पंजाब में विषाक्त होता भू-जल

पंजाब में दूषित एवं विषाक्त भूमिगत पेयजल की समस्या ने एक बार फिर सर्वत्र चिन्ता व्याप्त की है। भूमिगत पेयजल में विषाक्त तत्वों के बड़ी मात्रा में पाये जाने की समस्या बेशक पूरे पंजाब के सभी ज़िलों में पाई जाती है, किन्तु मालवा क्षेत्र में यह स्थिति अधिक गम्भीर होकर सामने आई है। विगत वर्ष प्रदेश के भूमिगत पानी के एकत्रित किये गये प्राय: सभी नमूनों की धीरे-धीरे प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार इस पानी में यूरेनियम, आर्सेनिक, क्लोराइड, फ्लोराइड और आयरन जैसे तत्वों की मात्रा अपेक्षा से काफी बढ़ कर पाई गई है जिसके कारण यह पानी मनुष्य के पीने के लिए उपयुक्त नहीं रहता। पेयजल में पाये गये ये तत्व मानव शरीर के भीतर खतरनाक जीवाणुओं को पैदा कर कई तरह के रोगों का कारण बनते हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार इनमें सर्वाधिक गम्भीर कैंसर, किडनी, चमड़ी रोग, टी.बी. और दमा जैसे रोग भी शामिल हैं। इन विषाक्त तत्वों के कारण पंजाब के मालवा के ज़िलों में कैंसर रोग के व्यापक प्रसार और कैंसर के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ने के पीछे भी इसी भूमिगत पेयजल को बड़ा कारण माना जाता है। पेयजल की गुणवत्ता भी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इस विषाक्त पानी के सिंचाई हेतु प्रयुक्त किये जाने का प्रभाव प्रदेश की कृषि पर भी पड़ता दिखाई देने लगा है। अनेक बार किसानों एवं कृषि विशेषज्ञों ने इस बात की शिकायत की है कि इस पानी से सिंचाई वाली कृषि भूमि से उत्पादन कम हुआ है। फसल का दाना छोटा और कमज़ोर हुआ है। मालवा क्षेत्र के कृषि उत्पादन में भी इस पानी की तासीर पाई गई है।
इस समस्या का एक बड़ा कारण प्रदेश में सीवरेज के गंदे पानी को बिना ट्रीट किये नदी-नालों में डाला जाना माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसंधान के अनुसार सीवरेज के गंदे पानी को नदी-नालों में डाले जाने से पूर्व इसे ट्रीट किया जाना आवश्यक है, और कि इसकी सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी सम्बद्ध प्रदेश सरकारों की होती है। पंजाब में प्राय: प्रत्येक ज़िला में सीवरेज के पानी को बिना ट्रीट किये डाले जाने की प्रथा चिरकाल से चली आ रही है। इसे लेकर प्राय: प्रत्येक सरकार के समक्ष मामला उठाया जाता रहा है, किन्तु कभी किसी भी सरकार ने इस मुद्दे पर गम्भीरता का प्रदर्शन नहीं किया। पंजाब में कुछ धार्मिक संगठनों अथवा सामाजिक संस्थाओं की ओर से बेशक कई बार प्रयास किये जाते रहे हैं, किन्तु वे निजी धरातल पर बड़े कामयाब होने के बावजूद पूरी समस्या से निपटने में विफल ही रहे हैं। पिछले दिनों राज्यसभा में भी केन्द्रीय जल-शक्ति मंत्री भूषण चौधरी ने पंजाब के भूमिगत पानी के विषाक्त होते जाने पर चिन्ता व्यक्त किये जाने के दौरान बताया कि घग्गर, सतलुज, सिरसा और स्वां और काली बेईं के पांच तटवर्ती क्षेत्रों में सीवरेज का पानी इन नदियों में डाले जाने से प्रदेश में भूमिगत पानी बड़े स्तर पर विषाक्त होता जा रहा है। कई क्षेत्रों में तो यह पानी जानवरों के पीने के योग्य भी नहीं रहा है।  सांसद संत सीचेवाल ने भी पिछले दिनों राज्यसभा में सतलुज, ब्यास, रावी और प्रदेश की अन्य नदियों की साफ-सफाई और प्रदूषण पर नियंत्रण किये जाने संबंधी मुद्दा उठाया था। 
प्रदेश की एक प्रयोगशाला रिपोर्ट के अनुसार चालू वर्ष में विभिन्न भागों से पेयजल के लिये गये 3060 नमूनों में से 77 प्रतिशत विफल पाये गये हैं। सर्वाधिक विफल नमूने मोगा, पठानकोट, फिरोज़पुर, मानसा और पटियाला से पाये गये। पूरे प्रदेश में 23 ज़िलों के 30 प्रतिशत नमूने निर्धारित मान-दण्ड पर पूरा नहीं उतर सके। इस रिपोर्ट के आधार पर यह आकलन बड़ी सहजता से किया जा सकता है कि पंजाब में धरती के नीचे वीले पानी के गंदला, प्रदूषित और विषाक्त होने संबंधी स्थिति कितनी गम्भीर है। इन रिपोर्टों के अनुसार अनेक रासायनिक औद्योगिक इकाइयों, चमड़ा उद्योगों और लौह उद्योगों से निकलने वाले पानी को सीधे प्रदेश की नदियों और नालों तथा धरती पर गड्ढे बना कर उनमें डाले जाने से भी भूमिगत पानी ज़हरीला हुआ है। विशेषज्ञों ने यह भी दावा किया है कि प्राय: पंजाब की प्रत्येक सरकार अपने काले में यह दावा करती रही है कि प्रदेश में पानी और वायु के प्रदूषण की रोकथाम हेतु सतत् प्रयत्न किये जा रहे हैं किन्तु ह़क़ीकी तौर पर कभी भी कोई सार्थक परिणाम सामने आते दिखाई नहीं दिया है। हम समझते हैं कि नि:संदेह यह समस्या बहुत गम्भीर है, और भावी संततियों के लिए यह एक अभिशाप के तुल्य सिद्ध हो सकती है। समय रहते यदि इस ओर तत्काल रूप से पग नहीं उठाये गये, तो यह स्थिति और गम्भीर हो सकती है। नि:संदेह इस हेतु समुचित कड़े पग उठाये जाने के लिए एक दृढ़ राजनीतिक इच्छा-शक्ति की बड़ी आवश्यकता होगी। हम यह भी समझते हैं कि यदि अब भी हम नहीं चेते, तो स्थिति वापिस न लौट पाने वाले बिन्दु तक पहुंच सकती है। 

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