ट्रम्प के टैरिफ से निपटने हेतु भारत को संयम की ज़रूरत

अमरीका को निर्यात शुल्क में कमी की भारत की उम्मीदें बुधवार को तब धराशायी हो गईं जब ट्रम्प प्रशासन ने रूस से हथियार और कच्चा तेल खरीदने पर 25 प्रतिशत शुल्क और एक अनिर्दिष्ट जुर्माना लगाने की घोषणा की। नरेंद्र मोदी सरकार सतर्कता से प्रतिक्रिया दे रही है, क्योंकि इन जुर्मानों का पूरा प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं है। भारत के निर्यात का अर्थव्यवस्था और शेयर बाज़ार पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंताएं जताई गई हैं। 30 जुलाई को ट्रम्प ने भारत से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा करते हुए कहा, ‘हालांकि भारत हमारा मित्र है, हमने उनके साथ बहुत कम व्यापार किया है क्योंकि उनके टैरिफ दुनिया भर में सबसे ज्यादा हैं और उनके पास चुनौतीपूर्ण गैर-टैरिफ व्यापार बाधाएं हैं।’
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि 25 प्रतिशत टैरिफ 2025-26 में भारत की निर्यात वृद्धि को कम कर सकते हैं, संभवत: इसमें 40 आधार अंकों तक की कमी आयेगी। अतिरिक्त दंड आर्थिक परिदृश्य को और नुकसान पहुंचा सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2025 में भारत ने संयुक्त राज्य अमरीका को 10.5 अरब डॉलर की दवाइयां और 14.6 अरब डॉलर के स्मार्टफोन बेचे। ट्रम्प ने 1 अगस्त से शुरू होने वाले नए टैरिफ में इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों को शामिल नहीं किया। उसी वर्ष भारत का संयुक्त राज्य अमरीका के साथ 41 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष था। यह अधिशेष 2023-24 में 35.32 अरब डॉलर और 2022-23 में 27.7 अरब डॉलर था।
ट्रम्प की इस आश्चर्यजनक घोषणा पर विपक्षी नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कांग्रेस पार्टी ने कहा, ‘देश अब मोदी की ‘दोस्ती’ की कीमत चुका रहा है।’ आलोचक ट्रम्प द्वारा मोदी को अपना दोस्त कहने के बावजूद उनके द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ पर सवाल उठा रहे हैं। कारण स्पष्ट थे- रूस का प्रभाव, भारत के साथ व्यापार व व्यापार वार्ता के दौरान भारत का दृढ़ रुख। यह आक्रामक व्यवहार भू-राजनीतिक हताशा से भी उपजा है। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि ट्रम्प भारतीय बाज़ारों में प्रतिबंधों से हताश हैं, जिसने उनके निर्णय को प्रभावित किया है। अमरीका लंबे समय से अमरीकी वस्तुओं पर उच्च शुल्कों की शिकायत करता रहा है। हालांकि ट्रम्प ने शुरू में भारत को एक प्रमुख व्यापार प्राथमिकता के रूप में देखा था लेकिन धीमी प्रगति ने वाशिंगटन में हताशा पैदा कर दी है। नई दिल्ली के सतर्क रुख के कारण केवल सीमित रियायतें ही मिली हैं।
इस कदम का उद्देश्य नई दिल्ली पर अमरीकी मांगों को पूरा करने के लिए दबाव बनाना है, खासकर तब जब अमरीका ने समय सीमा से ठीक दो दिन पहले जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ अनुकूल व्यापार समझौते हासिल किए हैं। भारत के प्रमुख निर्यातों में स्मार्टफोन, दवाइयां, रत्न, वस्त्र, औद्योगिक मशीनरी, आभूषण और समुद्री भोजन शामिल हैं। ये सभी अब खतरे में हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में संयुक्त राज्य अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 186 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया था। भारत के निर्यात में अमरीका का योगदान 18 प्रतिशत और आयात में 6.22 प्रतिशत है। टैरिफ में बदलाव दोनों अर्थव्यवस्थाओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी की, ‘यह रूस के साथ भारत के संबंधों के बारे में है,’ और कहा, ‘वे अपनी मृत अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ नीचे खींच सकते हैं। हम भारत के साथ उसके उच्च टैरिफ के कारण बहुत कम व्यापार करते हैं। इसे ऐसे ही रहने दें।’
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए रूस सहित विभिन्न देशों से सामान मंगवाने का फैसला किया। ट्रम्प भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन उन्होंने ब्रिक्स सदस्यता से जुड़ा एक व्यापार दंड लगाया है। परोक्ष बातचीत चल रही है और विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने के समाधान निकल सकते हैं। नई दिल्ली स्थिति को संभालने की कोशिश कर रही है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया कि सरकार किसानों, श्रमिकों और छोटे व्यवसाय मालिकों का समर्थन करने के लिए कदम उठाएगी। वह इन मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार हैं। सब कुछ स्पष्ट नहीं है। आईसीआरए, नोमुरा और एएनजेड के अनुमान बताते हैं कि जीडीपी पर इसका प्रभाव मामूली होगा, क्योंकि भारत वार्षिक अमरीका को लगभग 87 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है जो उसके कुल जीडीपी का केवल 2 से 3 प्रतिशत है। ट्रम्प ने उन रिपोर्टों की सराहना की जिनमें कहा गया था कि भारत अमरीकी दबाव के बीच रूसी तेल खरीदना बंद कर सकता है। उन्होंने इसे ‘एक अच्छा कदम’ बताया। भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि भारतीय तेल कंपनियां मूल्य निर्धारण और रसद के कारण रूसी तेल का आयात जारी रख रही हैं। इन आयातों को रोकने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और व्यापक भू-राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं। नई दिल्ली रूस के साथ अपने संबंधों में बदलाव को स्वीकार करता है लेकिन उसे विश्वास है कि साझेदारी बढ़ती रहेगी। चुनौतियों के बावजूद कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है क्योंकि दोनों देशों के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर अगले दौर की वार्ता के लिए एक अमरीकी प्रतिनिधिमंडल 25 अगस्त को भारत आने वाला है। ट्रम्प प्रशासन गहरी बाजार पहुंच चाहता है।
मोदी सरकार वर्तमान में 25 प्रतिशत टैरिफ से जूझ रही है और इस बाधा को दूर करने के तरीके तलाश रही है। नई दिल्ली द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगात्मक प्रयास शुरू किए जाने के बाद व्यापार रियायतें हासिल करने के लिए विभिन्न देशों के प्रयासों के बीच, इस महीने के अंत में होने वाली आगामी प्रमुख वार्ताएं और भी ज़रूरी और महत्वपूर्ण हो गई हैं। ट्रम्प एक ऐसे व्यवसायी हैं जो बातचीत करना जानते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि नई दिल्ली अपने प्रशासन के दबाव को कैसे संभालती है और टैरिफ कम करने के लिए कैसे काम करती है। सवाल यह है कि कितना देना है और कितना लेना है। (संवाद)

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