किसानों, पशुपालकों एवं मछुआरों की ढाल बने मोदी
7अगस्त को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ शब्दों में कहा कि ‘किसी भी दबाव में आकर भारत अपने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों को विदेशी हितों की बलि नहीं चढ़ने देगा।’ यह बयान ऐसे समय आया, जब अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर नए टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिनमें कपास, डेयरी उत्पाद और झींगा पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क शामिल है। यह अमरीका की तरफ से भारत पर दबाव बनाने की स्पष्ट कोशिश है ताकि भारत अपने कृषि और खाद्य बाज़ार खोल दे।
लेकिन मोदी सरकार ने झुकने की बजाय अपने रुख को और मजबूत किया है। पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने साफ नीति बनाई है कि भारत कभी भी ऐसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को नहीं मानेगा जो देश के किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाएं। यह नीति विश्व व्यापार संगठन, रीजनल कोम्प्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप और यूरोपीय संघ, ब्रिटेन जैसे देशों के साथ हो रहे मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं में भी साफ दिखाई दी है। 2014 में सत्ता में आने के बाद ही मोदी सरकार ने ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमैंट को तब तक रोक दिया, जब तक खाद्य सुरक्षा पर भारत की सार्वजनिक भंडारण नीति को स्थायी समाधान नहीं मिलता। अमरीका और यूरोपीय संघ ने भारत पर ‘बाधा डालने’ का आरोप लगाया, लेकिन मोदी सरकार नहीं झुकी। अंतत: भारत को अवधि-रहित पीस क्लॉस मिला, जो गरीबों के लिए अन्न भंडारण की भारत की नीति को सुरक्षित करता है।
विकसित देशों ने बार-बार भारत की न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद में दी जाने वाली सब्सिडियों को रोकने की कोशिश की लेकिन मोदी सरकार ने हमेशा यह कहा कि भारत की तुलना अमरीका या यूरोप जैसे अमीर देशों से नहीं की जा सकती क्योंकि उनके किसानों को ऐतिहासिक रूप से भारी सब्सिडी मिलती है। यही कारण है कि आज अमरीका के किसान की औसत पारिवारिक आय 97,984 डॉलर है जबकि अमरीकी परिवारों की औसत आय 80,610 डॉलर है । इसका अर्थ है कि आम अमरीकी किसान एक आम अमरीकी से ज्यादा पैसे कमाता है जबकि भारत में स्थिति इसके विपरीत है। इसीलिए भारत के कृषि बाज़ार को नहीं खोला जा सकता।
सिर्फ कृषि ही नहीं, डेयरी उत्पादकों को भी अमरीका में भारी सब्सिडी मिल रही है। पीएलसी और एआरसी के अलावा अमरीका में डेयरी मार्जिन कवरेज प्रोग्राम भी है जिससे उत्पादकों को कीमतें गिरने और लागत बढ़ने के बावजूद अधिक आय सुनिश्चित होती है। ऐसे में भारत के डेयरी उत्पादक उनके साथ कम्पीट नहीं कर सकते इसलिए इस क्षेत्र को खोलने से भारी नुकसान हो सकता है।
यही हाल हमारे मछुआरों का है। विश्व व्यापार संगठन में मछली पकड़ने पर सब्सिडी को लेकर जो बातचीत हुई, उसमें अमीर देशों ने गरीब देशों को मिलने वाली मूलभूत सब्सिडी तक खत्म करने की कोशिश की लेकिन मोदी सरकार ने यह साफ किया कि भारत के पारम्परिक और छोटे मछुआरों को यूरोप या जापान की बड़ी मछली कंपनियों के बराबर नहीं माना जा सकता। भारत ने 2022 में ऐसी कठोर शर्तों को कमजोर करवाया और गरीब मछुआरों को छूट दिलाई।
इन्हीं कारणों के दृष्टिगत नवम्बर 2019 में भारत ने बीसीईपी से बाहर निकलकर दुनिया को चौंका दिया था। यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता माना जा रहा था, जिसमें चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने यह कह कर इससे किनारा कर लिया कि इससे भारत के दूध, मुर्गी और कृषि बाज़ार में सस्ते विदेशी उत्पाद आ जाएंगे, जिससे हमारे छोटे किसान तबाह हो जाएंगे। अमूल और स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों ने भी इसका विरोध किया था। भारत ने यूरोपीय संघ, यूके, कनाडा जैसे देशों से हो रही वार्ताओं में साफ कर दिया कि कृषि, डेयरी और मत्स्य क्षेत्र भारत की ‘रेड लाइन’ हैं। यूरोपीय देश चाहते हैं कि भारत उनके महंगे चीज़, पोर्क और वाइन को बाज़ार में आने दे लेकिन भारत ने संस्कृति, आजीविका और आत्मनिर्भरता का हवाला देकर इस से साफ इन्कार कर दिया।
इस समय अमरीका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह जीएम फसलों जैसे मक्का और सोया को अनुमति दे, लेकिन मोदी सरकार ने स्वास्थ्य खतरे, विदेशी बीज कंपनियों पर किसान की निर्भरता और जैव सुरक्षा के कारण इस पर रोक लगाई हुई है। मोदी सरकार इस पर किसी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं दिख रही।
प्रधानमंत्री मोदी की नीति बिल्कुल स्पष्ट है— भारत व्यापार करेगा, लेकिन अपने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की कीमत पर नहीं। यही कारण है कि चाहे अमरीका हो या यूरोप, कोई भी दबाव भारत की प्राथमिकताओं को बदल नहीं सका। निश्चित रूप से लड़ाई लम्बी है परन्तु प्रधानमंत्री मोदी लड़ने के लिए ही जाने जाते हैं।
-कृषि-अर्थशास्त्री एवं उपाध्यक्ष, भाजपा पंजाब