क्या ट्रम्प का एजेंडा पूरा कर पायेंगे अमरीकी राजदूत गोर ?
व्हाइट हाउस में सात महीने बिताने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने अति विश्वसनीय समर्थक सर्जियो गोर को भारत में अमरीका के राजदूत के रूप में चुना है लेकिन इस चयन पर परस्पर विरोधी राय हैं। जो लोग गोर के पक्ष में हैं, उनका कहना है कि वह ट्रम्प के इतने अधिक निकट हैं कि उनकी सलाह पर राष्ट्रपति ने एलन मस्क की पसंद के व्यक्ति को नासा प्रमुख नहीं बनने दिया था, जबकि मस्क ने गोर को ‘सांप’ कहते हुए उन पर रूसी जासूस होने का आरोप लगाया था। दूसरी ओर जो लोग गोर के विरोध में हैं, उनका दावा है कि गोर का राजनयिक अनुभव शून्य है और उन्हें परमाणु हथियारों से लैस क्षेत्र के उस देश में नहीं भेजा जाना चाहिए था, जिसकी जनसंख्या संसार में सबसे अधिक है। गोर मात्र 38 वर्ष के हैं और नई दिल्ली भेजे जाने वाले सबसे कम आयु के राजदूत हैं। इसलिए यह बात सही प्रतीत होती है कि उनमें राजनय अनुभव का अभाव है। सवाल यह है कि बेतुके ट्रम्प टैरिफ की वजह से अमरीका व भारत के बीच जो दरवाज़े बंद हुए हैं, क्या गोर उन्हें पुन: खोल पायेंगे? बहरहाल, भारत ने गोर की नियुक्ति की खबर का सावधानीपूर्वक स्वागत किया है, जबकि ट्रम्प ने गोर को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है ‘जिस पर मैं अपने एजेंडा को पूरा करने के लिए पूर्णत: विश्वास कर सकता हूं’।
ट्रम्प ने ‘एजेंडा’ पर बल दिया है। अब जब रूस से तेल खरीदने के लिए ट्रम्प का 25 प्रतिशत दंडनीय टैरिफ (जिसे अब व्हाइट हाउस ‘प्रतिबंध’ कह रहा है) भारत पर लागू होने जा रहा है, तो पोटस की भू-राजनीति को नियंत्रित करने वाला कोई नहीं है। ट्रम्प ऐसे व्यक्ति हैं, जो अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए अच्छे संबंधों को भी तनावपूर्ण बना सकते हैं। उन्होंने 40 बार से अधिक दावा किया कि व्यापार का प्रलोभन देकर उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। इसलिए ट्रम्प की बातों व हरकतों की समीक्षा करना असंभव नहीं तो जटिल व कठिन अवश्य है। यह तो हो सकता है कि ट्रम्प शायद रूस के विरुद्ध भारत को एक लीवर के रूप में प्रयोग कर रहे हों। उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो के हाल के निन्दात्मक बयान (भारत क्रेमलिन की वाशिंग मशीन है) से तो यही संकेत मिलता है। गौरतलब है कि भारत ने बार-बार कहा है कि अमरीका का तर्क स्वयं-सेवी है। जब यूक्रेन युद्ध शुरू होने और नतीजतन रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण अमरीका को ग्लोबल तेल दाम बढ़ने की चिंता थी, तो उसने भारत से आग्रह किया था कि वह बड़ी मात्रा में रूसी तेल खरीदे। इसके अतिरिक्त चीन भी बड़ी मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा है, लेकिन दुर्लभ मृदा तत्व के लालच में ट्रम्प ने उस पर कोई जुर्माना नहीं लगाया।
संक्षेप में यह कि ट्रम्प की दिखावटी नैतिकता कुछ भी नहीं है। भारत ने एकदम सही किया है कि मुख्यत: कृषि व डेयरी पर आधारित व्यापार समझौते पर अमरीकी दबाव को मानने से इन्कार कर दिया है। इससे थोड़े से समय के लिए काले बादल अवश्य छा गये हैं, लेकिन उनमें भी उम्मीद की एक सुनहरी किरण है। विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि व्यापार वार्ता जारी है और 23 अगस्त, 2025 को अमरीका के राज्य सचिव मार्को रूबियो ने भारत को ‘संसार में सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रों में से एक, जिनसे हमारे संबंध हैं’ बताया। नवारो ने भी अपने निन्दात्मक बयान के वजूद ‘आई लव इंडिया’ कहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि 27 अगस्त, 2025 से भारतीय निर्यात को जिस उच्च अमरीकी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा, वह भारतीय निर्माण व जॉब्स को काफी हद तक प्रभावित करेगा लेकिन इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत सरकार तैयार है और वह थोड़े की बजाय अधिक सुधारों पर विचार कर रही है। मुमकिन है कि भारत का अल्पकालिक दर्द दीर्घकालीन लाभ में परिवर्तित हो जाये।
