अचानक नहीं हुआ जगदीप धनखड़ का इस्तीफा

संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर 14 अप्रैल के दिन तत्कालीन उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिरी बार एक कार्यक्रम में एक मंच पर थे, लेकिन उस समय भी दोनों के चेहरे बता रहे थे कि दाल में कुछ काला है। उसके बाद तो उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का सरकारी आवास व दफ्तर विपक्षी नेताओं का एक तरीके से ठिकाना बन गया था। दक्षिण भारत में जाकर डी.के. शिवकुमार को चाणक्य बताना, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का उप-राष्ट्रपति आवास में लाल कार्पेट स्वागत, आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल की उनसे मुलाकात, हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से उनका मिलना, चन्द्र बाबू नायडू को राजग से समर्थन वापसी के लिए दबाव डालने विषयक बैठक उनके बंगले में होने जैसे अनेक कारणों से मोदी सरकार के स्थायित्व को ग्रहण लगने का डर था। 
इस बीच सरकार के किसी भी मंत्री का उनसे न मिलना उनके प्रति गहरी नाराज़गी का आधार बन गया था जिससे आहत होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक झटके में उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया, अन्यथा उनकी सरकार भी जा सकती थी। तभी तो 21 जुलाई को संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया। 
इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों से कहीं अधिक गहरे राजनीतिक टकराव और मतभेद थे जो सरकार और उप-राष्ट्रपति के बीच लंबे समय से चल रहे थे। संसद सत्र शुरू होने से 4-5 दिन पहले संसदीय कार्य मंत्री ने उप-राष्ट्रपति को सूचित कर दिया था कि सरकार लोकसभा में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ  प्रस्ताव लाने जा रही है और इसके बाद यही प्रस्ताव राज्यसभा में भी लाया जाएगा। सरकार ने लोकसभा में विपक्षी दलों को भी शामिल कर प्रस्ताव के लिए हस्ताक्षर एकत्र कर लिए थे। राज्यसभा में भी जस्टिस वर्मा के खिलाफ  प्रस्ताव लाने पर चर्चा हुई, लेकिन उप-राष्ट्रपति ने यह नहीं बताया कि विपक्ष ने उन्हें क्या कुछ कहा था या उनके पास क्या प्रस्ताव लेकर आए थे। 
इस बीच उप-राष्ट्रपति धनखड़ ने कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता से मुलाकात की और विपक्ष द्वारा जमा किए हस्ताक्षरों को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया और उसी दिन सदन में इसकी घोषणा करने वाले थे। इस बीच सरकार की ओर से तीन बार धनखड़ से सम्पर्क कर अपील की गई कि जो हस्ताक्षर एकत्र किए जा रहे हैं, उनमें सत्ता पक्ष के सांसदों के हस्ताक्षर भी शामिल किए जाएं क्योंकि यह एजेंडा सर्वसम्मति से तय हुआ था। इसके लिए पहली बार जे.पी. नड्डा और किरेन रिजिजू ने उप-राष्ट्रपति से मुलाकात की। दूसरी बार रिजिजू और मेघवाल ने उनसे मुलाकात की और तीसरी बार केवल मेघवाल ने धनखड़ से मुलाकात की। मंत्री मेघवाल ने स्पष्ट कहा कि सरकार को विश्वास में लिया जाना चाहिए और सत्ता पक्ष के हस्ताक्षर भी ज़रूरी हैं, लेकिन धनखड़ अपने फैसले पर अडिग रहे। उन्होंने संकेत दे दिया कि वह विपक्ष के हस्ताक्षरों की सूची सदन में पढ़ने वाले हैं। 
धनखड़ ने विपक्ष को यह भी आश्वासन दिया था कि वह न्यायमूर्ति शेखर यादव के मामले को अलग से उठाएंगे, जबकि एक हफ्ते पहले ही सरकार ने उनसे कहा था कि वह न्यायमूर्ति यादव के उस मामले को न उठाएं जो उनके पास लंबित था, क्योंकि उस पर हस्ताक्षर की पुष्टि नहीं हो पाई थी। धनखड़ के इस रुख ने सरकार को परेशानी में डाल दिया था। इसके बाद सरकार की ओर से कोई सीधी कार्रवाई हो उससे पहले ही धनखड़ बिना किसी सूचना के राष्ट्रपति भवन पहुंच गए। मुलाकात के लिए राष्ट्रपति को द्रौपदी मुर्मू को तैयार होने में वक्त लगा और इस दौरान धनखड़ ने करीब 25 मिनट तक उनका इंतज़ार किया और राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद उन्होंने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
इस्तीफे के बाद धनखड़ को उम्मीद थी कि अगले दिन सरकार उनसे सम्पर्क कर उन्हें मनाने की कोशिश करेगी या उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जाएगा, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। अमरीका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेंस के दौरे से पहले धनखड़ ने कहा था कि वह उनके समकक्ष हैं और इसलिए उनसे महत्वपूर्ण बैठक करेंगे, हालांकि एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने उन्हें सूचित किया कि वेंस राष्ट्रपति का संदेश लेकर आ रहे हैं, जो कि प्रधानमंत्री के लिए है। धनखड़ ने मंत्रियों के कार्यालयों में अपनी तस्वीर लगाने और अपनी फ्लीट की गाड़ियों को मर्सिडीज करने के लिए दबाव डाला था, ऐसा कहा जा रहा है। हालांकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं हुई है।
 

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