ट्रम्प की आपत्तिजनक टिप्पणियां
संसद का अधिवेशन चल रहा है, इसी दौरान ही अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत द्वारा अमरीका को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने की घोषणा की है और इसके साथ ही यह धमकी भी दी है कि यदि उसने रूस के साथ हथियारों और तेल संबंधी हुए समझौतों को जारी रखा तो इसके बदले भारत को जुर्माने के रूप में और भी सज़ा दी जाएगी। भारत जैसे प्रभुता सम्पन्न और विशाल देश को ऐसी शर्तें स्वीकार नहीं हो सकतीं। जहां तक दोनों देशों के व्यापार का संबंध है, ट्रम्प के शासन सम्भालते ही दुनिया भर के देशों को उनके द्वारा अमरीका भेजी जाती वस्तुओं पर अधिक टैक्स लगाने की दी गई धमकियों ने प्रत्येक देश को सतर्क कर दिया है।
आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने तो एकाएक इसके विरुद्ध अपनी कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट कर दी थी। चीन ने भी अमरीकी वस्तुओं पर अधिक से अधिक टैक्स लगाने की बात कही थी। भारत और अमरीका में मार्च महीने से व्यापारिक समझौते संबंधी बात चल रही है, जो अभी भी जारी है। इसी दौरान ही अमरीकी राष्ट्रपति का बयान किसी भी तरह परिपक्व और सूझबूझ वाला नहीं कहा जा सकता। वाणिज्य मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इस संबंधी स्थिति स्पष्ट करते हुए संसद में यह बयान दिया है कि टैरिफ के मामले में भारत राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि अब तक दोनों देशों के बीच बैठकों के कई दौर चल चुके हैं। अमरीका द्वारा भारत पर लगाए गए टैक्सों की गम्भीरता से पड़ताल की जा रही है, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार किसानों, मज़दूरों, कारोबारियों और छोटे उद्योगों के हितों की रक्षा को सबसे अधिक महत्त्व देती है। यहीं बस नहीं, अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत और रूस की आर्थिकताओं को बेजान तक कहा है और यह भी कि अमरीका को उनकी चिन्ता नहीं है। इसी दौरान ही लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी भारतीय अर्थ-व्यवस्था संबंधी ट्रम्प की ओर से की गई टिप्पणी को उचित करार दिया है और यह भी कहा है कि बेजान अर्थ-व्यवस्था के लिए नरेन्द्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी ज़िम्मेदार हैं और यह भी कि इन्हें छोड़ कर सभी जानते हैं कि भारत एक ‘डैड इकोनामी’ अभिप्राय बेजान अर्थ-व्यवस्था है। ऐसी हल्की टिप्पणियों के लिए कांग्रेस को राहुल गांधी के लिए अर्थ-शास्त्र में नोबल पुरस्कार देने की सिफारिश ज़रूर करनी चाहिए। नि:संदेह राहुल गांधी को गौतम अडानी का फोबिया हो गया प्रतीत होता है।
पिछले दशक भर से भारत की अर्थ-व्यवस्था बेहद मज़बूत हुई है और इसीलिए यह दुनिया का पांचवां देश बन चुका है। पिछले दिनों में ही इसके साथ संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने व्यापारिक समझौते किए हैं। आज अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को मिली पहचान से कोई इन्कार नहीं कर सकता। हमारी यह स्पष्ट राय है कि अमरीका के साथ व्यापार समझौता करते समय भारत को अपने हितों की रक्षा करनी चाहिए और यह भी कि कोई समझौता बंदूक की नोक पर नहीं किया जा सकता। रूस के साथ भारत के संबंध पिछले 7 दशकों से बेहद मज़बूत बने रहे हैं। कठिन समय में रूस ने भारत का डट कर साथ दिया है, जबकि अमरीका की भारत के प्रति नीति में समय-समय पर बदलाव आते रहे हैं। अमरीका ने अपनी विवशता के कारण वर्षों तक पाकिस्तान की प्रत्येक पक्ष से सहायता की है, परन्तु पाकिस्तान ने समय-समय पर उसे धोखे में रखा है।
भारत ने यह स्पष्ट रवैया धारण किया है कि किसी भी स्थिति में वह पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध आतंकवादियों द्वारा छेड़ी अप्रत्यक्ष लड़ाई को सहन नहीं करेगा। कश्मीर में पहलगाम के स्थान पर घटित दुखांत के बाद देश का रुख इसके प्रति और भी कड़ा हुआ है। दूसरी तरफ दोनों देशों की लड़ाई के बाद डोनाल्ड ट्रम्प शाही मेहमान के रूप में पाक जनरल आसिम मुनीर को खाने पर बुलाते हैं और अब उन्होंने भारत पर बड़ा टैरिफ लगाने के बाद पाकिस्तान के साथ वहां तेल ढूंढने के लिए बड़ा प्रोजैक्ट शुरू करने की घोषणा की है और यह भी कहा है कि कभी भारत पाकिस्तान से तेल खरीदेगा। ऐसी स्थिति में देश के आत्म-सम्मान को प्राथमिकता देते हुए भारत को भी अमरीकी राष्ट्रपति को कड़ा सन्देश देना चाहिए। क्योंकि आज भारत के साथ प्रत्येक पक्ष से दुनिया के ज्यादातर देश डट कर खड़े दिखाई दे रहे हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द