अपराधों में बढ़ गया है डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल

राजस्थान के जोधपुर ज़िले के एक मीडिया इन्फ्लुएंसर को आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देते हुए 20 लाख रुपये की मांग पर पुलिस ने तत्काल कार्रवाई कर दो कथित अपराधियों को पकड़ा है। मीडिया इन्फ्लुएंसर और उसकी कामेडियन पत्नी को उनके आपत्तिजनक वीडिया वायरल करने की धमकी दी गई। खैर यह तो इन्होंने हिम्मत दिखाकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी अन्यथा देश दुनिया में इस तरह की धमकियां देकर व डरा-धमकाकर वसूली करने के अपराधों की बाढ़ सी आ गई है। दरअसल डिजिटल तकनीक का अपराध में इस्तेतमाल आम होता जा रहा है। डिजिटल तकनीक के कारण अपराधियों के बढ़ते हौसले की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अजय भनोट ने एक महिला की निजी तस्वीरों को वाट्सएप पर सार्वजनिक करने के मामलें में ज़मानत देने से इंकार करते हुए सख्त टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति ने 2023 में भी सोशल मीडिया में आपत्तिजनक वीडियो अपलोड के प्रकरण में गंभीर टिप्पणी की थी। अपराधी विभिन्न माध्यमों से डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल कर गंभीर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। कम्प्यूटर, कम्प्यूटर नेटवर्क, डेटाबेस, डिजिटल डिवाइस, इंटरनेट आदि के माध्यम से नित नए अपराध की तरीके अपना रहे हैं। सोशल मीडिया और स्मार्टफोन का खासतौर से इस्तेमाल करते हुए लोगों की निजी ज़िंदगी को प्रभावित करने के साथ ही डिजिटल अरेस्ट, साइबर ठगी जैसे गंभीर अपराध बेखौफ कर रहे रहे हैं। मज़े की बात यह है कि डिजिटल अरेस्ट या बैंक अकाउंट ठगी के शिकार होने वाले अधिकतर लोग अच्छे पढ़े-लिखे, समाज में अच्छे पदों से सेवानिवृत या यूं कहे कि समझदार लोग ही अधिक शिकार हो रहे है। अभी कुछ दिनों पहले ही एक माननीय न्यायमूर्ति ने कहा कि वह साइबर ठगी के शिकार होते-होते बचे हैं। डिजिटल तकनीक से अपराध करने वालों के हौसलों को देखिये कि कुछ घंटों नहीं अपितु कई दिनों तक डिजिटल अरेस्ट रख कर हज़ारों नही बल्कि लाखों रुपए अपने खातों में डलवा रहे हैं। यह सब तो तब है जब कि सरकार मोबाइल टोन के समय ही संदेश के माध्यम से लोगों का सावधान किया जा रहा है, परन्तु इस सबके बाजवूद इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। 
कम्प्यूटर आधारित अपराधों का केवल अमरीका का 2015 का आंकड़ा ही चौकाने वाला है जिसमें एफबीआई के अनुसार 2 लाख 88 हज़ार से भी अधिक शिकायतों के साथ ही केवल एक वर्ष में 445 अरब डॉलर के नुकसान का दावा किया गया। साइबर ठगी के मामलों में रूस पहले पायदान पर तो यूक्रेन दूसरे पायदान पर है। इसके बाद चीन, अमरीका, नाइज़ीरिया और रोमानिया का नम्बर आता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है साइबर ठगों के सारी दुनिया में हौसले बुलंद है। 
भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन साल में ही ठगी के नए तरीके से ठगी की राशि 20 गुणा बढ़ गई है। 2025 के शुरुआती दो महीनों में ही 17 हज़ार 718 से अधिक मामलों में 210 करोड़ 21 लाख रुपये से अधिक की ठगी हो चुकी है। साल 2022 में साइबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट या इस तरह की ब्लेक मेलिंग, ऑनलाइन ठगी आदि के 39925 मामलों में 91 करोड़ 14 लाख की ठगी हुई थी, जो एक साल बाद ही 2023 में मामले बढ़ कर 60676 हो गए और इसमें 339 करोड़ रुपये की ठगी हुई। लाख प्रयासों के बावजूद 2024 में एक लाख 23 हज़ार 672 मामलों में 1935 करोड़ 51 लाख रुपये की ठगी हुई। यह तो वे मामले हैं जो पुलिस में दर्ज हुए हैं जबकि बहुत-से मामले ऐसे भी होंगे जो दर्ज नहीं करवाए गए होंगे। हैरानी की बात यह है कि लोगों के ठगी के तरीके से अवगत होने के बावजूद यह होता जा रहा है। हालांकि झारखण्ड के जमातड़ा से ठगों के तंत्र को तोड़ दिया गया पर देश में एक दो नहीं अपितु 74 ज़िलों में इस तरह की ठगी करने वालों के हॉटस्पॉट विकसित हो गए। झारखण्ड, राजस्थान, हरियाणा और बिहार के केन्द्र पहले पांच प्रमुख सेंटर विकसित हो गए। 
हैकिंग, रेनसमवेयर, साइबर बुलिंग, ऑनलाईन धोखाधड़ी, ब्लेक मेलिंग अपराधियों के प्रमुख हथियार है। व्यक्ति को इस तरह से सम्मोहित व भयग्रस्त कर देते हैं कि समझदार और पढ़े लिखे होने के बावजूद पैसा गंवा बैठते हैं। ठगी, जबरन वसूली, धनषोधन, औद्योगिक जानकारी चुराने, ड्रग, ब्लेक मेलिंग, डराने-धमकाने सहित विभिन्न तरह के अपराधों को अंजाम देने में अपराधियों ने विशेषज्ञता हासिल कर ली है। 
 

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