इस पृष्ठभूमि में ट्रम्प ने जिस सर्जियो गोर को भारत में अपना राजदूत बनाया है, उनका सरनेम गोरोखोव्स्की था, जिसे अमरीका में उन्होंने गोर कर दिया। गोर का भारत से संबंधित कोई ज्ञात संबंध या संपर्क या कार्य या स्कॉलरशिप नहीं है। उनका जन्म ताशकंद, उज्बेकिस्तान में हुआ था, जब वह पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा था। गोर जब 12 साल के थे तो वह अपने पैरेंट्स के साथ 1999 में अमरीका में आ गये। उनके पिता यूरी गोरोखोव्स्की एविएशन इंजीनियर थे, जो सोवियत सेना के लिए एयरक्राफ्ट डिज़ाइन करते थे, विशेषकर आईएल-76 (बीच हवा में ईंधन भरने वाला सुपरटैंकर) जोकि भारतीय वायु सेना की फ्लीट का हिस्सा है। गोर की मां इज़रायल मूल की हैं। गोर का परिवार लास एंजिल्स में बस गया, जहां स्कूलिंग करने के बाद वह जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में दाखिल हो गये जो व्हाइट हाउस से थोड़े से ही फासले पर है। गोर पुरातनपंथी रिपब्लिकन पार्टी में सक्रिय हो गये और विवादित अति दक्षिण विचार रखने वाले सांसदों स्टीव किंग व मिशेल बेकमैन के प्रवक्ता बने। इसके बाद वह सीनेटर रैंड पॉल के स्टाफ में शामिल हो गये और पदोन्नति करके डिप्टी चीफ ऑ़फ स्टाफ बने।
गोर ट्रम्प के कैंप में 2020 के चुनाव में शामिल हुए और तेज़ी से मागा (मेक अमरीका ग्रेट अगेन) आंदोलन का हिस्सा बन गये, जिससे उन्हें ट्रम्प के करीब आने का अवसर मिला। ट्रम्प ने उन्हें अपनी मार-ए-लागो एस्टेट पर नियुक्त किया और फिर नवंबर 2024 की जीत के बाद ट्रम्प ने गोर को व्हाइट हाउस ऑफिस में राष्ट्रपति कर्मचारियों का निदेशक बना दिया और वह वाशिंगटन डीसी में रहने लगे। इस प्रभावी जॉब के कारण गोर व्हाइट हाउस में ट्रम्प के अति विश्वसनीय व्यक्ति बन गये और सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियों में सलाह देने लगे, जिससे मागा के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य असहज हो गये, जिनमें एलन मस्क भी शामिल थे। मस्क ने सिफारिश की थी कि जार्ड इसहाकमैन को नासा का प्रमुख नियुक्त किया जाये। गोर ने ट्रम्प के कान भर दिये कि इसहाकमैन ने तो डेमोक्रेटिक पार्टी को चंदा दिया था। इसहाकमैन की नियुक्ति नहीं हुई। मस्क को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने गोर को ‘सांप’ कह डाला।
प्रिंसीपल्स मार्को रूबियो (गृह सचिव) व हावार्ड लुट्निक (वाणिज्य सचिव) को लगता है कि ‘भारत अच्छे हाथों में है’ और गोर ‘अमरीका के शानदार प्रतिनिधि साबित होंगे’ लेकिन नई दिल्ली ने गोर की नियुक्ति का सावधानीपूर्वक स्वागत किया है। इस बात को लेकर तो राहत है कि नई दिल्ली में ऐसा राजदूत होगा, जिसके व्हाइट हाउस व ट्रम्प से सीधे संबंध हैं, लेकिन इस बात को लेकर चिंता भी है कि उस पद पर एक नौसिखिया को बैठाया गया है, जिस पर कभी चेस्टर बोवल्स व जेके गॉलब्रेथ जैसी विभूतियां बैठीं थीं और जिसे भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण व केंद्रीय एशिया के बारे में कोई ज्ञान नहीं है। ट्रम्प ने अपने राजनीतिक व व्यक्तिगत वफादार को नई दिल्ली तो भेज दिया है, लेकिन लाख टके का प्रश्न है कि क्या गोर अमरीका व भारत के बीच बंद हुए दरवाज़े को फिर से खोल पायेंगे? अटकलों से कोई फायदा नहीं, समय स्वयं इसका जवाब देगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर