चीन की सबसे बड़ी बांध परियोजना पर भारत चुप क्यों ?

चीन के प्रति भारत की विदेश नीति कैसी हो गई है, इसे लेकर भाजपा के सांसद रहे सुब्रमण्यम स्वामी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तरह-तरह के आरोपों को अलग भी रख दिया जाए तो यह यह सच सबको दिख रहा है कि चीन के सामने भारत की विदेश नीति घुटने टेकने वाली है। पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई के समय चीन ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया। उसे सेटेलाइट के ज़रिये भारतीय विमानों की पोज़िशन बताई और उन्हें मार गिराने में मदद की। इसके बावजूद भारत के रक्षा और विदेश मंत्री चीन के दौरे पर गए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया में बड़े गर्व के साथ पोस्ट की। भारत की कमज़ोर विदेश नीति का सबसे बड़ा सबूत चीन के सबसे बड़े बांध पर भारत की चुप्पी है। चीन ने 19 जुलाई को ऐलान किया कि वह तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर मानव इतिहास का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। इसके ज़रिये वह समूचे पूर्वोत्तर की पारिस्थितिकी को नियंत्रित करेगा और जब चाहेगा तब उसे तहस-नहस कर देगा। इस बांध के ज़रिये वह पानी रोक कर सूखे की स्थिति पैदा कर सकता है और पानी छोड़ कर बाढ़ से तबाही मचा सकता है, लेकिन भारत इस पर कुछ नहीं कर रहा है। अगर भारत इस तरह का कोई काम कर रहा होता तो चीन अब तक प्रोपेगेंडा करके पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करता और काम रुकवाने का भरसक प्रयास करता। 
मोदी राज्यसभा में इसलिए नहीं गए 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में तो पहलगाम कांड और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हुई चर्चा का जवाब दिया, जहां वह एक घंटा 40 मिनट बोले और देश के लोगों को कांग्रेस का इतिहास पढ़ाया, लेकिन राज्यसभा में हुई चर्चा का जवाब उनकी जगह गृह मंत्री अमित शाह ने दिया। विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिल्ली में मौजूद रह कर सदन में नहीं आने को सदन का अपमान बताया और उनके नेतृत्व में सभी विपक्षी पार्टियों ने अमित शाह के भाषण के दौरान सदन से वॉकआउट किया। दूसरी ओर अमित शाह ने कहा कि विपक्ष उन्हीं से नहीं निबट पा रहा है तो प्रधानमंत्री को क्यों बुलाना चाह रहा है। इससे उन्होंने विपक्ष को कमज़ोर और नीचा दिखाने की कोशिश तो की, लेकिन विपक्ष के सवालों का जवाब नहीं दिया। यह सवाल अब भी कायम है कि प्रधानमंत्री जब दिल्ली में थे तो जवाब देने राज्यसभा में क्यों नहीं गए? माना जा रहा है कि वह युद्ध विराम पर लोकसभा में दिया गया बयान दोहराना नहीं चाहते थे। वह नहीं चाहते थे कि अमरीका और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को और नाराज़ करें। यह भी माना जा रहा है कि भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने और रूस के साथ कारोबार करने की वजह से जुर्माना लगाने का ट्रम्प का फैसला लोकसभा में दिए मोदी के भाषण से जुड़ा है। कहा जा रहा है कि ट्रम्प इस बात से नाराज़ है कि उन्हें युद्ध विराम का श्रेय नहीं दिया जा रहा है। यह बात उन्होंने 29 जुलाई को एक इंटरव्यू में भी कही। 
लेकिन पाकिस्तान से खेलने में परहेज नहीं
एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट के कार्यक्रम की घोषणा से भारतीय जनमत के एक बड़े हिस्से में पैदा हुए गुस्से को समझा जा सकता है। यह प्रतिक्रिया संकेत है कि भारतीय शासक समूहों के अपनी सुविधा से ‘पाकिस्तान कार्ड’ खेलने के रवैये से लोग अब तंग आ चुके हैं। वे उनकी इन ‘सुविधाओं’ को समझने भी लगे हैं। यह बात वर्तमान शासक दल और उससे जुड़े समूहों ने ही फैलाई कि ‘गोली और बोली’ साथ-साथ नहीं चल सकती। इसी क्रम में कहा गया कि दहशतगर्दी के आका देश के साथ खेलना जारी नहीं रखा जा सकता। अब तो बात यहां तक पहुंच गई है कि ‘खून और (सिंधु समझौते के तहत) पानी साथ-साथ नहीं बह सकते।’ चूंकि ऐसी बातों पर देश में राजनीतिक आम सहमति है और मीडिया इनके पक्ष में जोर-शोर से प्रचार करता है, तो स्वाभाविक है कि आम लोग इसे व्यवहार का उचित पैमाना समझते हैं। मगर अब ऐलान हुआ है कि एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट यूएई में होगा। उसमें 14 सितम्बर को भारत-पाकिस्तान का मैच होगा। आखिर आम लोग इसे कैसे गले उतार सकते हैं? तो यह सहज प्रतिक्रिया आई है कि सब धंधे की बात है। जहां पैसे के बड़े दांव लगे हो, वहां देशभक्ति पृष्ठभूमि में डाल दी जाती है। किस खेल में या किस टूर्नामेंट में पाकिस्तान से भारत खेले या न खेले, यह मनमाने ढंग से तय किया जाता रहा है। इसलिए बीसीसीआई और अन्य खेल संस्थानों के साथ-साथ भारत सरकार की नीयत पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं।
एडीएम के लिए अंग्रेज़ी बोलना क्यों ज़रूरी?
