अन्तरिक्ष में इसरो की धाक

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान के मानचित्र पर नि:संदेह वह एक अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक पल रहा होगा जब देश के अन्तरिक्ष अनुसंधान केन्द्र इसरो द्वारा नासा के सहयोग से विश्व का एक अति महत्त्वपूर्ण एवं बहुद्देश्यीय उपग्रह निसार सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया गया। यह उपग्रह विश्व का एक सर्वाधिक महंगा उपग्रह भी है। इस उपग्रह की विशेषताओं में एक सबसे बड़ी उपलब्धि यह भी है कि यह अन्तरिक्ष से धरती पर घने-अन्धेरे पक्षों और गहन वन क्षेत्रों के भीतर तक की गतिविधियों को जांच/भेद सकता है। निसार के इस सफल प्रक्षेपण के बाद नि:संदेह इसरो और नासा धरती पर बरसने वाली प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी अधिक कुशलता एवं तत्परता से कर सकेंगे। देश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से जी.एस.एल.वी.-एफ 16 रॉकेट के ज़रिये प्रक्षेपित हुए इस उपग्रह के कार्यक्रमों में धरती की प्रत्येक छोटी से बड़ी हलचल पर सतत् नज़र बनाये रखना भी शामिल है। इस सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो न केवल भूकम्पों और भू-स्खलन जैसी आपदाओं का अग्रिम पता लगा सकेगा, अपितु हिमनदों के पिघलने की थाह का भी पता चल सकेगा। फसली चक्र, भूमि की नमी और समुद्र-तल और पानी की गहराई भी इसके द्वारा प्रदत्त चित्रों में साफ-साफ दिखाई देगी। प्राकृतिक आपदाओं यथा बाढ़, चक्रवाती तूफान भी इसकी नज़र में रहेंगे। निसार के प्रक्षेपण का यह संयुक्त मिशन अन्तरिक्ष एवं धरती पर विज्ञान के क्षेत्र में एक नई और बड़ी क्रांति के आह्वान का बायस भी बन सकता है। इससे समुद्र के भीतर तक भी नज़र रखने में सफलता मिल सकती है। इस बहुद्देश्यीय उपग्रह के ज़रिये जलवायु परिवर्तन और मौसमों के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने का प्रावधान भी है। बेशक निसार का प्रक्षेपण भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान केन्द्र इसरो से किया गया है किन्तु इसकी परियोजना से लेकर प्रक्षेपण तक प्रत्येक चरण पर इसरो एवं नासा का सक्रिय सहयोग रहा है। निसार का शाब्दिक अर्थ भी बेशक बलिदान से लिया जाता है, किन्तु यहां यह नामकरण नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार से किया गया है। 
भारत के अन्तरिक्ष अनुसंधान अभियान ने इसरो के तहत अपने स़फर में स्थापना काल 15 अगस्त, 1969 से लेकर अब तक यानि 30 जुलाई, 2025 तक के अरसे में अनेक पड़ाव तय किये हैं। इसरो की ओर से अब तक चलाये गये कुल 131 मिशनों में से 101 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए गए हैं। वैसे भी इसरो अपनी उपलब्धियों के दृष्टिगत विश्व के कुछ श्रेष्ठ केन्द्रों में गिना जाने लगा है। इसरो के 2025 से अगले एक दशक तक के काल में मिशन ‘गगनयान’ को संचालित करना प्रमुख है जिसकी चर्चा आज वैश्विक धरातल पर है। अगले दो वर्षों में चार पड़ावों के तहत मिशन गगनयान को पुन: संचालित किए जाने की भी योजना है। इससे पूर्व इसरो की ओर से वर्ष 2008 से 2009 तक मिशन चन्द्रयान को भी संचालित किया गया है। अभी इसी वर्ष जून मास में भारतीय अन्तरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला लगभग दो सप्ताह का मिशन सफलतापूर्वक पूरा करके धरती पर लौटे हैं। शुभांशु शुक्ला का यह मिशन भी वर्ष 2027 में लांच होने वाले मिशन गगनयान की ही एक कड़ी है। जहां तक मिशन निसार की तकनीकी संरचना और तकनीकी पक्ष का संबंध है, निसार एक राडार प्रणाली है और कि इसके दोनों राडार एक साथ पूरी पृथ्वी को अपने दायरे में लेने में पूरी तरह सक्षम हैं। पृथ्वी से 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर रह कर निसार धरती की परिक्रमा करेगा। इसमें पूरी पृथ्वी को प्रत्येक 12 दिन के भीतर प्रत्येक पक्ष से निरीक्षण कर लेने की क्षमता है।  इसरो के निदेशक नीलेश एम. देसाई के अनुसार निसार का प्रक्षेपण सृष्टि में गेम-चेंजर साबित हो सकता है।  यह मिशन विश्व बन्धुत्व की विचारधारा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वैश्विक दृष्टिकोण को भी लक्षित करता है क्योंकि निसार का सम्पूर्ण हासिल मानव-कल्याण को अर्पित है। निसार का सम्पूर्ण डाटा पूरे विश्व के लिए लाभकारी सिद्ध होने का दावा भी किया गया है।
हम समझते हैं, कि नि:संदेह निसार का प्रक्षेपण एक ओर जहां अन्तरिक्ष अनुसंधान में भारत की बढ़ती शक्ति और हैसियत का प्रतीक है, वहीं यह भारत और अमरीका के बीच अन्तरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में बढ़ते सहयोग का भी परिचायक है। इस सफलता के साथ दोनों देशों के बीच विज्ञान के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सहयोग-संबंध प्रगाढ़ होने की बड़ी सम्भावना है। नासा ने सचमुच इस मिशन की सफलता हेतु व्यापक स्तर पर भूमिका निभाई है। इस समझौते के अनुसार निसार से प्राप्त होने वाले डाटा को दोनों देशों के बीच ज़रूरत और उपयोगिता के आधार पर वितरित किया जाएगा। यह डाटा सरकार और वैज्ञानिकों के लिए अलग-अलग धरातल पर उपलब्ध रहेगा। इस प्रकार दोनों देश उपलब्ध आंकड़ों का उपयोग कृषि सुधार, विकास कार्यक्रमों और वैज्ञानिक धरातल पर कर सकेंगे। हम समझते हैं कि नि:संदेह निसार की सफलता ने देश के अन्तरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र की उपलब्धियों के धरातल पर एक और बड़ा आयाम स्थापित किया है। इससे न केवल इसरो की धाक बढ़ी है, अपितु देश के अन्तरिक्ष व्यापार-व्योम का भी विस्तार किया है। 

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