सीएसीपी का खुलासा : किसानों की लागत बढ़ रही, लेकिन आय नहीं 

बेचारा किसान क्या करे? उसकी हालत ‘आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया’ जैसी होकर रह गई है। उसकी आय से बहुत तेज़ उसका खर्च बढ़ता जा रहा है। दस में से सात फसलें ऐसी हैं जिनमें महंगाई दर उसकी आय विकास से बहुत अधिक है। किसान ने तो अब उस चुनावी वायदे को याद करना भी बंद कर दिया है, जिसके तहत उसकी आय 2022 तक दोगुनी होनी थी, आखिर उस बात को तीन साल तो बीत ही गये हैं। दूसरी ओर अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत से जो व्यापार समझौता करना चाहते हैं, उसमें उनका दबाव है कि कृषि क्षेत्र उनके देश के लिए खोल दिया जाये। गौरतलब है कि दोनों खरीफ व रबी की दस प्रमुख फसलों की समीक्षा करने से मालूम होता है कि मक्का, मूंगफली व रेपसीड/सरसों को छोड़कर शेष सात फसलों—धान, सोयाबीन, कपास, अरहर/तूर (खरीफ) और चना, गेहूं व गन्ना (रबी) की कृषि आय वृद्धि समान अवधि के दौरान ग्रामीण महंगाई दर से कम रही है।
कहने का अर्थ यह है कि भारतीय किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तो उनकी आय में वृद्धि नहीं हो रही है और दूसरी यह कि खर्च इतना बढ़ गया है कि लाभ अंतर कम होता जा रहा है। यह बात कमिशन फॉर एग्रीकल्चरल कास्ट्स एंड प्राइसिज़ (सीएसीपी) द्वारा एकत्र डाटा की समीक्षा से सामने आयी है। पिछले एक दशक के दौरान लगभग सभी प्रमुख फसलों के लिए कृषि आय में वृद्धि ग्रामीण महंगाई दर की गति के अनुरूप नहीं रही है यानी उससे कम रही है। डाटा से यह भी मालूम होता है कि अधिकतर फसलों के लिए लाभ अंतर (प्रॉफिट मार्जिन) में गिरावट आयी है। यह गणना दो मुख्य फसलों को उदाहरण के रूप में लेकर की गई।
वर्ष 2013-14 में धान के लिए निवेश लागत 25,179 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, जबकि परिवार श्रम का मूल्य 8,452 रुपये प्रति हेक्टेयर लगाया गया, जोकि कुल 33,651 रुपये बैठा। फासल का मूल्य 53,242 रुपये प्रति हेक्टेयर था, जिसका अर्थ हुआ कि लाभ 19,611 रुपये प्रति हेक्टेयर हुआ। 
वर्ष 2023-24 में धान के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम 61,314 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गया। फसल का मूल्य 91,530 रुपये प्रति हेक्टेयर मिला और इस लिहाज़ से आय 30,216 रुपये प्रति हेक्टेयर हुई। हालांकि आय में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन 2013-14 और 2023-24 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर में इज़ाफा 65 प्रतिशत का हुआ यानी जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी उस हिसाब से आय नहीं बढ़ी। इसके अतिरिक्त इस फसल ने प्रॉफिट मार्जिन में भी पतन देखा। 2013-14 में निवेश लागत व श्रम के हिसाब से प्रॉफिट मार्जिन 58 प्रतिशत था जो 2023-24 में गिरकर 49.3 प्रतिशत रह गया। गौरतलब है कि प्रॉफिट मार्जिन निकालने के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम को कुल खर्च के रूप में लिया जाता है क्योंकि यही खर्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए फार्मूला का भी हिस्सा है।
