चिकनगुनिया के फैलाव से विश्व स्वास्थ्य संगठन चिंतित 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो चिकनगुनिया अब विकराल रूप लेता जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार आने वाले समय में पांच अरब लोगों के इसके दायरे में आने की संभावना है। हालांकि चिकनगुनिया से मौत का आंकड़ा प्रभावितों में से केवल एक प्रतिशत है, परन्तु जिस तरह से इसके फैलने की संभावनाएं बनती जा रही है निश्चित रूप से मौत का आंकड़ा भी बढ़ेगा और लाख दावों के बावजूद इसके स्वास्थ्य पर दूरगामी गंभीर प्रभाव भी पड़ेगा। चिकनगुनिया की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि उष्णकटिबंधीय अफ्रीका से एशिया को चपेट में लेने वाली यह बीमारी अब यूरोप को भी अपनी जद में ले चुकी है। 
दरअसल जलवायु परिवर्तन भी इसके फैलाव में सहायक है। तापमान बढ़ोतरी और नमी दोनों के कारण चिकनगुनिया का मच्छर फैलता है। जहां पानी जमा हुआ, वहां इसके मच्छर को डेरा जमाने का अवसर मिल जाता है।  दुनिया के 119 देषों में चिकनगुनिया अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। भारत में तो पिछले कुछ वर्षों से चिकनगुनिया लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही रहा है। भारत की बात करें तो गत वर्ष चिकनगुनिया के दो लाख संदिग्ध मामले सामने आये थे जिनमें से 17 हज़ार से अधिक मामलों में चिकनगुनिया की पुष्टि हुई थी। भले ही यह संख्या कम लग रही हो परन्तु जिस तरह से चिकनगुनिया हमारे देश सहित दुनिया के अन्य देशों में पांव फैला रहा है, यही विश्व स्वास्थ्य संगठन की चिंता का प्रमुख कारण है। 
माना जाता है कि तंजानिया में 1952 में चिकनगुनिया की पहचान हुई थी। दरअसल माकोंडे में पठार में चिकनगुनिया के मरीज़ की पहचान हुई। चिकनगुनिया में बुखार तो होता ही है, परन्तु यह सबसे अधिक प्रभावित जोड़ों को करता है। चिकनगुनिया में जोड़ों में तेज़ दर्द होता है और यह दर्द आसानी से व जल्दी जाता भी नहीं है। मकोंडे भाषा में चिकनगुनिया का मतलब दोहरा कर देना है और चिकनगुनिया के लक्षण दर्द के मारे दोहरा कर देने के कारण इसे चिकनगुनिया कहा जाने लगा। तंजानिया के दो वैज्ञानिकों मैरियन राबिन्सन और डब्ल्यू.एच.आर. लॅसडेन ने 1955 में दो अलग-अलग शोध-पत्र लिख कर इसके बारें में जानकारी दी। जहां तक भारत की बात है तो 1963 में कोलकता में चिकनगुनिया से पीड़ित मरीज़ पाया गया। चिकनगुनिया में बुखार तो सामान्यत: दो से 5 दिन रहता है परन्तु जोड़ों का दर्द लंबे समय तक असर दिखाता है। 
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरुप मच्छर जनित रोगों अधिक फैलाव हुआ है और पहले बरसात के पानी जमा होने के कारण फैलने वाली यह बीमारी अब गर्मी के मौसम बल्कि यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी 6 से 12 महीने अपना असर दिखाने लगी है। इस साल हमारे यहां मानसून ने समय से पूर्व प्रवेश किया है और राजस्थान ही नहीं अपितु देश के अधिकांश हिस्सों में अच्छी बरसात हो रही है। जिस तरह की हमारी ड्रेनेज व्यवस्था है और जिस तरह से जल भराव हो रहा है, उससे व्यापक स्तर पर चिकनगुनिया का प्रकोप देखने को मिल सकता है। अल्फा विषाणु परिवार के इस सदस्य एडिस के लार्वा के फैलाव को रोकने के लिए फॉगिंग की प्रभावी व्यवस्था तो अभी दिखाई नहीं देती। फिर पानी का जमा होना, गंदगी और वातावरण की नमी के कारण मच्छरों का प्रकोप बढ़ेगा ही, इसमें कोई संदेह नहीं है।  घरों में पानी जमा होना और कबाड़ में पानी भरा रहना, कूलरों में पानी को समय से नहीं बदलना आदि ऐसे कारण है जिससे एडीज एजिटी और एडीज एल्बोपिक्टस को पनपने में पूरा सहयोग मिलता है। विषेषज्ञों के अनुसार सुबह और दोपहर में यह अधिक सक्रिय रहता है। 
दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन की चिंता इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि दुनिया के देश इस प्रति अभी भी गम्भीर नहीं हुए हैं। बरसात व उसके बाद आवष्यक फॉगिंग की व्यवस्था, साफ-सफाई और मच्छर के लार्वा को नष्ट करने की व्यवस्था और इसके साथ आमजन में जागरुकता लाने को गंभीरता से लिया ही नहीं जाता। मच्छर जनित बीमारियों को रोकने के लिए पहले से तैयारी नहीं की जाती। जब अस्पतालों में मरीज़ों की भीड़ होने लगती है, तो शासन-प्रशासन सक्रियता दिखाने लगता है। विष्व स्वास्थ्य संगठन की सदस्य डायना रोजास अल्वारेज इसलिए भी चिंतित है कि 2004-05 चिकनगुनिया बीमारी हिंद महासागर क्षेत्र में फैली और उसके बाद द्वीपीय क्षेत्रों में फैलते हुए इस वायरस ने पांच लाख लोगों को अपने जद में ले लिया। यह इसकी गंभीरता को दिखाता है। ऐसे में सरकारों को अभी से सावधान हो जाना देनी चाहिए, ताकि इसके असर को कम किया जा सके। लोगों को भी अपने घर में साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए। शरीर को पूरी तरह ढंकने वाले कपड़े पहनने चाहिएं और इसके साथ ही मच्छर नाशक दवाओं का उपयोग करना चाहिए। 
-मो. 94142-40049

#चिकनगुनिया के फैलाव से विश्व स्वास्थ्य संगठन चिंतित