गेटवे ऑफ इंडिया : इतिहास, विरासत और आज का गौरव
मुम्बई के समुद्र तट पर स्थित ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ न केवल स्थापत्य का एक अनुपम उदाहरण है, बल्कि यह भारत के उपनिवेशी इतिहास, आज़ादी की गाथा और आधुनिक भारत की जीवंत पहचान का प्रतीक भी है। यह स्मारक अरब सागर के किनारे स्थित है और हर वर्ष लाखों पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। इसकी भव्य मेहराब, सांस्कृतिक महत्व और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी स्मृतियां इसे केवल एक स्मारक नहीं बल्कि एक जीवित इतिहास बनाती हैं।
‘गेटवे ऑफ इंडिया’ का निर्माण ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी की भारत यात्रा की स्मृति में किया गया था। वर्ष 1911 में जब सम्राट भारत आए तो उनका स्वागत यहीं पर हुआ, हालांकि तब तक स्मारक का निर्माण नहीं हुआ था। 31 मार्च, 1911 को इसका शिलान्यास किया गया और इसका डिजाइन प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट ने तैयार किया। निर्माण कार्य 1915 में शुरू हुआ और इसे वर्ष 1924 में पूर्ण कर जनता के लिए खोल दिया गया। इसके निर्माण में पीले बेसाल्ट पत्थर और मजबूत कंक्रीट का उपयोग किया गया। इसकी ऊंचाई लगभग 26 मीटर है। इसकी वास्तुकला में इंडो-सारसेनिक शैली की झलक मिलती है, जिसमें हिन्दू, मुस्लिम और यूरोपीय स्थापत्य परम्पराओं का संगम दिखाई देता है। मुख्य द्वार पर बनी विशाल मेहराब, बारीक नक्काशी और चारों ओर की मीनारें इस स्मारक को अत्यन्त भव्य रूप प्रदान करती हैं।
इतिहास के पन्नों में यह स्थल कई घटनाओं का साक्षी रहा है। सबसे महत्वपूर्ण क्षण वह था जब 28 फरवरी, 1948 को ब्रिटिश सेना ने भारत छोड़ते समय अंतिम बार यहीं से समुद्री जहाज़ पर सवार होकर देश को अलविदा कहा। इस तरह यह स्थान औपनिवेशिक शासन के अंत और स्वतंत्र भारत के प्रारंभ का प्रतीक बन गया। स्वतंत्रता संग्राम के समय भी यह स्थान आंदोलनों और जनसभाओं का गवाह बना। समय के साथ यह केवल एक दर्शनीय स्थल नहीं रहा, बल्कि मुम्बई की आत्मा का हिस्सा बन गया।
आज ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ मुंबई की पहचान है। इसके सामने स्थित ऐतिहासिक ताज महल पैलेस होटल और अरब सागर की विशाल लहरें इसे एक अनुपम दृश्य प्रदान करती हैं। यहां से एलिफेंटा की गुफाओं और अन्य द्वीपों के लिए नाव सेवाएं भी उपलब्ध हैं, जो पर्यटकों के लिए एक खास आकर्षण बन चुकी हैं। दिन में यहां हज़ारों की संख्या में देशी-विदेशी सैलानी जुटते हैं, तो शाम होते ही सूर्यास्त की सुनहरी छाया में यह स्मारक और भी अलौकिक दिखाई देता है। आस-पास के क्षेत्र में स्थानीय कलाकार, चित्रकार, विक्रेता और पथ-प्रदर्शक लगातार इसे सांस्कृतिक रूप से जीवंत बनाए रखते हैं।
2008 के मुम्बई आतंकी हमलों के बाद इस क्षेत्र की सुरक्षा को अत्यधिक मज़बूत किया गया। आज गेटवे के आस-पास पुलिस की कड़ी निगरानी, सीसीटीवी कैमरे और मेटल डिटेक्टर जैसे सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए गए हैं, जिससे यहां आने वाले लोग निश्चिन्त होकर इसकी सुंदरता और महत्व का आनंद ले सकें।
‘गेटवे ऑफ इंडिया’ केवल एक स्थापत्य स्मारक नहीं है, यह भारत के इतिहास, उसकी अस्मिता, संघर्ष और गौरव की प्रतिमूर्ति है। यह वह द्वार है जहां से एक दौर में विदेशी शासक भारत आए थे और यहीं से उन्हें वापस भी लौटना पड़ा। आज यह स्मारक स्वतंत्र भारत की संप्रभुता, उसकी सांस्कृतिक शक्ति और पर्यटन की बढ़ती भूमिका का प्रतीक बन चुका है। यह स्मारक अपने भीतर न जाने कितनी कहानियां समेटे खड़ा है, अतीत की स्मृति, वर्तमान की चेतना और भविष्य की प्रेरणा बनकर। ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ आज भी उसी गरिमा और भव्यता के साथ खड़ा है, जैसे इतिहास ने उसे सौंपा था—नतमस्तक नहीं, बल्कि गर्व से ऊंचा।
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