छड़ी मुबारक : आस्था, परम्परा और एकता का प्रतीक

आज 9 अगस्त के लिए विशेष

छड़ी मुबारक अमरनाथ यात्रा की एक अत्यंत पवित्र और राष्ट्रीय परम्परा है, जो हर वर्ष श्रद्धालुओं की आस्था और आध्यात्मिक भावना को एक सूत्र में पिरोती है। यह पवित्र छड़ी भगवान शिव के प्रतीक स्वरूप मानी जाती है, जिसे विशेष पूजा-अर्चना के साथ अमरनाथ यात्रा के अंतिम चरण में गुफा तक ले जाया जाता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि सामाजिक एकता, संयम और श्रद्धा का भी जीवंत उदाहरण है।
छड़ी मुबारक एक रजत-मढ़ित पवित्र डंडा है, जो परम्परागत रूप से श्रीनगर स्थित श्री दशनामी अखाड़ा और शिव मंदिर (बडशाह चौक) से अमरनाथ यात्रा के अंतिम चरण में रवाना होता है। इसे स्वामी दीपेन्द्र गिरि जी महाराज के मार्गदर्शन में ले जाया जाता है। यह छड़ी भगवान भोलेनाथ का प्रतिनिधित्व करती है और इसी के साथ गुफा में बने बर्फ के शिवलिंग की पूजा की जाती है।
छड़ी मुबारक की यात्रा रक्षा बंधन के दिन पूर्णिमा के अवसर पर श्रीनगर से शुरू होती है और पारम्परिक मार्गों पहलगाम, चंदनवाड़ी, शेषनाग, पंचतरनी होते हुए अमरनाथ गुफा तक पहुंचती है व पूर्ण धार्मिक विधि से इस पवित्र यात्रा को सम्पन्न कराया जाता है। कहा जाता है कि यह परम्परा सैकड़ों वर्षों पुरानी है और यह संतों व तपस्वियों द्वारा शुरू की गई थी। यह यात्रा भगवान शिव के उस रहस्य से जुड़ी मानी जाती है जहां उन्होंने मां पार्वती को अमर कथा सुनाई थी। उसी स्थल पर हर वर्ष बर्फ से स्वयंभू शिवलिंग का प्रकट होना एक दिव्य चमत्कार माना जाता है।छड़ी मुबारक की यात्रा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है। यह भारत की विविधता में एकता, भाईचारे और सहयोग की भावना का प्रतीक है। यात्रा मार्ग पर स्थानीय लोग यात्रियों के लिए लंगर, सहायता और सुरक्षा प्रदान करते हैं, जो गंगा-जमुनी तहज़ीब का अनूठा उदाहरण है।
छड़ी मुबारक न केवल अमरनाथ यात्रा की धार्मिक आत्मा है, बल्कि यह एक जीवंत परम्परा है जो श्रद्धा, संयम, साहस और सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करती है। यह यात्रा उन मूल्यों की याद दिलाती है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं—सेवा, सहनशीलता और सद्भाव। हर साल लाखों श्रद्धालु इस परम्परा में भाग लेकर अपनी आस्था को नया आयाम देते हैं और छड़ी मुबारक की छाया में मोक्ष की कामना करते हैं। 
 

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