पुतिन और जिनपिंग की गुफ्तगू से हंगामा है क्यों बरपा ?
इन दिनों दुनिया के अधिकतर राजनीतिक और कूटनीतिक मंचों पर जिस एक बातचीत को लेकर हंगामा मचा हुआ है, वह कोई धमकी नहीं है, वह कोई बड़ा प्लान भी नहीं है और न इस बातचीत में प्रत्यक्ष तौर पर कोई राजनीतिक या कूटनीतिक समीकरण ही नज़र आता है। फिर भी व्हाइट हाउस से लेकर नई दिल्ली के सियासी गलियारों तक में इस बातचीत की खूब गूंज है, तो इसलिए क्योंकि इस पूरी बातचीत के राजनीतिक हलकों में खूब कल्पनाशीलता के घोड़े दौड़ाये जा रहे हैं। दरअसल चीन में विक्ट्री डे परेड के मौके पर रूस के राष्ट्रपति पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उत्तर कोरिया के सुप्रीमो किम जोंग जब चलते हुए आपस में लंबी उम्र पर एक गुफ्तगू कर रहे थे तो यह बेहद साधारण सी लगने वाली बातचीत जिस पर चीन और रूस के राष्ट्रपति बीच-बीच में मुस्कुरा रहे थे, अनुवादकों के ज़रिये जब दुनिया के सामने आयी, तो दुनिया इसके विषय को सुनकर हैरान रह गई। दरअसल ये दोनों नेता यह बात कर रहे थे कि आजकल 70-72 साल की उम्र ही क्या होती है? लंबी उम्र को बढ़ाने वाली ऐसी मैडीकल तकनीक और कृत्रिम अंग आ चुके हैं, जिनकी बदौलत इन्सान 150 सालों तक आसानी से जी सकता है। यूं तो यह देखने में सचमुच एक हल्की फुल्की और साधारण सी जिज्ञासाभरी बातचीत ही लगती है, लेकिन दुनिया के दो ताकतवर देशों के नेता भला इतनी हल्की फुल्की और सहज बातचीत कहां किया करते हैं?
इसलिए वॉशिंगटन से लेकर लंदन तक और दिल्ली से लेकर पेरिस तक इस बातचीत के गूढ़ से गूढ़ अर्थ निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अगर दुनिया के दो सबसे ताकतवर राजनेता उम्र संबंधी साधारण सी लगने वाली बातचीत कर रहे हैं, तो ज़रूर इसके पीछे कोई गहरा राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भ छिपा होगा, जो आज नहीं तो कल दुनिया को चौंका देगा। दरअसल यह बातचीत इसलिए भी एक से एक हैरान करने वाले निष्कर्ष खोज रही है, क्योंकि यह ऐसे समय पर दुनिया के सामने आयी है, जब रूस और चीन से पश्चिमी देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हैं और भारत इन दोनों के साथ हाथ मिलाकर या इनकी तरफ झुकने का संकेत करके दुनिया की सियासत को और हैरान कर रहा है। रूस पर यूक्रेन युद्ध के कारण भारी प्रतिबंध लगे हुए हैं और चीन, अमरीका तथा यूरोप के साथ कई सालों से रणनीतिक खींचतान में उलझे होने के बावजूद यह दुनिया की नई ताकत का केंद्र बन गया है।
रूस पर अमरीका सहित यूरोप के प्रतिबंधों का कोई असर होता नहीं दिख रहा। ऐसे में जब अमरीका और यूरोप दोनों ही इन दो देशों और इनके दोनों नेताओं से परेशान हैं, वैसे में इनकी एक एक खुसुर-फुसुर पर भी कान दिये जाते हैं और उसके गहरे व गूढ़ अर्थ निकाले जाते हैं ताकि वह कुछ भी जो हैरान करने वाला घटित होने जा रहा हो, उसे पहले से ही जान लिया जाए। ऐसे में जब दोनों राजनेता लंबी उम्र को लेकर वैज्ञानिक संदर्भों और अनुसंधानों पर सहज व मानवीय जिज्ञासा से पूर्ण बातचीत कर रहे हों, तो दुनिया के कूटनीतिक गलियारों में इसे ऐसा ही मान लेना कतई गवारा नहीं होगा। माना जा रहा है कि सूत्रवत वाक्यों में ये दोनों राजनेता लंबे समय तक अपने-अपने देशों में सत्ता प्रमुख बने रहने के अलावा दुनिया पर अपनी हुकूमत चलाने का ख्वाब देख रहे हैं। इसलिए दुनियाभर के मीडिया और कूटनीतिक हल्कों में इस साधारण बातचीत के तरह-तरह के अर्थ निकाले हैं और जिन्होंने नहीं भी निकाले, उन्होंने भी इसे साधारण बातचीत मानने से तो इन्कार ही किया है।