हिन्दी और अन्य भाषाओं को लेकर देश में चल रहे विवाद के बीच उत्तराखंड में वहां एक अधिकारी की कार्य क्षमता पर हाईकोर्ट ने इस आधार पर सवाल उठाया है कि उन्हें अंग्रेज़ी बोलना नहीं आती है। यह हैरान करने वाली बात है। धारा-प्रवाह अंग्रेज़ी नहीं बोल सकना भारत में किसी अधिकारी की अयोग्यता कैसे हो सकती है? यह मामला उत्तराखंड के नैनीताल का है, जहां से एडीएम रैंक के अधिकारी ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश गुणाथन नरेंद्र और जस्टिस आलोक महारा की पीठ के सामने हिन्दी में अपनी बात रखी। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि वह हिन्दी में अपनी बात क्यों रख रहे हैं? इसके जवाब में एडीएम ने कहा कि वह अंग्रेजी लिख और समझ सकते हैं, लेकिन धारा-प्रवाह बोल नहीं सकते हैं। इस बात पर मुख्य न्यायाधीश ने राज्य के मुख्य सचिव और राज्य के निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट तलब करते हुए कहा कि वे बताएं कि अगर कोई अधिकारी अंग्रेज़ी नहीं बोल सकता है तो इस पद पर रह कर वह प्रभावी तरीके से कैसे काम कर सकता है? कर्नाटक हाईकोर्ट में पहली बार जज बने जस्टिस नरेंद्र आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में रहे हैं और उसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने हैं। बहरहाल यह चर्चा का मुद्दा बन गया है कि हिन्दी क्षेत्र में किसी अधिकारी को अंग्रेज़ी नहीं आती है तो उसकी कार्यक्षमता कैसे प्रभावित हो सकती है? अगर उसे हिन्दी नहीं आती तो यह सवाल ज़रूर उठ सकता था।
ब्रजभूषण से योगी की मुलाकात का मतलब
लगता है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने लिए कोई संकट आता देख रहे हैं। इस बात का संकेत उनकी हाल की गतिविधियों से मिलता है। पिछले दिनों उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्व सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह को मिलने के लिए बुलाया। दोनों की यह मुलाकात अढ़ाई साल बाद हुई। इस बीच लोकसभा का चुनाव हुआ और गोंडा की सीट से ब्रजभूषण के बेटे करण भूषण को भाजपा ने टिकट दिया। चुनाव के दौरान भी उनकी मुलाकात योगी से नहीं हुई। वह अपने दम पर चुनाव लड़े और जीते। चुनाव प्रचार के दौरान एक पत्रकार ने उनसे कहा था कि गोंडा में भाजपा हार रही है तो ब्रजभूषण ने कहा था कि अगर भाजपा गोंडा में हार रही है तो इसका मतलब है कि उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत रही है। वही ब्रजभूषण शरण सिंह 31 महीने के बाद योगी से मिले। मुलाकात के बाद कहा, ‘योगी बड़े हैं तो बड़े को ही झुकना होता है। उन्होंने बुलाया तो हम गए।’ ब्रजभूषण ने साफ किया कि वह खुद मिलने नहीं गए। योगी झुके और बुलाया तो वह मिलने गए। अब सवाल है कि योगी क्यों झुके? क्या राजपूत एकता का प्रयास हो रहा है? गौरतलब है कि ब्रजभूषण शरण सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार और झारखंड के राजपूत समुदाय में खासा असर रखते हैं। योगी ने बुला कर मुलाकात की है तो इसका मतलब है कि योगी ने आपात् तैयारियां शुरू कर दी है, ताकि भाजपा आलाकमान उनके साथ कोई छेड़छाड़ करने की कोशिश करे तो उससे निबटा जा सके। 

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