सितम्बर माह के किसान मेले व किसान प्रशिक्षण शिविर

किसान मेले तथा किसान प्रशिक्षण शिविर किसानों तक कृषि ज्ञान-विज्ञान तथा शुद्ध बीज पहुंचाने के लिए आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों तथा प्रशिक्षण शिविरों में किसानों के पिछले समय में उपलब्ध करवाई गई कृषि तकनीकों का मूल्यांकन भी होता है और किसानों तथा वैज्ञानिकों दोनों को दिशा मिलती है। नई कृषि तकनीकों तथा खोज विधियों का प्रदर्शन भी इन मेलों तथा शिविरों में ही किया जाता है। ये मेले तथा शिविर किसानों तथा वैज्ञानिकों के बीच अंतर-संवाद का अवसर प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक किसानों से सलाह लेते हैं कि अब किसानों की कृषि संबंधी ज़रूरतें कौन-सी हैं। प्रश्न-उत्तर संगोष्ठियों में वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के सवालों के जवाब दिए जाते हैं। फिर सबसे अधिक किसान संशोधित तथा नये बीज, फलों के पौधे आदि खरीद कर ले जाते हैं। इस रबी की बिजाई से पहले भी रबी संबंधी किसानों को जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए किसान मेलों तथा शिविरों की सुविधा उपलब्ध होगी। नागकलां जहांगीर (अमृतसर) में इस वर्ष का पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.) लुधियाना द्वारा किसान मेला 10 सितम्बर को, बल्लोवाल सौंखड़ी में 12 सितम्बर, रौणी (पटियाला) में 16 सितम्बर, फरीदकोट में 18 सितम्बर, गुरदासपुर में 24 सितम्बर तथा लुधियाना का मुख्य मेला 26-27 सितम्बर को आयोजित किया जाएगा। 
मेलों में किसानों में सबसे बड़ा आकर्षण संशोधित तथा शुद्ध बीजों के लिए होता है। बीज किसानों की प्राथमिक तथा मुख्य ज़रूरत है, क्योंकि इसकी गुणवत्ता का फसल के उत्पादन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इनका इस्तेमाल कृषि उत्पादन में 20 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकता है। ये बीज संशोधित तथा नई किस्म के होते हैं, जिनमें जैविक एवं पौष्टिक शुद्धता होती है। कम से कम उगने की शक्ति निर्धारित होती है तथा बीज लगने वाली बीमारियों तथा नदीनों से मुक्त होते हैं। निर्धारित स्तर वाले बीज तैयार करने के लिए बीज पंजाब राज्य बीज प्रमाणन संस्था द्वारा तस्दीक किए जाते हैं।
गेहूं पंजाब में रबी की मुख्य फसल है, जिसकी लगभग 35 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल पर काश्त की जाती है। किसान मेलों तथा किसान प्रशिक्षण शिविरों में मुख्य रूप से अधिकतर किसान मुख्य फसलों का बीज खरीदने आते हैं। वे गेहूं का अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्मों के बीज लेने के लिए अधिक उत्सुक होते हैं। चाहे वे धान की फसल की देख-रेख कर रहे हैं, परन्तु वे साथ-साथ गेहूं की बिजाई की योजनाबंदी में भी व्यस्त हैं। पी.ए.यू. ने अपने फार्म सलाहकार सेवा केन्द्रों, कृषि अनुसंधान केन्द्रों, कृषि वैज्ञानिकों तथा बीज उत्पादन फार्मों एवं किसानों को बीज उपलब्ध करवाने के प्रबंध किए हैं।  
इसके अतिरिक्त पंजाब यंग फार्मज़र् एसोसिएशन द्वारा आई.ए.आर.आई.-कोलैबोरेटिव आऊटस्टेशन रिसर्च सैंटर, रखड़ा, पटियाला (सी.ओ.आर.सी.) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्  (आई.सी.ए.आर.) द्वारा बीज वितरण-कम-किसान प्रशिक्षण शिविर 23 सितम्बर को आयोजित किया जाएगा। आई.सी.ए.आर. द्वारा विकसित जिन किस्मों के बीज उपलब्ध होंगे, उनमें डी.बी.डब्ल्यू.-371, डी.बी.डब्ल्यू.-372, डी.बी.डब्ल्यू.-327, एड-3406, एच.डी.-3369, एच.डी.-3386, एच.डी.-3385 शामिल हैं। इसके अतिरिक्त पिछेती बिजाई के लिए एच.डी.-3298 किस्म का बीज भी किसानों को उपलब्ध होगा। ये अधिक उत्पादन देने वाली किस्में हैं, जो किसानों ने इस्तेमाल करके सफलता पाई हैं। सर्व-भारतीय फसलों की किस्में तथा स्तरों को स्वीकृति देने वाली केन्द्र की समिति द्वारा भी इन किस्मों को स्वीकृति देकर जारी किया गया है। इसके अतिरिक्त किसान धान की पूसा-2090 तथा पूसा-1824, पी.बी.-1509, पी.बी.-1885 तथा पी.बी. 1401 के प्लांट भी देख सकेंगे। 
गेहूं से सही उत्पादन तभी प्राप्त किया जा सकता है, यदि बीज खरीदने (सितम्बर) के बाद बिजाई होने (नवम्बर) तक सही हालात में बीज को भंडार किया जाए। अधिक तापमान, बारिश तथा नमी के विपरीत प्रभावों, कीड़े-मकौड़ों तथा बीमारियों से बचा कर रखा जाना ज़रूरी है, नहीं तो गेहूं के सही उत्पादन तथा परिणाम प्राप्त नहीं होंगे। पी.ए.यू. विशेषज्ञों का कहना है कि कई खेतों में अपने आप उगे पौधों की समस्या भी आती है, जो पिछली फसल की कटाई के समय बीज या दानों के गिर जाने के कारण पैदा होती है। इसको नियंत्रित करने के लिए किसानों को आवश्यक कदम उठाने चाहिएं। बीज को वीटावैक्स पॉवर-75 डब्ल्यू.एस 0 3 ग्राम प्रति किलो बीज या वीटावैक्स 2 ग्राम प्रति किलो बीज या प्रोवैक्स (यू.पी.एल.) या पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश दवाइयों में से किसी एक से संशोधित कर लेना चाहिए। निजी क्षेत्र में किसानों को तस्दीकशुदा बीज प्रसिद्ध डीलरों से ही खरीदने चाहिएं। गेहूं की किस्मों का चयन क्षेत्र, सिंचाई तथा बिजाई समय अनुसार करनी चाहिए। बढ़िया उत्पादन लेने के लिए गेहूं की उचित समय पर बिजाई करनी चाहिए। समय पर लगाई जाने वाली अलग-अलग किस्मों के लिए अक्तूबर के चौथे सप्ताह से नवम्बर का चौथा सप्ताह है। खाद का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के अनुसार या फिर पी.ए.यू. की सिफारिशों के अनुसार किया जाना चाहिए।

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