भारत के कई राज्यों में विभिन्न प्रजातियों के बंदर

भारत की धार्मिक जनता बंदरों को रामायण के हनुमान जी का अवतार मानती है। इसी कारण गाय की तरह बंदरों का भी काफी आदर किया जाता है। मंदिरों, जंगलों व तीर्थस्थलों पर इनकी काफी संख्या देखी जा सकती है। बंदर काफी उत्पात भी करते हैं।
प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ रामायण में जो महर्षि वाल्मीकि का एक अमूल्य गं्रथ है, बंदरों का काफी वर्णन किया गया है। इसके किष्किंधा कांड में सीमा की खोज में भेजे जाने वाले तरह-तरह के बंदरों का उल्लेख है। इस वर्णन में उस समय भारत में रहने वाले बंदरों की शक्ल सूरत, रंग-रूप, आकार-प्रकार का कुछ-कुछ आभास होता है। सीता की खोज के लिए चारों दिशाओं में अलग-अलग बंदर भेजे गये थे। पूर्व में ‘विनत’, दक्षिण में ‘हनुमान’, नील, उल्लकामुख, पश्चिम में ‘सुपेषण’ एवं उत्तर दिशा में ‘शतबलि’ आदि वानर भेजे गये थे। 
इन वानरों में से आजकल उत्तर भारत के ‘बंगाल बंदर’ और दक्षिण भारत के ‘मद्रास बंदर’ काफी संख्या में मिल रहे हैं। केरल में नील वानर पाया जाता है। इसका रंग काला, भयानक सूरत, घनी सलेटी अयाल आदि के कारण यह सिंह की तरह नज़र आता है। इसकी पूंछ पर बालों का एक गुच्छा होता है। यह घने जंगलों में 15 से 20 के झुड में रहने वाला शर्मीला बंदर है। इसकी बोली आदमी की तरह होती है।
बंगाल में पाया जाने वाला बंदर आधा मीटर लंबा होता है। इसकी पूंछ एक तिहाई मीटर लंबी होती है। इनका रंग भूरा व कभी-कभी राख के रंग का होता है। ये बंदर जंगल में फल, चिड़ियों के अंड़े, कीट पतंगे आदि खाते हैं लेकिन शहर का बंदर रोटी, मिठाई, खाना आदि खाता है। यह सांप को मार देता है लेकिन उसे खाता नहीं है। ये बंदर हिमालय से गोदावरी तट तक पाये जाते हैं।
मद्रास में पाये जाने वाले बंदर, बंगाल के बंदर से आकार में कुछ छोटे होते हैं। इनका रंग भूरा होता है। इनकी पूंछ लंबी होती है। इनके अतिरिक्त मध्य भारत (हिमालय की तराई, गुजरात, बंगाल, मध्य प्रदेश में एक विशेष प्रकार का बंदर पाया जाता है। इसे लंगूर कहते हैं। धार्मिक लोग इसे हनुमान जी का रूप मानते हैं। इसका मुंह काला, कद दो फीट एवं पूंछ तीन फुट लंबी होती है। 
अन्य बंदर लंगूर से काफी डरते हैं। वे लंगूर को देखते ही भाग जाते हैं। इसका चेहरा, कान, तलुवे बिल्कुल काले होते हैं लेकिन सिर, हाथ, पैर बदन सलेटी रंग के होते हैं। ये किसी भी विचित्र जानवर या शेर को जंगल में देखकर काफी शोर मचाते हैं। ये हमेशा पानी के निकट अपना निवास स्थान बनाते हैं। लंगूर की मादा एक बार में केवल एक बच्चे को जन्म देती है। इसे आसानी से पालतू नहीं बनाया जा सकता।
जंगल में रहने वाले पशुओं में बंदर एक ऐसी प्रजाति है जो लुप्त होने से बची हुई है। इसका कारण यह है कि लोग इसका शिकार नहीं करते। धार्मिक जनता इसे हनुमान जी का रूप मानकर इसका संरक्षण करती है। और भी कई अन्य कारण हैं जिसकी वजह से बंदरों की संख्या में कमी नहीं आयी है। (उर्वशी)

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