कुत्ते और आदमी

अपना देश महान है। इसके सांस्कृतिक गौरव, इसके मानव-मूल्य दया-धर्म का अन्त नहीं। पशुओं के बारे में हमारे मन में अतीव स्नेह है। उनका बाल भी बांका न हो, यही हमारी प्रतिबद्धता है। कुत्ता हो या गाय, जन-मार्गों पर आवारा घूमते हुए किसी भी लावारिस पशु को आपके द्वारा चोट पहुंचाने की मनाही है। ऐसा करो तो दण्ड मिलेगा और जेल भी। पशुओं के किसी वीभत्स हत्याकांड पर जान भी जा सकती है।
देश में आदमी और पशु एक समान हैं। आदमी पशु सम नहीं हुए। कहते हो, हो जाएंगे। पोखर में गिरा आदमी बहुमंजिला इमारत वाले नेता जी को कुछ कह भी न सकेंगे, और अनाधिकार प्रवेश की फिराक में दूसरे देशों के वासी हो जाएंगे।
चिन्ता की बातें कई हैं, जो आज की दुनिया में समस्या बन सकती हैं। कुत्ते और आदमी के रिश्ते को लेकर साहित्य सदा चिन्तित रहा है। ज्ञान पीठ विजेता गुरदयाल सिंह ने अपनी कहानी कुत्ता और आदमी में इसकी चिन्ता की है। चिन्ता है कि कुछ मूल्यों पर आदमी कुत्ते से भी पीछे चला गया। हमने तो कुत्तों की प्रतिष्ठा बढ़ाने की बहु-चेष्टा की। युधिष्ठिर स्वर्ग के रास्ते की ओर पांव-पांव चलते हुए स्वामी भक्त कुत्ते का मार्ग-दर्शन पा गये। इस जन्म सोने का कुत्ता दान करो, प्रतिदान भरपूर मिलता है। धनी कोठियों के पालतू पामेरियन तो बच्चों-सा प्यार पाते हैं। हां, सड़क के बाहर फुटपाथों पर जीने और सोने का ठिकाना ढूंढता हुआ इन्सान, दुत्कार क्योंकि उनकी कोठियों का दिठौना लगते थे ये। हां वे फटे पुराने आदमियों को पास नहीं फटकने देते, कहीं किसी बातूनी क्रांति का बिगुल न बजा दे। नहीं चाहिये देश को क्रांति या बातों से पैदा क्रांति। यथा- स्थितिवाद का असर यहां पसरा हुआ है। उसे पसरा रहने दो।  यही तो बहुमंजिला इमारतों की सुरक्षा है। लेकिन कुत्तों पर आंच नहीं आनी चाहिए, न अट्टालिकाओं के द्वारपाल कुत्तों पर और न अन्दर मखमल की गद्दियों पर सजी कुर्सियों पर बैठे पालतू कुत्तों को अमीरों की गोदी में रह कर राज्य करता हम छोड़ आये। अपनी गलियों और सड़कों पर लावारिस कुत्तों ने नित्य बढ़ते झुण्डों में खूंखार तमाशा छेड़ रखा है। जातिवादी जन-गणना करने लगे हैं, तो पता चला है कि इन्सानों की प्रजनन दर घट गई है और कुत्ते सरकार की बन्धयकरण धमकियों के बावजूद लगातार अपनी संख्या में वृद्धि पा रहे हैं। अब सार्वजनिक स्थानों, गलियों, बाज़ारों, मोहल्लों में उनकी संख्या के सीमित से असीमित होना है। पड़ोसी के कुछ निष्कासित कुत्ते भी इन कुत्तों के मेले में छिप गये, और अपने पैतृक स्थान का हवाला देकर बाकायदा कुत्तों की हिंस्र दुनिया बना रहे हैं। चिन्ता न करना मोहल्ले के मीर मुंशिओ कुत्ते वापिस आएंगे, मोहल्ले में अपना स्थान वापिस पाएंगे। धीरे-धीरे हम अपनी अतिक्रमित जगह उन्हें पेश करते जा रहे हैं। जगह को बड़ी इमारत वाला ले गया या कुत्तों के झुंड वहां बैठ भौंक रहे हैं, और किसी राजनीतिक सभा-सा नज़ारा पेश कर रहे हैं। 