हर कूटनीतिक गलियारे का अनुमान है कि ये दोनों नेता आने वाले दशकों की वैश्विक कूटनीति की बात कर रहे थे और आपस में इस बात को जानने की कोशिश कर रहे थे कि लंबे समय तक इन्हें अपनी अंगुली के इशारों पर कैसे नचाया जाए। ज्यादातर अमरीकी थिंक टैंकों ने पुतिन और शी जिनपिंग की लंबी उम्र संबंधी बातचीत को चीन और रूस के संदर्भ में लंबे समय के वैश्विक प्रभाव जमाने की आकांक्षा मान रहे हैं। उनके मुताबिक ये दोनों मिलकर उस समीकरण की खोज में हैं, जिससे दुनिया पर चीन और रूस का दबदबा सालों तक कायम रहे। दुनिया दो बड़े राजनेताओं की उम्र संबंधी इस बातचीत के दीर्घकालिक गठजोड़ संबंधी मतलब निकाल रही है। दुनिया के किसी भी राजनीतिक गलियारे में यह मानकर नहीं चला जा रहा कि वास्तव में ये दोनों राजनेता सचमुच लंबे समय तक जीने की आकांक्षा और इस संबंध में हो रहे अनुसंधानों की बातचीत कर रहे थे।
माना जा रहा है कि ये दोनों अपनी सत्ता की निरंतरता का समीकरण खोज रहे थे और दोनों ने सांकेतिक तौर पर दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि अभी वह दूर दूर तक भी सत्ता छोड़ने वाले नहीं हैं यानी आने वाले दशकों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति इन्हीं के इर्दगिर्द घूमेगी। दुनिया में जीवन लंबा करने और स्वास्थ्य सुधारने की जो तमाम रिसर्च चल रही हैं, इनके बहाने रूस और चीन बायोटेक्नोलॉजी और जीन एडिटिंग पर दीर्घकालिक निवेश की योजना भी बना रहे हैं। दुनिया के राजनेता और उनके राजनीतिक, कूटनीतिक सलाहकार इसलिए भी इस बातचीत को साधारण बातचीत मानने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि माना जा रहा है कि ये दोनों घुटे हुए राजनेता कभी भी सहजता से बात नहीं करते। इनकी हर बातचीत में एक दूरगामी और गहरा अर्थ छिपा होता है। खास तौर पर सार्वजनिक मंचों पर कही गई इनकी बातों के बेहद सांकेतिक अर्थ होते हैं। पुतिन और शी जिनपिंग के साथ तो यूं भी ऐसा मामला है कि इनकी सहज बातचीत को भी दुनिया अपने-अपने नज़रिये से कूटनीतिक व्याख्या करती है। इसीलिए दुनिया इन दो राजनेताओं की सहज जिज्ञासापूर्ण बातचीत को उम्र संबंधी बातचीत मानने की जगह ‘लोंगेविटी ऑफ पॉलिटिक्स’ मान रही है।
हालांकि यह भी सच है कि हाल के सालों में अमरीका की सिलिकॉन वैली, चीन के बायोजीन रिसर्च लैब्स और रूस के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्रों तक में इंसान की उम्र को लेकर लंबे शोध किये गये हैं लेकिन इस बातचीत का केंद्र वास्तव में उम्र की यह जिज्ञासा नहीं लगती बल्कि लंबे समय तक दुनिया में प्रभावशाली पकड़ बनाये रखने की मंशा का सूत्र तलाशने की कोशिश ही लग रही है। हालांकि इस राजनीति के मनोवैज्ञानिक और वैचारिक संदेश अपनी-अपनी जनता को यह खुशफहमी देना भी है कि उनके राजनेता, उनके स्वास्थ्य को लेकर कितनी दूर तक की बातचीत कर रहे हैं। हालांकि इस बातचीत का एक हल्का फुल्का अंदाज ही इसे समझना चाहिए कि अब वॉशिंगटन से लेकर नई दिल्ली के कूटनीतिक गलियारों तक में शी जिनपिंग और पुतिन के साथ मोदी और ट्रम्प की भी उम्र 150 साल तक बढ़ाये जाने की मजेदार मांग उठने लगी है। कुछ टिप्पणीकार बड़े गंभीर अंदाज में कहते हैं कि शी जिनपिंग या पुतिन ही क्यों, मोदी या ट्रम्प को भी 150 साल तक जीने का फार्मूला मिलना चाहिए ताकि दुनिया के कूटनीतिक गलियारे में एक-दूसरे पर संतुलन बनाकर रखा जा सके।
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