क्या राहुल गांधी एक गैर-ज़िम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं ?

क्या राहुल गांधी एक गैर ज़िम्मेदार राजनीतिज्ञ हैं? अब जब राहुल गांधी ने कहा कि चीन ने भारत की 2000 वर्ग कि.मी. ज़मीन कब्जा ली, तो सर्वोच्च  न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुये कहा कि इस बात का क्या सबूत है? अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसी बातें नहीं कर सकते। इस तरह से अनेक बाते हैं जिससे यह पता चलता है, कि उनका रवैया सदैव ही एक गैर-जिम्मेदाराना राजनीतिज्ञ का प्रतीत होता रहा है। वह चाहे राफेल का मामला हो, चाहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वीर सावरकर या पैगोसेस का मामला हो, सभी मामलों में वह गलत साबित हुए हैं। अब प्रियंका वाड्रा भले ही यह कहे कि यह जज तय नहीं कर सकते कि सच्चा भारतीय कौन है।, परन्तु देखने वाली बात यह कि यदि देश का सर्वोच्च   न्यायालय यह तय नहीं करेगा तो कौन करेगा?  क्या यह एक खानदान विशेष करेगा? इसी तरह से आये दिन राहुल गांधी  चुनाव आयोग पर हमले करते रहते हैं, उस पर वोट चोरी करने और देख लेने की धमकी देते हैं। उस पर जब कर्नाटक चुनाव आयोग ने राहुल से शपथ-पत्र मांग लिया तो कहने लगे कि वह नेता हैं और जो सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं, वह ही शपथ-पत्र हैं
अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प जब अपने निहित स्वार्थों  के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को मृत बताते हैं, तो लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी उस पर पूरी तरह सहमति व्यक्त करते हैं। जांच करने का विषय है कि क्या इसमें कुछ सच्चाई है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक की रिपोर्ट यह कहती है कि भारत की अर्थव्यवस्था राकेट बनी हुई है। 
वर्तमान में भारत की विकास दर जहां 6.4 प्रतिशत है, वहीं चीन की 4.8 प्रतिशत, अमरीका की 1.9 प्रतिशत, ब्रिटेन की 1.2 प्रतिशत, जर्मनी 0.1 प्रतिशत, जापान 0.7 प्रतिशत, फ्रांस 0.6 प्रतिशत है। कुल मिलाकर भारत विश्व की सबसे ज्यादा बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। वर्ष 2015 में  भारत की अर्थव्यवस्था जहां 2.1 ट्रिलियन डालर की थीं, वहीं 2025 में  दुगुने से ज्यादा 4.3 ट्रिलियन डालर की हो चुकी है। विनिर्माण क्षेत्र में भारत की स्थिति जहां 57.4 प्रतिशत की है और चीन की 50.4 प्रतिशत है, वहीं अमरीका 40.1 प्रतिशत में ही अटका हुआ है। कहने का आशय यह कि दुनिया की नम्बर 1 और नम्बर 2 दोनो ही अर्थव्यवस्थाओं से भारत विनिर्माण क्षेत्र में आगे है। आज दुनिया का प्रत्येक देश भारत से ज़्यादा से ज़्यादा व्यापार करने के तत्पर है। 25 प्रतिशत अमरीकी टैरिफ पर देश का शेयर मार्केट नीचे जाना चाहिए था, पर इसका बहुत कम असर हुआ।
यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये तो वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक संयुक्त प्रगितिशील गठबंधन (संप्रग) शासन के दौर में महंगाई की दर 8.2 प्रतिशत वार्षिक थी जबकि मोदी शासन में यह 5.5 से ऊपर कभी नहीं गई। संप्रग शासन में एफडीआई के माध्यम से जहां मात्र 305 करोड़ रूपये आये, वहीं मोदी शासन में 595 करोड़ रुपये का निवेश हुआ। जीएसटी की वसूली जुलाई 2025 में 1.96 लाख करोड़ रुपये है जो पिछले वर्ष से 7.5 प्रतिशत ज्यादा है। ऐसी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था को मृत कहना एक सफेदपोश झूठ और ट्रम्प की बौखलाहट ही कहा जा सकता है। इस मामले में राहुल के रवैये को लेकर उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने ही असहमति जताते हुये राहुल गांधी को आईना दिखाया। राजीव शुक्ला ने कहा कि हमारी इकोनामी बहुत मज़बूत है।
बड़ी सच्चाई यह कि ट्रम्प ने 2014 के पश्चात भारत में स्वत: निवेश किया है। ट्रम्प स्वत: कह चुके हैं कि निवेश की दृष्टि से भारत अच्छी जगह है। ट्रम्प टावर्स के कार्य मुम्बई, पुणे, गुरुग्राम जैसे शहरों में तेजी से फैले हैं तो नोयडा, हैदराबाद, बेंगलुरू जैसी जगहों में 15000 करोड़ के निवेश ट्रम्प रियल स्टेट में कर चुके हैं। वर्तमान में भारत में ट्रम्प का कारोबार 29 लाख करोड़ रुपये का है। ट्रम्प के बेटे स्वत: भारत आकर कई परियोजनाओं की शुरूआत करने वाले हैं। बड़ा सवाल फिर यही है कि यदि भारत मृत अर्थव्यवस्था है तो फिर ट्रम्प की कम्पनियां भारत में इतना निवेश क्यों कर रही हैं? ट्रम्प यदि भारत को रूस से तेल और हथियार खरीदने को लेकर नहीं झुका पा रहे हैं, भारत के कृषि बाजार, पशुपालन और डेयरी को अमरीका के लिये नहीं खुलवा पा रहे हैं तो उनका भारत के विरोध में खड़ा होना तो समझ में आता है, परन्तु यदि राहुल गांधी ऐसे भारत विरोधियों के साथ खड़े हो जाते हैं तो यह समझ के परे है। सिर्फ  इतना ही नहीं, वह जब पाकिस्तान के इस दावे  कि ‘आपरेशन सिन्दूर’ के दौरान उसने भारत के पांच लड़ाकू विमान गिरा दिये गए, उस पर सरकार से पूछते हैं कि बताओं हमारे कितने विमान गिरे तो, यह सब एक तरफ  जहां राष्ट्र-बोध का अभाव है, वहीं किसी भी कीमत पर सत्ता पाने की छटपटाहट भी है। जैसा कि शशि थरूर ने कहा कि भारत मात्र निर्यात पर निर्भर नहीं, वह एक मजबूत और विशाल बाज़ार है। बड़ी बात यह कि अमरीकी धमकी के बाद भारतीय व्यापारियों के संगठन कैट ने ‘भारतीय सम्मान हमार स्वाभिमान’ का अभियान चलाते हुये स्वदेशी वस्तुओं की ही खरीदी और बिक्री पर ज़ोर दिया है। उपरोक्त सभी बातें राहुल के एक गैर-ज़िम्मेदार राजनीतिज्ञ होने का संकेत देती हैं। (अदिति)

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