खैर दिन बदलते नज़र आये। शीर्ष न्यायपालिका का निर्देश आया, सड़कें खाली करो, सब लावारिस कुत्ते इकट्ठे करके आश्रयगृहों में डालो और उनको बन्धयाकरण के टीके लगा दो। इन्सान की शांति, सैर और आवागमन में कातिल कुत्तों को मार नहीं सकते, उन्हें सभ्य बना कर ही इन्सान का जीवन सहज बनाओ।
लेकिन अपने देश में पशु अर्चकों की बहुत बड़ी जमात है। उन्होंने देश के बहुत-से कोनों में स्थित अदालतों में मानवीयता के आधार पर याचिकाएं दायर कर दीं। सुप्रीम कोर्ट ने इकट्ठा फैसला दे दिया है, कुत्तों को बन्धयाकरण के टीके लगा कर लावारिस उन्हीं सड़कों पर छोड़ दे। जो ़खतरनाक या रैबीज संक्रमित हैं, उन्हें अपने आश्रय स्थल में रहने दो अर्थात ़खतरनाक होने या संक्रामक होने के नाम पर आश्रय स्थलों में रह सकते हो। आदमी का रोग पहचान में नहीं आता, लेकिन अब कुत्तों का रोग तो पहचानना ही पड़ेगा। जितनी कुत्ता संरक्षण की याचिकायें लगी हैं, वे सब दो-दो लाख की फीस भरें। उसी से भर ज़रूरत के कुत्ता आश्रय स्थल बनेंगे, अर्थात पहले नौ मन तेल खरीद लाओ, फिर वहां राधा नाच करेगी।
अब राधा नाच कैसे करेगी? लावारिस कुत्तों का जुलूस सड़कों पर लौट आया, और घरों में कैद राधायें, अपनी ़खैर मनाती हैं कि ये लौटे कुत्ते न संक्रमित हों न खूंखार।
इस देश में समस्या का हल यूं ही होता है। पिछले दिनों शहरों की सड़कों, चौराहों पर यात्रियों को तंग कर रहे अवैध भिखारी भीड़ को तितर-बितर करने के आदेश का भी यही हश्र हुआ है। कोई भीख नहीं मांगेगा। यह व्यापार बन गया है। भिखारियों को ठग नियंत्रक वेतन देते हैं, और उधार, चोरी या किराये पर लिये गये बच्चे गिड़गिड़ा कर दया, धर्म का माहौल बनाते हैं। इस भीख बाज़ार को बंद करना था, और बच्चों का डी.एन.ए. टैस्ट करके उन्हें सही ज़िन्दगी वापिस बख्शनी थी। आदेश हुआ था, लेकिन पूरा नहीं हो सका। 
भिखारियों के लिए आश्रय-स्थल नहीं, और बच्चों के डी.एन.ए. टैस्ट की व्वस्था कहां है? इसलिए नंगा सच आदर्श घोषणा पर हावी हो गया। न आश्रय-स्थल थे, न भिखारी अपना कमाऊ धंधा छोड़ कर आना चाहते थे। इसलिए अभी परनाला वहां का वहां है। भिखारी सड़कों पर लौट रहे हैं, और भिखारी बच्चे उनकी टांगों के साथ लिपटे हैं। ़खैर वही हुआ सांप भी मरा, लाठी भी नहीं टूटी। निर्देश भी हो गया, और कुत्ते और आदमी भी वापिस अपनी-अपनी जगह लौट आये। सच कहें चौक पर भिखारियों के झुण्डों, और सरे मैदान पर आप पर भौंकते हुए कुत्तों के बिना बात नहीं बन रही थी। देश भी मेरा भारत महान नहीं लग रहा था।

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