‘निसार’ उपग्रह की सफलता, कैसे उतरेंगी धरती पर आसमानी आशाएं ?
सालभर पहले लांच होने वाला ‘निसार’ मिशन, उपग्रह के 12 मीटर वाले विशाल एंटीना में सुधार तथा कक्षीय समायोजन के बाद अंतत: स्वदेशी जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के जरिए श्री हरिकोटा से अंतरिक्ष की ओर रवाना हुआ। दुनियाभर में निसार को लेकर चर्चाएं गर्म हैं, तो मात्र इसलिये नहीं कि यह अब तक का सबसे महंगा उपग्रह है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो और अमरीकी स्पेस रिसर्च एजेंसी, नासा ने 2,392 किलोग्राम के सैटेलाइट ‘निसार’ पर 11,240 करोड़ रुपये के खर्च किए हैं इसमें विमर्श इस बात पर है कि अंतरिक्ष में लगाई गयी यह लंबी तकनीकी छलांग इस क्षेत्र के लिए किस तरह युगांतरकारी साबित होने वाली है।
अमरीका, भारत, इसरो, नासा के लिए ही नहीं समूचे विश्व के लिए यह कितनी व्यापक स्तर पर हितकारी होगी? सामान्य जन को निसार के तकनीक कौशल तथा दूसरी खूबियों, उसकी जटिल प्रक्रियाओं से ज्यादा मतलब इससे है कि जिस बहुप्रतीक्षित निसार यानी नासा इसरो सेंथेटिक अपरचर रडार के अंतरिक्षीय प्रक्षेपण के बारे में इतनी चर्चा है, वह कब से अपना काम शुरू करेगा, इसके जमीनी फायदे क्या हैं? हमें उससे कौन सी सेवाएं कब से कब तक मिल सकेंगी। क्या ये फायदे सरकारों, संस्थानों तक सीमित रहेंगे अथवा उनके जीवन को भी प्रभावित कर उसे पहले से आसान, सुरक्षित बनाएंगे? करोड़ों रुपये खर्चने के बाद इससे देश और इसरो को इससे क्या मिलेगा?
11 बरस की कड़ी मेहनत से तैयार इस उपग्रह की तकनीक दक्षता भले ही अत्यंत उत्कृष्ट हो और वह हर 12 दिन पर समूची धरती की अत्यंत उपयोगी सूचनाएं सटीक भेजने में सफल भी हो पर सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर सवाल यह है कि क्या उन सूचनाओं, आंकड़ों का उचित विश्लेषण करने, उन्हें समझकर उसके अनुसार उनको लागू करने, व्यवहारिक स्तर पर उतारने, जमीनी लाभ लेने में हमारी एजेंसियां और व्यवस्था भली भांति सक्षम हैं? वे कब तक और कैसे सक्षम होंगी, वाले अधिकतम 5 साल आयु वाले उपग्रह निसार के बाद क्या होगा? दावा है कि वह दुरुस्त रहे तो आगे भी काम लायक रहेगा, पर हमारी व्यवस्था और संबंधित एजेंसियों को तो इसके कार्यारंभ से ही इसके अनुरूप चाकचौबंद होना होगा। उन्हें वह क्षमता विकसित करनी होगी, जो सूचनाओं को उत्पादक और आमजन के लिए लाभकारी बना सके। उदाहरणत: उपग्रह आपदा की सूचना समय से दे दे पर उसके लिये पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर्याप्त न हो, न ही त्वरित गति से सक्रिय होने वाला बचाव दल, आपदा संबंधी विशेषज्ञ तथा आपेक्षिक अवसंरचना एवं पर्याप्त कार्यबल, तो समयानुकूल सूचना का क्या अर्थ होगा।
इस लांच के साथ तीन महीने बाद ‘निसार’ से हर दिन 80 टेराबाइट का विशालकाय डेटा मिलेगा जिससे भू-डेटा स्रोत समृद्ध होगा, पर इन सूचनाओं के समुद्र को संभालने, सार्थक उपयोग के लिए क्या हमारी एजेंसियां पूरी तरह तैयार हैं? प्रक्षेपण के 90 दिन बाद ‘निसार’ 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर वृत्ताकार कक्षा में अपने नियत स्थापना बिंदु पर पहुंचकर वैज्ञानिक कार्यों के लिए तैयार होगा। वह 240 किमी चौड़ा ट्रैक बनाते हुए हर 12 दिनों में द्वीपों, समुद्री बर्फ और चुनिंदा महासागरों सहित वैश्विक भूमि और बर्फ से ढकी सतहों की तस्वीरें लेगा और आंकड़ों के साथ-साथ बहुत उच्च गुणवत्तायुक्त इन तस्वीरों को भेजेगा। इतनी चौड़ाई व सूक्षमता तथा गुणवत्ता का संयोजन अभूतपूर्व है। यह जमीन के नीचे के हाल बहुत सटीकता से बताकर भूस्खलन और भूकंप के जोखिम निर्धारित करेगा। बांध, पुल, मेट्रो-टनल की धीमी धंसान के नुकसान से पहले ही बताकर हादसों को टालेगा। यह हिमनदों का पीछे हटना, बर्फ पिघलने की गति, समुद्र के जल स्तर की घटत बढ़त भी लगातार मापेगा। हरित क्षेत्र की घटत, रेगिस्तान की बढ़त के आंकड़े बताएगा। इससे मिला वैश्विक जैव-भार व कार्बन फ्लेक्स मानचित्र जलवायु परिवर्तन की गति की अनिश्वितता 10 गुना तक घटा सकती है, मिले आंकड़ों के आधार पर पहले के अनुमानों को सुधारना संभव होगा।
देश में भूकम्प, भूस्खलन, बाढ़ के समय डैमेज प्रॉक्सी मैप बनाकर आपदा राहत पहुंचाने, उसके प्रबंधन का कार्य हो सकेगा। जोखिम-मानचित्र बेहतर होंगे तो बीमाकर्ता सस्ते बीमा बेच सकते है और उनका प्रीमियम भी घटा सकेंगे बशर्ते वे ऐसा करना चाहें। भू-जल व जलाशयों का हर पखवारे का लेखा-जोखा मिलेगा, तो इनका बेतरतीब दोहन रोका जा सकेगा। खेतिहरों को हवा में नमी की मात्रा और खेत बोआई की सूचना समय से दी जा सकेगी। उपज-भविष्यवाणी की मदद से सरकार आयात-निर्यात समय पर तय करके किसानों-उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचा सकती है। नगरपालिकाएं गर्मियों के दिनों में किसी खास इलाके में अत्यधिक तापमान का पता लगा, वहां उससे बचाव का इंतजाम कर सकती हैं। हरित आवरण व जलभराव के आंकड़े सीधे डाउनलोड करने से नागरिक सेवाएं बेहतर होंगी। पहली बार स्वदेशी रॉकेट से डुअल-बैंड रडार उपग्रह सूर्य-समकालिक कक्षा में पहुंचेगा। रॉकेट की विश्वसनीयता अंतरिक्ष बाज़ार में बढ़ेगी, तो उसकी पूछ भी और प्रीमियर रडार क्लब में पहुंचे इसरो के लिए पूरी तरह स्वदेशी डुअल-बैंड मिशनों का मार्ग खुलेगा। डेटा अर्थ-इकोसिस्टम विकसित होगा तो स्मार्ट-फार्मिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर-हेल्थ जैसी सेवाओं का नया बाज़ार बनेगा।
नि:संदेह ‘निसार’ का प्रक्षेपण देश के लिये महज़ एक और उपग्रह प्रक्षेपण नहीं बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता और अंतरिक्ष के क्षेत्र में दबदबे की घोषणा है। ठीक है, हमें निसार मिशन से आंकड़ों के जरिये अंतरिक्ष से जमीन और उसके कुछ भीतर देखने की ताकत मिल गई, लेकिन जब तक हम उन आंकड़ों के समझने और इस्तेमाल करने की क्षमता नहीं विकसित करेंगे, यह उपलब्धि अधूरी है। इसरो को रिसोर्ससैट, कार्टोसैट, इनसैट आदि के ज़रिए उपग्रह डाटा पहले भी मिलता रहा है लेकिन इतिहास साक्षी है कि इन उच्च-गुणवत्ता वाली सूचनाओं का जमीनी उपयोग अत्यंत सीमित, विलंबित या अप्रासंगिक हुआ है। अधिकतर मामलों में अनुभव यह रहा कि ज़िला प्रशासन, कृषि विभाग, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या नगर निगम जैसी संस्थाओं के पास न तो उपग्रह डेटा को समझने की विशेषज्ञता होती है और न ही उसे अपने कार्य में लागू करने के लिए आवश्यक तकनीकी अवसंरचना एवं विशेषज्ञ मानव बल उपलब्ध होता है। बेशक देश में रिमोट सेंसिंग डेटा के इस्तेमाल में सिस्टम गैप है। इसके अलावा यहां न केवल तकनीकी ज्ञान अत्यल्प है बल्कि नीतिगत प्राथमिकता भी नहीं है तिस पर प्रशासनिक कदाचार और ज़िम्मेदारी का लोप अलग से एक समस्या है।
फसल बीमा योजना में किसानों की क्षति का आंकलन करने के लिए ‘निसार’ का बेहद प्रामाणिक डेटा देगा लेकिन बीमा कंपनियां और सरकारी एजेंसियां, पारदर्शी और तेज़ दावा निपटान करेंगी ही, यह तो वह तय नहीं कर सकता। इसरो को चाहिये कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, फसल बीमा योजना, मौसम विभाग वगैरह जैसी एजेंसियों को उपग्रह डेटा को विश्लेषित कर काम का आंकड़ा देकर यह भी सुनिश्चित करें कि राज्य सरकारें, स्थानीय निकाय और निजी क्षेत्र उसे समझें भी और तद्नुरूप उसका पर्याप्त एवं उचित प्रयोग करें। एक और बात डेटा, सूचना का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए और पंचायत तथा ज़िला स्तर तक जियोस्पेशियल डेटा के प्रशिक्षण को अनिवार्य कर देना चाहिए। तैनात अधिकारी उपग्रह डेटा को अपने दायित्वों के निर्वहन में कैसे इस्तेमाल करें, इसे सरल स्थानीय भाषा में लोगों तक कैसे पहुंचाएं, सिखाया जाए। ..ताकि किसान, नागरिक, और स्थानीय योजनाकार इसका इस्तेमाल करें। रिमोट सेंसिंग आधारित सेवाएं आम जनता तक लाने वाले उद्यमों को नीति और निवेश का समर्थन देना होगा। वे उपरोक्त में कामों मदद दे सकते हैं। संस्थागत और प्रशासनिक ढांचे को इस तकनीक के अनुकूल बनाए बिना आंकड़े आमजन के काम नहीं आयेंगे। निसार की सफलता उसके लॉन्च से नहीं, उससे मिलने वाली सूचनाओं के प्रभावी उपयोग से तय होगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर