अमरीकी टैरिफ से घबराने की आवश्यकता नहीं
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया है। उन्होंने भारतीय निर्यात पर एक अतिरिक्त जुर्माने की भी बात की, जो रूस के साथ तेल व्यापार जारी रखने वाले देशों पर अधिभार के रूप में 100 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। ऐसा लगता है कि ट्रम्प को ‘मित्र’ भारत की कोई परवाह नहीं है, क्योंकि भारत के साथ व्यापार का हिस्सा चीन के साथ अमरीका के व्यापार की तुलना में बहुत कम है। अमरीकी हितों के कारण चीन को भारत की तुलना में बेहतर व्यापार समझौता मिलने की संभावना है। चीन को अमरीकी चिप-डिज़ाइन सॉफ्टवेयर निर्यात पर प्रतिबंध हटाना इसका एक उदाहरण है।
यह पहली बार नहीं है जब ट्रम्प ने भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाया है। राष्ट्रपति के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान ट्रम्प ने न केवल भारत को ‘टैरिफ किंग’ करार दिया था, बल्कि उन्होंने भारत को सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (जीएसपी) से भी हटा दिया था। 1974 के व्यापार अधिनियम द्वारा स्थापित जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑप प्रेफरेंस (जीएसपी) के तहत अमरीकी नीति निर्माताओं ने नामित लाभार्थी देशों (मुख्य रूप से निम्न आय वाले देशों) से लगभग 3,500 उत्पादों के आयात को तरजीही शुल्क-मुक्त (शून्य टैरिफ) दर पर अनुमति दी थी। इसका उद्देश्य इन देशों को अमरीका के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने और विविधता लाने में मदद करना था। विश्व बैंक के अनुसार ‘निम्न आय’ वाला देश वह है जिसकी प्रति व्यक्ति आय 2024 में प्रति वर्ष 1,045 डॉलर से कम थी।
चूंकि अमरीका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बना हुआ है, इसलिए बढ़ते प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों के कारण दबाव महसूस होना स्वाभाविक है। भारत के कुल निर्यात का लगभग 18 प्ररिशत अमरीका को जाता है, जिसका मूल्य 2023 में 77 अरब डॉलर और 2024 में 78 अरब डॉलर होगा।
हालांकि, यदि जीएसपी की वापसी सहित पिछले प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों को कोई संकेत माना जाए तो इसका प्रभाव अपेक्षाकृत मामूली रहा है। जीएसपी के अंतर्गत योग्य वस्तुओं की एक त्वरित समीक्षा से पता चलता है कि वे मुख्य रूप से वस्त्र और परिधान, घड़ियां, जूते, काम के दस्ताने, ऑटोमोटिव घटक और चमड़े के परिधान जैसी श्रेणियों में आते हैं।
इन प्रमुख निर्यात श्रेणियों में वस्त्र और परिधान तथा ऑटोमोटिव घटकों की कुछ वस्तुओं को जीएसपी सूची में शामिल किया गया था। इसके अतिरिक्त कार्बनिक रसायन, इस्पात और कुछ इंजीनियरिंग वस्तुओं (जैसे परमाणु बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरणों) का निर्यात भी जीएसपी लाभों की वापसी से प्रभावित हुआ। हालांकि अमरीका को कुल भारतीय निर्यात के अनुपात के रूप में इन वस्तुओं का मूल्य अपेक्षाकृत कम है। भारत द्वारा अमरीका को किए जाने वाले निर्यात में मुख्यत: हीरे (19 प्रतिशत), पैकेज्ड दवाइयां (14 प्रतिशत) परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद (8.9 प्रतिशत) ऑटोमोटिव कंपोनेंट (2.1 प्रतिशत) और वस्त्र एवं परिधान (3.7 प्रतिशत) शामिल हैं। कोष्ठक में दिए गए प्रतिशत भारत के कुल निर्यात के प्रतिशत के रूप में अमरीका को भारत के निर्यात की हिस्सेदारी दर्शाते हैं।
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एपटीए) पर हाल ही में हुए हस्ताक्षर से दीर्घावधि में अत्यधिक टैरिफ के कुछ नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद मिलने की उम्मीद है। भारतीय नीति निर्माताओं ने लगभग 20 प्रतिशत टैरिफ की उम्मीद की थी, लेकिन ट्रम्प ने अंतत: 25 प्रतिशत की दर लागू कर दी। भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते की बदौलत, भारत को अपने 99 प्रतिशत निर्यात पर शून्य टैरिफ का लाभ मिलेगा, विशेष रूप से वस्त्र, आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव पार्ट्स और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं जैसे क्षेत्रों में, ऐसे क्षेत्र जिनके बारे में टिप्पणीकारों को डर है कि उच्च अमरीकी टैरिफ से उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
अमरीका को भारतीय निर्यात पर भी सापेक्षिक रूप से कम असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि ट्रम्प ने उन देशों पर एकतरफा टैरिफ लगा दिया है जिनका निर्यात अमरीकी बाज़ार में भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करता हैं। बाहरी झटकों (चाहे संरक्षणवादी टैरिफ हों या युद्ध) का बेहतर ढंग से सामना करने के लिए भारत को अपने विनिर्माण क्षेत्र/निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धा वाला बनाने और अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था एक मज़बूत घरेलू क्षेत्र से लाभान्वित होती है, जहां घरेलू खपत, सरकारी खर्च और निजी निवेश मिलकर देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं।
हालांकि, सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण मूल्यवर्धन का योगदान 17 प्रतिशत पर स्थिर बना हुआ है, जो विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता में कोई सुधार नहीं दर्शाता है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता का एक प्रमुख चालक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) घट रहा है। 2023-24 वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में सकल एफडीआई प्रवाह घटकर केवल 1 प्रतिशत और शुद्ध एफडीआई घटकर 0.6 प्रतिशत रह गया है, जो 2005-06 के बाद से नहीं देखा गया स्तर है। व्यावसायिक वातावरण में कठोरता, उल्टा शुल्क ढांचा (आईडीएस) और भारत द्वारा द्विपक्षीय संधियों को समाप्त करने के निर्णय को एफडीआई के प्रवाह को हतोत्साहित करने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कट्स इंटरनेशनल द्वारा कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन और धातु क्षेत्र में 1,464 टैरिफ लाइनों पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि आईडीएस किस प्रकार वाणिज्यिक क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रहा है। प्रतिस्पर्धात्मकता, जिसमें वस्त्र उद्योग से 136, इलेक्ट्रॉनिक्स से 179, रसायन से 64 और धातुओं से 191 वस्तुएं सबसे अधिक प्रभावित हैं। उदाहरण के लिए 14 डॉलर (1,000 रुपये) से कम कीमत वाले परिधानों पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है जबकि 14 डॉलर से अधिक कीमत वाले परिधानों पर 12 प्रतिशत कर लगता है। कपड़ा निर्माताओं के लिए, विपणन, गोदाम किराया, रसद, कूरियर सेवाओं और अन्य पूर्ति लागतों जैसी मूल्यवर्धित सेवाओं में भी महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है। भारत ने 2008 से अब तक लगभग 20 अरब डॉलर मूल्य की अमरीकी रक्षा सामग्री के लिए अनुबंध किए हैं। संभावित ट्रम्प 2.0 में भी यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना है। भारत को भी टैरिफ पर कम और घरेलू विकृतियों को दूर करने पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। (संवाद)