देश में कृषि क्रांति तेज़ गति से जारी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में, निरन्तर सुधारों और किसान केंद्रित प्राथमिकता के कारण कृषि क्षेत्र में निरन्तर प्रगति हुई है और देश ने धान, गेहूं, मक्का, मूंगफली और सोयाबीन का रिकॉर्ड उत्पादन किया है। कृषि वर्ष 2024-25 के लिए प्रमुख कृषि फसल उत्पादन के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2024-25 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 353.96 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो अब तक का सबसे अधिक खाद्यान्न उत्पादन होगा और वर्ष 2014-15 (252.02 मिलियन टन) की तुलना में यह 40 प्रतिशत अधिक रहेगा।
1960 के दशक से पहले की जड़ता और खाद्य असुरक्षा को पीछे छोड़ते हुए आज भारतीय कृषि खाद्य अधिशेष प्राप्त करने की स्थिति में आ गयी है, जिससे माल्थस की यह धारणा गलत साबित होती है कि जनसंख्या वृद्धि, खाद्य उत्पादन की तुलना में अधिक हो जाएगी। 1967 में विलियम और पॉल पैडॉक ने भारत में अकाल की भविष्यवाणी की थी। उनका दावा था कि देश अपनी बढ़ती आबादी का पेट नहीं भर पाएगा। उन्होंने खाद्य सहायता के खिलाफ विवादास्पद तर्क दिया था, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे भविष्य में भुखमरी और बढ़ेगी।
उच्च उपज वाले चावल और गेहूं की किस्मों, कृषि रसायनों और सिंचाई से संचालित हरित क्रांति ने पैडॉक की भविष्यवाणी को गलत साबित कर दिया। भारत का खाद्यान्न उत्पादन 1966-67 के 74 मिलियन टन से बढ़ाकर 1979-80 तक 130 मिलियन टन हो गया था। वार्षिक वृद्धि 8.1 मिलियन टन (2014-2025) के शिखर बिंदु को छूते हुए 354 मिलियन टन तक पहुंच गई। बागवानी फसलें भी 1960 के दशक के 40 मिलियन टन से बढ़कर 2024-25 में 334 मिलियन टन हो गई, जिसमें हाल ही में 7.5 मिलियन टन की वार्षिक वृद्धि हुई है। विपरीत परिस्थितियों को सहन करने में सक्षम किस्मों और अनुकूल कृषि पद्धतियों में प्रगति के कारण फसल उत्पादन में भी अधिक स्थिरता आयी है। भारत के डेयरी, मुर्गीपालन और मत्स्य पालन क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 1970 के दशक में शुरू हुई श्वेत क्रांति ने दूध उत्पादन को 20 मिलियन टन से बढ़ाकर 2023-24 तक 239 मिलियन टन कर दिया, जो पूरे यूरोप के बराबर है। 2014-15 और 2023-24 के बीच पशु-स्रोत से प्राप्त खाद्य के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। 
 भारत की खाद्य उत्पादन सफलता पोषणए किसानों की आय, जलवायु की विषम परिस्थितियों के प्रति सहनीयता और निर्यात को बढ़ावा देने में प्रौद्योगिकी व नीति की परिवर्तनकारी भूमिका को दर्शाती है। आईसीएआर के शोध से पता चलता है कि कृषि में निवेश पर उच्च आय प्राप्त होती है। अनुसंधान और विस्तार पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये पर क्त्रमश: 13.85 रुपये और 7.40 रुपये। पीएमकेएसवाई (सिंचाई), पीएम-किसान (प्रत्यक्ष किसान सहायता), राष्ट्रीय पशुधन मिशन और नीली क्रांति जैसी हाल की सरकारी पहलों ने संसाधनों के उपयोग को बढ़ाकर, जोखिमों को कम करके और कृषि-खाद्य प्रणाली में प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहन देकर कृषि विकास को और मजबूती दी है।
2047 तक भारत ने विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है, इसलिए इसकी अर्थव्यवस्था को सालाना 7.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि करनी होगी। अनुमान है कि 2047 तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब हो जायेगी, जिसमें से आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करेगी। इस बदलाव से खाद्यान्न की कुल मांग दोगुनी हो जाएगी, फलों, सब्ज़ियों और पशु-आधारित खाद्य पदार्थों की मांग तिगुनी होने की उम्मीद है, जबकि अनाज की मांग स्थिर रहेगी, जिससे अधिशेष की स्थिति बनी रहेगी।
भारत की उभरती कृषि-खाद्य चुनौतियां, उत्पादन-रणनीतियों में बदलाव की मांग करती हैं। प्रतिवर्ष 20 मिलियन टन चावल, जिसकी खेती में अधिक मात्रा में जल की ज़रूरत होती है, के निर्यात के बावजूद भू-जल की सतत उपलब्धता खतरे में है। इस बीच भारत खाद्य तेलों और दालों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, किसानों के हितों की रक्षा करने और संसाधनों के संरक्षण के लिए फसल नियोजन में स्थायी कृषि पद्धतियों के साथ-साथ तिलहन और दलहन जैसी जल-कुशल फसलों को प्राथमिकता देनी चाहिए। ‘एक राष्ट्र, एक कृषि, एक टीम’ विज़न के अंतर्गत, आईसीएआर के नोडल अधिकारी विकसित भारत को समर्थन देने के लिए राज्य स्तरीय कार्य योजनाओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

-केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री, भारत सरकार

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