जहां धान खरीफ  फसल है वहीं गेहूं मुख्यत: रबी फसल है, लेकिन एक दशक के दौरान इसकी तुलना धान से करने पर भी आय में वृद्धि व प्रॉफिट मार्जिन में समान पैटर्न देखने को मिलता है। वर्ष 2012-13 में गेहूं के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम का मूल्य 23,914 रुपये प्रति हेक्टेयर लगाया गया। फसल का मूल्य 53,356 रूपये प्रति हेक्टेयर था, जिसका अर्थ हुआ कि लाभ 29,442 रुपये प्रति हेक्टेयर हुआ। वर्ष 2022-23 में गेहूं के लिए निवेश लागत व परिवार श्रम 43,760 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गया। फसल का मूल्य 88,939 रूपये प्रति हेक्टेयर मिला और इस लिहाज़ से आय 45,179 रुपये प्रति हेक्टेयर हुई। हालांकि आय में 53 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन 2012-13 और 2022-23 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर में इज़ाफा 71 प्रतिशत का हुआ यानी जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी उस हिसाब से आय नहीं बढ़ी। इसके अतिरिक्त इस फसल ने भी प्रॉफिट मार्जिन में पतन देखा। 2012-13 में निवेश लागत व श्रम के हिसाब से प्रॉफिट मार्जिन 123 प्रतिशत था, जो 2022-23 में गिरकर 103 प्रतिशत रह गया।
गन्ना व अन्य प्रमुख फसलों ने भी कुल आय में स्थिरता देखी। गन्ने से आय जो 2012-13 में 96,451 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, वह 2022-23 में बढ़कर 1,21,668 रुपये प्रति हेक्टेयर तो अवश्य हुई, लेकिन यह 26 प्रतिशत की वृद्धि इस अवधि के दौरान बढ़ी ग्रामीण महंगाई (71 प्रतिशत) से बहुत कम है। इसके अतिरिक्त इस अवधि में प्रॉफिट मार्जिन 151 प्रतिशत से गिरकर 102 प्रतिशत रह गया। दरअसल, उच्चतम आउटपुट के आधार पर जिन दस प्रमुख फसलों की तुलना की गई, उनमें केवल तीन ने ग्रामीण महंगाई में हुई वृद्धि के मुकाबले में दस वर्ष के दौरान अधिक आय अर्जित की। ये हैं मक्का (162 प्रतिशत) व मूंगफली (71.4 प्रतिशत) जब ग्रामीण महंगाई दर 65 प्रतिशत रही और रेपसीड व सरसों जब ग्रामीण महंगाई दर 71 प्रतिशत रही। शेष सात फसलों के लिए आय में वृद्धि ग्रामीण महंगाई दर से कम रही। चना के लिए आय 50 से 60 प्रतिशत के बीच रही, सोयाबीन व कपास के लिए 20 से 30 प्रतिशत रही और अरहर (तूर) के लिए 20 प्रतिशत से कम रही। मक्का को छोड़कर इन सभी फसलों के लिए आय स्थिर रही और प्रॉफिट मार्जिन में गिरावट देखने को मिली। 
यह प्रति हेक्टेयर लाभ अधिकतर भारतीय किसानों की मौसमी आय के लगभग बराबर है। 2015-16 के कृषि सेंसस के अनुसार औसत लैंड होल्डिंग साइज़ 1-1 हेक्टेयर से भी कम है, लेकिन अधिकतर किसान (68.5 प्रतिशत) बहुत छोटे किसान हैं यानी उनके पास 1 हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि है। इसका अर्थ है कि उनकी मौसमी आय और भी कम होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिरता व कम कृषि आय का अंदाज़ा जीडीपी में कृषि के हिस्से व रोज़गार में असंतुलन से लगाया जा सकता है। जीडीपी में कृषि का योगदान मात्र 16 प्रतिशत है, लेकिन कृषि क्षेत्र में भारत के कुल कार्यबल का 40 प्रतिशत से अधिक श्रमिक लगा हुआ है। कुल मिलाकर तथ्य यह है कि भारत में किसानों की समस्या यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर बढ़ती महंगाई के कारण जिस हिसाब से कृषि लागत व परिवार श्रम में उन्हें वृद्धि करनी पड़ रही है, उस हिसाब से उनकी आय में इजाफा नहीं हो रहा है और उनका प्रॉफिट मार्जिन भी निरंतर कम होता जा रहा है। इस आर्थिक तंगी के कारण वह तनाव में रहते हैं और कुछ तो कज़र् के बोझ में दबकर आत्महत्या कर लेने को मजबूर हो जाते हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 
 

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