चुनावी धोखाधड़ी को लेकर विपक्ष में एकता की सुगबुगाहट
मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारे पर वोट चोरी की घटना का पर्दाफाश करने पर भाजपा के दूसरे पायदान के नेताओं द्वारा राहुल गांधी पर किए जा रहे व्यंग्य और कटाक्षों से विचलित हुए बिना, विपक्ष के नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था की पवित्रता को बहाल करने और मोदी शासन के दौरान फैली सड़ांध को दूर करने के लिए एक मजबूत जन आंदोलन बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि राहुल ने अपने भविष्य के कदमों या इन निष्कर्षों के साथ क्या करने का इरादा है, इसका सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया लेकिन एक बात तो तय है कि विपक्षी दल इन निष्कर्षों का इस्तेमाल जनादेश की चोरी करने के लिए मोदी के खिलाफ एक मजबूत जनमत बनाने के लिए करेंगे। कर्नाटक के महादेवपुरा निर्वाचन क्षेत्र के केस स्टडी को उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल करते हुए राहुल ने ज़ोर देकर कहा कि मोदी वोटों की लूट करके सत्ता में आए हैं। ज़ाहिर है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मोदी ने चोरी के ज़रिए सत्ता हथिया ली। ऐसे में उन्हें पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है और उन्हें पद छोड़ देना चाहिए।
महादेवपुरा मामले के बाद विपक्षी दलों ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से वाराणसी सीट, जहां से नरेंद्र मोदी जीते थे, के बारे में डाले गए वोटों, कुल मतों की संख्या और अन्य प्रासंगिक जानकारी देने की मांग की है। उनका कहना है कि मोदी इस निर्वाचन क्षेत्र के दो-तिहाई से ज़्यादा मतदान केंद्रों पर हार गए थे। अंतिम गणना से ठीक पहले वह एक लाख वोटों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे। उन्हें संदेह है कि वाराणसी में भी महादेवपुरा जैसी कोई घटना हुई है और इसकी जांच होनी चाहिए।
यह धोखाधड़ी उस निर्वाचन क्षेत्र में की गई है जो 2008 में अपने गठन के बाद से ही भाजपा का गढ़ रहा है। यहां भाजपा का वोट शेयर लगातार 49 प्रतिशत (2013) और 54 प्रतिशत (2023 विधानसभा चुनाव) के बीच रहा है, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 46 प्रतिशत (2013) और 41 प्रतिशत (2023) के बीच रहा है। इसका स्पष्ट अर्थ यह था कि भाजपा इस सीट को बरकरार रखने के प्रति आश्वस्त नहीं थी और इसके अलावा उसे यह सुनिश्चित करना था कि भाजपा को और सीटें मिलें ताकि मोदी प्रधानमंत्री बन सकें। मतों का विश्लेषण दिलचस्प है- 11,965 डुप्लिकेट मतदाता अलग-अलग मतदान केंद्रों पर कई बार दिखाई दिए, 40,009 मतदाता फर्जी या गैर-मौजूद पते वाले गौरतलब है कि 2018 में चुनाव आयोग ने निर्णय लिया था कि जिन मामलों में बड़ी संख्या में मतदाता एक ही परिसर में रहते हैं, उनका भौतिक सत्यापन किया जाना चाहिए।
कई अभूतपूर्व घटनाएं हो रही हैं। यह पहली बार है कि मोदी पर खुलेआम चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया जा रहा है और विपक्ष के नेता ने चुनाव आयोग के इस गोरखधंधे का पर्दाफाश करने के लिए सामग्री जुटाने में छह महीने लगा दिए। धांधली, झूठे वोट डालना और नकल के मामले लंबे समय से प्रचलित रहे हैं। लेकिन यह पहली बार है जब चुनाव आयोग ने चुनाव प्रक्रिया और व्यवस्था को बदनाम करने के लिए एक बड़ी साजिश रची है, जो निश्चित रूप से राष्ट्र, उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था और उसकी कार्यप्रणाली के विरुद्ध एक अपराध है। अपनी भूमिका छिपाने के लिएए यह अजीब बात है कि चुनाव आयोग ने अब राहुल पर आरोप लगाना शुरू कर दिया है: उन्हें बेतुके निष्कर्षों पर पहुंचना और नागरिकों को गुमराह करना बंद करना चाहिए।
