मन-पसंद समझौते के लिए दबाव बना रहा है अमरीका

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला,
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला।

प्रसिद्ध शायर अहमद फराज़ के यह शे’अर अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दोस्ती के मामले पर बिल्कुल चरितार्थ होता है। बेशक अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत पर 1 अगस्त से 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है और इसके साथ ही भारत पर रूस से तेल व हथियार खरीदने अर्थात रूस पर अमरीकी तथा पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण लगाई गई पाबंदियों का उल्लंघन करने के लिए जुर्माना लगाने की बात भी कही है। इससे पहला प्रभाव तो यही बनता है कि शायद भारत-अमरीका द्विपक्षीय व्यापार वार्ता टूट गई हो, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। स्वयं अमरीकी राष्ट्रपति ने टैरिफ की घोषणा करने के बाद कहा, ‘हम इस समय उनके (भारत) साथ बात कर रहे हैं। देखते हैं, क्या होता है।’ भारत सरकार ने भी इसकी पुष्टि की है और कहा है कि अमरीका के साथ टैरिफ पर बातचीत चल रही है। इसका साफ और स्पष्ट मतलब तो यही निकलता है कि भारत-अमरीका बातचीत अभी टूटी नहीं, अपितु जो हो रहा है, वह अंतिम फैसले को अपने हित में करने के लिए शह-मात की लड़ाई का एक हिस्सा है। यह ट्रेड वार (व्यापार युद्ध) वरीयता हासिल करने के ढंग-तरीके ही हैं। 
जब अमरीका ने भारत में कृषि उत्पादों, डेयरी, पोल्टरी, लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों तथा खुदरा व्यापार जैसे आधारभूत सैक्टरों में प्रवेश के लिए कस्टम ड्यूटी रहित या बहुत कम टैक्स दर के लिए दबाव बनाया तो भारत इसके लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि भारत सरकार को पता है कि यदि इन क्षेत्रों में अमरीका को खुल कर खेलने की अनुमति दे दी गई तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था की तबाही की ओर एक कदम सिद्ध होगा। भारतीय कृषि, डेयरी, पोल्ट्री, खुदरा व्यापार (रिटेल व्यापार) अमरीका की डम्ंिपग नीति का शिकार हो जाएंगे, क्योंकि अमरीका में इनके उत्पादन की बहुतायत है और वह किसी भी कीमत पर भारतीय बाज़ार को कैप्चर (काबू) कर लेने के समर्थ है। हमारे सामने उदाहरण हैं कि एमाज़ोन तथा फ्लिपकार्ट (वाल्मार्ट) जिनके कारण भारत की कितनी ही खुदरा दुकानें या तो बंद हो गई हैं या बंद होने के कगार पर हैं, क्योंकि बड़ी कम्पनियां किसी भी क्षेत्र में सामाजिक छोटे व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को व्यापारिक रूप में मात देकर एकाधिकार स्थापित करने के लिए प्रत्येक वर्ष हज़ारों करोड़ रुपये का घाटा जान-बूझ कर सहन करने के समर्थ हैं। 
वैसे यह शह-मात का खेल अकेला अमरीका ही नहीं खेल रहा। जब भारत को प्रतीत हुआ कि अमरीका के साथ भारतीय हितों के अनुसार व्यापार समझौते की बातचीत आसान नहीं, तो भारत ने भी अमरीका पर दबाव की रणनीति अपनाते हुए अमरीका के मुख्य दुश्मन माने जाते चीन से बातचीत शुरू कर दी है और उसके प्रति निकटता दिखाई है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर तथा अन्य कई समर्थ अधिकारी चीन गए। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी एस.सी.ओ. (शंघाई सहयोग संगठन)की इसी वर्ष अगस्त के अंत में शुरू होने वाली बैठक में शामिल हो रहे हैं। हालांकि पहले भारतीय प्रधानमंत्री चीन में बैठकों में शामिल होने से गुरेज कर रहे थे। वास्तव में यह अमरीका के लिए एक स्पष्ट संकेत था कि यदि अमरीका हमारे देश के हितों के विरुद्ध व्यापार समझौते का दबाव बढ़ाता है तो हम चीन तथा रूस के करीब जा सकते हैं। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों के अनुसार यह भारत के लिए बहुत आसान नहीं है, क्योंकि चीन तथा रूस ईरान से साथ गठबंधन में हैं और मौजूदा भारत सरकार इज़रायल के बहुत करीब है। ऐसी ही स्थिति पाकिस्तान के बारे में भी है। फिर ईरान तो ब्रिक्स का एक प्रमुख स्दस्य भी है, परन्तु अमरीका के राष्ट्रपति ने इस स्थिति में लचकदार रवैया अपनाने की बजाय अपना आम जाना जाता आक्रामक रुख ही अपनाया और स्वयं ट्रम्प ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी, जबकि व्यापार समझौते बारे भारत-अमरीका के बीच बातचीत अभी चल रही है। फिर अमरीका ने भारत पर रूस से तेल तथा हथियार लेने पर जुर्माना लगाने की बात भी कही है। हम समझते हैं कि यह टैरिफ चाहे एक अगस्त से शुरू हो जाए, परन्तु यह निश्चित नहीं है। यह सिर्फ अमरीका की भारत के साथ व्यापार में अपनी बात मनवाने के लिए दबाव डालने के लिए एक चाल है। 
अमरीका के पूर्व सहायक वाणिज्य सचिव रेअ विक्करी की यह टिप्पणी बहुत अर्थपूर्ण है— ‘यह द्विपक्षीय आधार पर उनके (ट्रम्प) द्वारा पैदा की गई समस्या को जिनता सम्भव हो सके, हल करके या कम से कम सुधार करके जीत का दावा करने की कोशिश है...घबराने की कोई ज़रूरत नहीं और दोनों पक्ष अमरीका तथा भारत को दोनों ओर से बुद्धिमान लोगों की ज़रूरत है, जो किसी समझौते पर पहुंच सकें।’ 
स्पष्ट है कि भारत तथा अमरीका एक-दूसरे के साथ शह-मात का खेल ही खेल रहे हैं।
ज़िन्दगी के रास्ते हैं या कोई बिसात है,
हर कदम कदम क्यूं शह-मात खेल हो गया। 
(लाल फिरोज़पुरी)

टैरिफ का पंजाब पर प्रभाव
 

चाहे इसकी उम्मीद बहुत कम है परन्तु फिर भी यदि अमरीका द्वारा लगाया गया टैरिफ जारी रहता है तो इसका प्रभाव समूचे भारत पर जो पड़ेगा सो पड़ेगा, परन्तु हमारे लिए बड़ी चिंता की बात पंजाब, जिसकी आर्थिकता पहले ही अवसान की ओर जा रही है, पर पड़ने वाले प्रभाव की है, क्योंकि भारत-अमरीका व्यापार समझौते में सबसे बड़ी बाधा भारत द्वारा अमरीका की भारत में कृषि उत्पादों, डेयरी, पोल्ट्री, एम.एस.एम.ई. तथा खुदरा व्यापार के बाज़ार में सीधी तथा सस्ती पहुंच रोकने के कारण है। भ
ारत को हां या न कहना ही पड़ेगा। यह अच्छी बात है कि भारत इसके लिए नहीं मान रहा। हमारे हिसाब से यह टैरिफ लगने से चाहे पंजाब को कुछ नुकसान होगा, परन्तु यह नुकसान उस नुकसान से बहुत कम होगा, जो इन क्षेत्रों में अमरीका के खुल कर खेलने की अनुमति देने से हो सकता है, क्योंकि पंजाब मुख्य रूप से कृषि आधारित आर्थिकता वाला प्रदेश है। फिर यहां कोई बहुत बड़ा उद्योग भी नहीं है।  वैसे उल्लेखनीय है कि अमरीका ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की  बात कही है, परन्तु अमरीका ने 32 अन्य देशों पर भारत से कहीं अधिक टैरिफ लगाया हुआ है। कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस जैसे छोटे देशों पर अमरीकी टैरिफ दर 40 से 50 प्रतिशत तक है जबकि बांग्लादेश, ताईवान, चीन, थाइलैंड, इंडोनेशिया, स्विट्ज़रलैंड तथा दक्षिण अफ्रीका जैसे 20 देशों पर अमरीकी टैरिफ 30 से 39 प्रतिशत है। पाकिस्तान, भारत, दक्षिण कोरिया, जापान, मलेशिया सहित 12 देशों पर यह दर 20 से 29 प्रतिशत के बीच है। अत: यह स्पष्ट है कि अमरीका का रवैया भारत से कोई अधिक अलग नहीं। वह अपने विरोधी तथा मित्र देशों पर भारत से भी ज़्यादा टैरिफ लगा रहा है। हां, उसे विश्व-थानेदार की तरह भारत को यह निर्देश देने की अनुमित नहीं दी जा सकती कि भारत किस देश के साथ व्यापार करेगा या किससे नहीं। अत: इस स्थिति में भारत को अपने हितों को किसी भी कीमत पर नहीं त्यागना चाहिए। वैसे भी अमरीका भारतीय दवाइयों पर टैक्स नहीं लगा रहा और इसी प्रकार कई अन्य वस्तुओं पर टैक्स कम करना उसकी मजबूरी बन जाएगी। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव की रिपोर्ट है कि अमरीका ने बहुत-सी रियायतों पर अपना सामान बेचने की शर्तें मनवा कर भी ब्रिटेन, जापान, यूरोपीय यूनियन, ताइवान जैसे मित्र देशों पर ऊंचा टैरिफ लगाया हुआ है, जबकि भारत तो कृषि उत्पादों पर शून्य टैक्स तथा अमरीका से तेल व हथियार आदि की स्थायी खरीद के लिए अभी माना भी नहीं है। अत: समझ लेना चाहिए कि भारत का स्टैंड अभी तक अच्छा रहा है। देश की आर्थिकता को बर्बादी की ओर धकेलने वाला समझौता करने से कुछ टैरिफ लगने को सहन करके थोड़ा नुकसान उठाना अच्छी नीति है।
