स्वीकृति की तलाश में भटकता हुआ एक नया सपना

हमें अपने अन्तर्राष्ट्रीय शोध संस्थान अर्थात ‘इसरो’ पर गर्व है, क्योंकि आजकल यही संस्था देश में घोषणाओं के अतिरिक्त कुछ करके भी दिखाती हुई नज़र आती है। दादा ट्रम्प जहां हमारी धरती के हर व्यवसाय को ऊंचे टैरिफ की धमकियां देते नज़र आते हैं, वहीं यही एक संस्था है जिसके सहयोग के साथ आगे बढ़ने की तमन्ना रखते हैं।
वैसे देश में यह चलन हो गया है कि भ्रष्टाचार की शून्य स्तर पर सहन न करने की घोषणाएं करने वाले आज भ्रष्टाचार के आरोपों के मुकद्दमों में जमानतें प्राप्त करने के भागीरथ प्रयास करने में लगे रहते हैं। जमानत प्राप्त करने के बाद तारीख पर तारीख के रिवाज़ वाले न्याय परिसर उनको आरोपित से अभियुक्त बनाने में बरसों लगा देते हैं, इसीलिए जमानत पर रिहा होते ही इसे अपनी जीत बता कर नई क्रांति का बिगुल बजाते नेताओं को देर नहीं लगती क्योंकि केवल बिगुल ही तो बजाना है, कौन-सा हमें कुछ करके दिखाना है। वैसे इससे काम चल जाता है, इसीलिए कुछ करके दिखाने का ज़िम्मा आजकल हमने इसरो की अंतरिक्ष उपलब्धियों पर छोड़ दिया है, क्योंकि धरती की घोषित परियोजनाएं प्राय: पूरी नहीं होतीं, और इनके   लम्बित हो जाने के कारण इनका बजट प्राय: चौपाया हो जाता है। इसलिए किफायतशारी के साथ समय पर काम करके दिखाने का ज़िम्मा हमारे इसरो पर छोड़ दिया गया है।
इसरो के संचालन और शोध में भारत की नई औरत आगे-आगे हो अपनी शक्ति को दिखाती नज़र आती है। इसलिए घर की औरतों को हमने योग्य होते ही फिलहाल भोग्या होने का काम दे रखा है। इधर युग बदलने के साथ-साथ चाहे औरतों के लिए नारी सशक्तिकरण और नारी स्वतन्त्रता के नारे लगाने में किसी से कम नहीं, इसलिए नारी के अपहरण, दुष्कर्म और बुर्दाफरोशी में भी वृद्धि हो गई है। चकलाघर बन्द क्या हुए, अब वे डिस्को बारों और जुआघरों में खुलते नज़र आने लगे हैं। 
इसकी चिन्ता नहीं है क्योंकि अब हम अन्तरिक्ष और उसके बाद सौर गृह में जीवन तलाश करने के बाद आम आदमी के दुख-दर्द का समाधान वहां तलाशने जा रहे हैं, इसलिए देश और दुनिया को वहां आधुनिकता के इस रास्ते पर आगे बढ़ने में देर नहीं लगेगी क्योंकि यहां भौतिकता का साम्राज्य स्वीकार करने के बाद आदर्श, नैतिकता और जीवन के सही मूल्यों का निर्यात हमने अन्तरिक्ष पर्यटन और सौर ग्रहों में स्थापित हो सकने वाले जीवन की ओर करने का विचार है। बंधु, जो यहां धरती और देश में कामयाब न हो सके, उसकी सफलता का विकल्प अब अन्तरिक्ष यात्राओं और सौर ग्रहों में बस सकने वाले जीवन में तलाशने का फैसला कर लिया है। 
कभी देश में पर्यटन क्षेत्र बड़ा कमाऊ क्षेत्र था। तीन हिस्से थे इसके, रमणनीक, मैडीकल और धार्मिक पर्यटन। रमणीक पर्यटन का हुलिया बादलों के फटने, पहाड़ों के दरकने और ठेकेदारों के न पूरे होने वाले सड़क मुरम्मत और पुल बनाने के ठेकों ने बिगाड़ दिया। मैडीकल पर्यटन सिर उठाता, इससे पहले ही उपकरणों, विशेषज्ञों और मूलभूत ढांचे की कमी इसके आड़े आ गई, और धार्मिक पर्यटन की कमाई अनुशासनहीन भीड़ की धक्का-मुक्की, वाम मौसम और पंडित-पाधों के फर्जी और लालची कामों से बिगड़ती नज़र आ रही है। इसलिए पर्यटन सेवा का भावी विकास भी हमने अन्तरिक्ष यात्राओं पर टालने का फैसला लिया है। एक गगनयान से दूसरे यान तक आना-जाना और टिकना हमने सीख ही लिया है। अब अन्तरिक्ष यात्राओं के पर्यटन से ही देश को आयात आधारित व्यवस्था से निर्यात आयात आधारित अर्थ-व्यवस्था बनाया जाएगा।
आजकल धरती की समस्याओं के समाधान हम आसमान में तलाश कर रहे हैं। पर्यटन क्षेत्रों का समाधान तो हमने अन्तरिक्ष की सैर यात्राओं में तलाश लिया। देश के लोगों की आवास समस्या का हल भी अब सौर ग्रहों में ज़िन्दगी तलाश करके किया जाएगा। यहां जिन करोड़ों लोगों को आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने के बावजूद सिर पर छत और हाथ के लिए रोज़गारी की गारंटी हम न दे सके, उनके लिए धरती पर अनुकम्पा संस्कृति और चांद  पर बस्तियां बसाने की घोषणा शुरू कर दी गई है। 
नई पौध, नया युग और अन्तरिक्ष के सौर मंडल का नया खोज अभियान ही अब देश और धरती की समस्याओं का हल अब अन्तरिक्ष और सौर मंडल में होगा। यह न कह दीजिएगा, कि यह नये पन का एहसास ऐसा ही है, कि जैसे कोई कहता हो, ‘बाप न मारी मेंडकी, बेटा तीरन्दाज़।’ लेकिन ऐसे पुराने मुहावरों को अब त्यागिये और नयेपन और बदलाव को इस धरती पर नहीं, तो कम से कम अन्तरिक्ष और सौर मंडलों में करने के सपने तो देखने दीजिये। 

#हुआ एक नया सपना