‘इंडिया ब्लॉक’ के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि वे इस खुलासे के नतीजों का विश्लेषण कर रहे हैं और भविष्य की कार्ययोजना पर भी काम कर रहे हैं। चुनाव आयोग की कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य इकाइयों ने राहुल को नोटिस भेजकर अपने खुलासे की पुष्टि करने और सामग्री को प्रमाणित करने के लिए कहा है। यह वाकई बेशर्मी है। अपने भाषण की शुरुआत में, उन्होंने मीडिया को बताया कि वे जिस सामग्री का इस्तेमाल कर रहे थे, वह चुनाव आयोग से प्राप्त की गई थी। उन्होंने इसका इस्तेमाल केवल वोट चोरी का पता लगाने के लिए किया था। इस कार्रवाई के ज़रिए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने साफ संदेश दिया कि वे राहुल की शिकायत स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
विपक्ष के सामने दूसरा विकल्प सुप्रीम कोर्ट जाना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हालिया रुख ने उन्हें निराश और सतर्क कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से एसआईआर के खिलाफ उनकी याचिका पर विचार कर रहा है, उससे वे निराश हैं। जस्टिस दत्ता की टिप्पणी ने उन्हें चौंका दिया है। उन्हें आश्चर्य है कि वे भाजपा कार्यकर्ताओं की भाषा कैसे बोल सकते हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ वरिष्ठ वकीलों ने भी सुप्रीम कोर्ट जाने के खिलाफ सुझाव दिया है। विपक्षी नेताओं में अविश्वास की भावना व्याप्त है। फिर भी विपक्षी नेताओं ने अभी तक कोई व्यापक कार्ययोजना नहीं बनाई है।
भाजपा के दूसरे दर्जे के नेताओं को यह समझना चाहिए कि उनकी बयानबाज़ी मोदी को चुनावी व्यवस्था और संविधान को बिगाड़ने के आरोपों से बरी नहीं कर पाएगी। राहुल पर आरोप लगाने से मोदी की प्रतिष्ठा बहाल नहीं होगी और न ही उन्हें फिर से जनता के नायक के रूप में पेश किया जा सकेगा, जो राहुल के खोजी खुलासे के बाद मोदी पहले ही खो चुके हैं। वे चुनाव आयोग के अधिकारियों को दी गई उनकी चेतावनी की भी गलत व्याख्या करते हैं। संविधान और चुनावी प्रक्रिया को तहस-नहस करने वाला व्यक्ति नि:संदेह राष्ट्र-विरोधी कृत्य में लिप्त है और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसे व्यक्ति की मानसिकता आपराधिक होती है।
भाजपा नेता राहुल द्वारा उन्हें चेतावनी दिए जाने पर उनसे काफी नाराज़ हैं। उन्होंने कहा था कि समय बदलेगा और इस ‘घोटाले’ में शामिल लोगों को सज़ा ज़रूर मिलेगी। इन लोगों का व्यवहार यह धारणा बनाता है कि मोदी भारत पर शासन करते रहेंगे, क्योंकि उनकी छवि जैविक नहीं है। उनका यह उदासीन रवैया यह संदेश भी देता है कि भारत में भय का शासन है। राहुल सही कह रहे हैं, ‘वोट चोरी सिर्फ एक चुनावी घोटाला नहीं है, यह संविधान और लोकतंत्र के साथ एक बड़ा विश्वासघात है। देश के गुनहगारों को यह बात सुननी चाहिए। समय बदलेगा, सज़ा ज़रूर मिलेगी।’ (संवाद)