लाभ किसी का, नुकसान देश का
पंजाबी की एक प्रसिद्ध कहावत है, ‘खान पीन नूं बांदरी, ते डंडे खान को रिच्छ’, यही हाल भारत के निजी व्यापारियों द्वारा रूस से खरीदे गए तेल के संबंध में दिखाई दे रहा है। नि:संदेह भारत में इससे विदेशी मुद्रा आई और भारत की डीजीपी भी बढ़ी, परन्तु वास्तव में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमरीकी तथा पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को दर-किनार करके जो तेल भारत में आयात किया गया, उसका लाभ देशवासियों को बिल्कुल नहीं हुआ। भारत में आम लोगों के लिए पैट्रोल-डीज़ल के दाम नहीं कम हुए, अपितु यह तेल रिफाइंड करके रिलायंस तथा नायरा जैसी निजी कम्पनियों ने महंगे दाम पर यूरोप को बेच कर मुनाफा कमाया है। नि:संदेह देश की कुछ सरकारी कम्पनियों ने भी यह तेल आयात किया, परन्तु उसका लाभ भी लोगों तक नहीं पहुंचा। रिलायंस द्वारा लगभग 12-13 बिलियन अमरीकी डॉलर तथा नायरा द्वारा लगभग 5 बिलियन अमरीकी डॉलर का तेल प्रति वर्ष रूस से आयात किया गया। इस संबंधी धोखा देने के लिए शैडो टैंकरों तक का इस्तेमाल भी किया गया। अब यूरोपीय यूनियन ने ‘नायरा एनर्जी’ को तो बैन ही कर दिया है। इस बीच अमरीका ने भी 6 भारतीय कम्पनियां जो इज़रायल के साथ युद्ध के बावजूद ईरान से व्यापार कर रही थीं, को भी बैन कर दिया है। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि अमरीका इस तेल की खरीद के बदले भारत को कोई जर्माना लगाता है तो इसका नुकसान तो देश को होगा, जबकि लाभ सीधा रिलायंस तथा नायरा जैसी कम्पनियों के खाते में गया है। यदि इस कारण सचमुच भी भारत सरकार या देश को या देश के लोगों कोई नुकसान होता है तो इसकी पूर्ति भी इन कम्पनियों से ही करना बनता है। चाहे हमें पता है कि भारतीय कानूनों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, परन्तु सरकार को बेशक नया कानून ही क्यों न बनाना पड़े, परन्तु इसकी पूर्ति तो लाभ कमाने वाले से ही होनी चाहिए। इस मामले में आम भारतीय की हालत तो इस शे’अर जैसी ही है :
गुनहगारों में शामिल हैं, गुनाहों से नहीं वाकिफ,
सज़ा को जानते हैं हम, खुदा जाने खता क्या है।
(चकबस्त)
-मो. 92168-60000

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