जाए। 
जो लोग सोचते हैं कि ये महज व्यापार घाटे और भारत के उपभोक्ता बाज़ार तक अमरीका की अपनी पहुंच बनाने की रणनीति है, वह धोखे में हैं। दरअसल अमरीका चाहता है कि भारत उसके लिए अपने कृषि उत्पाद, डेयरी उत्पद और नट बाज़ार पूरी तरह से खोल दे। इससे अमरीका हमारे यहां अपने इस उत्पादों को डम्प कर दे, क्योंकि अमरीका में ये उत्पादन उन्नत बायोटेक्निक और किसी तरह के सांस्कृतिक पक्षों की परवाह न करते हुए तैयार होते हैं और इतनी बड़ी मात्रा में तैयार होते हैं कि एक क्या दस अमरीका भी खुद अपने बाज़ार में उन्हें नहीं खपा सकता। भारत की आबादी 145 करोड़ से ज्यादा है, इस संख्या और उपभोक्ता बाज़ार का लालच ट्रम्प नहीं छोड़ पा रहे और चाहते हैं कि भारत अपनी सभी तरह की सांस्कृतिक मान्यताओं को एक तरफ  करते हुए उससे निरंकुश कृषि और डेयरी उत्पादों को अपने बाज़ार में खपा दे। इसके लिए ट्रम्प ने अपने पिछले कार्यकाल में भी भारत पर बहुत ज्यादा दबाब डालने की कोशिश की थी। यहां तक कि इसके लिए अमरीका ने भारत से विशेष व्यापार दर्जा 2019 में छीन लिया था। इसके कारण कुछ भारतीय उत्पाद जो पहले अमरीका में टैक्स मुक्त हुआ करते थे, वो काफी महंगे हो गये, लेकिन अमरीका की इस ब्लैकमेलिंग और दादागिरी के बावजूद भारत में अपना कृषि बाज़ार अमरीकी उत्पादों के लिए नहीं खोला। हम महज राजनीतिक दबाव में आकर अपने मूल्यों से सांस्कृतिक समझौता कैसे कर लें? यह बात ट्रम्प को समझ में नहीं आ रही है। 
ट्रम्प ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति पर जीत कर आये हैं और वह इसे हम पर दबाव डालकर अमरीकी नागरिकों को दिखाना चाहते हैं कि वह कितने बड़े और मजबूत नेता हैं। अमरीका जिस तरह की टैरिफ ब्लैकमेलिंग कर रहा है, उसका असर हमसे ज्यादा अमरीका पर भारी पड़ सकता है। क्योंकि भारत में हाल के सालों में अपने कई व्यापार सहयोगी खोज लिए हैं, लेकिन अमरीका को हमारा असहयोग बहुत भारी पड़ेगा। भारत 145 करोड़ आबादी वाला का देश है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जीवंत उपभोगक्ता बाज़ार है। हम उत्पादन, डिजिटल टेक्नोलॉजी, फार्मा और सर्विस सेक्टर की वैकल्पिक शक्ति हैं। रक्षा, सेमी कंडक्टर और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी हमारे वैकल्पिक साझेदार हैं। अगर अमरीका नहीं तो यूरोप, रूस, मिडल ईस्ट और एशिया ब्लॉक हमारे सहयोग के लिए खुले हुए हैं, जबकि अमरीकी बाज़ार सैचुरेशन का शिकार है। अमरीकी जनसंख्या वृद्धि दर रुकी हुई है और ग्लोबल सप्लाई चेन में भारत एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इन सबको देखते हुए कहीं ऐसा न हो कि यह टैरिफ ब्लैकमेलिंग अमरीका को ही भारी पड़ जाए। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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