प्रवास-चिंता की रेखाएं
यूरोपियन, अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड देशों में गैर-प्रवासी के मामले को लेकर बड़ी लहरें उठनी शुरू हो गई हैं। ज्यादातर देशों में कुछ संगठनों द्वारा पहले अवैध आप्रवासियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई और फिर प्रवासियों की विरुद्ध आवाज़ उठनी शुरू हो गई। इस सिलसिले के तारें नस्ल या रंग भेद से जा जुड़ती हैं। अगस्त महीने में आस्ट्रेलिया के कई शहरों में तो सीधा भारतीय प्रवासियों को निशाना बनाया गया है। उसके बाद ब्रिटेन और कनाडा में भी ऐसे प्रदर्शन शुरू हो गए। ब्रिटेन में विगत दिवस लंदन में अवैध आप्रवासियों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर एक लाख से भी अधिक लोगों ने प्रदर्शन किया, जिसने सभी को हैरान-परेशान कर दिया है। इन देशों में कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। आर्थिक रूप से इनमें ज्यादातर देश नुक्सान में जा रहे हैं। बेरोज़गारी के साथ-साथ महंगाई बढ़ रही है घरों की उपलब्धता भी कम हो रही है।
भीड़-भाड़ के कारण बड़े-छोटे शहरों में यातायात अवरुद्ध हो रहा है। यहां के ज्यादातर गोरे और मूल नागरिक पैदा हुई इन समस्याओं का आरोप आप्रवासियों या शरणार्थियों पर लगा रहे हैं। जहां तक ब्रिटेन का संबंध है, यहां की जनसंख्या का 16 प्रतिशत से भी अधिक प्रवासी हैं, जिनमें ज्यादातर पाकिस्तान, बांग्लादेश, मध्य पूर्वी देशों, भारत और नेपाल से आए हुए हैं, जो अक्सर नस्लप्रस्त गोरे लोगों का निशाना बनते रहे हैं। इन देशों में पहले भी ऐसा माहौल बनता रहा है, परन्तु अब इसमें आई तेज़ी ने चिंताओं में वृद्धि कर दी है। 9 सितम्बर को ब्रिटेन के वेस्ट मिडलैंडस में एक सिख युवती के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म ने सभी को हैरान कर दिया है। यह 20 वर्षीय इंग्लैंड में जन्मी लड़की सुबह काम पर जा रही थी, जिसे दो गोरों ने निशाना बनाया। दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। उससे मारपीट की और यह भी कहा कि तुम्हारा इस देश में कोई स्थान नहीं, इसलिए वापस चले जाओ। सिख फैडरेशन ब्रिटेन ने कहा है कि पिछले समय से ऐसे नस्लीय हमले बढ़ते जा रहे हैं, जिनका कड़ा संज्ञान लेना बनता है। इस समय ‘यूनाइट द किंगडम’ नामक एक मज़बूत संस्था बनी हुई है, जिसका नेतृत्व इमीग्रेशन विरोधी नेता टॉमी राबिंनसन कर रहा है। इसने अपनी भड़काऊ गतिविधियों से वहां कीर स्टार्मर की सरकार को बड़ी चुनौती दे रखी है। इन देशों में अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों के प्रवासियों के विरुद्ध भी भारी रोष उभर रहा है। भारत और चीन जैसे देशों से लाखों ही लोग रोज़गार की तलाश के लिए पश्चिमी देशों को प्रवास करते रहे हैं। भारी संख्या में शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी भी इनमें शामिल होते हैं। इन देशों में अवैध आप्रवासियों को तो अक्सर तस्करों के संगठनों के साथ जोड़ा जाता है। इन प्रदर्शनों में नस्लवाद, मुस्लिम और चमड़ी के रंग के नाम पर भेद किया जाना भी शुरू हो गया है।
आधुनिक आस्ट्रेलिया वहां सदियों से बसते प्राचीन बाशिंदों से लगभग 250 वर्ष बाद अस्तित्व में आया, इस बड़े क्षेत्रफल वाले देश की जनसंख्या महज़ 2.72 करोड़ के लगभग है, वहां भी भारतीयों को निशाना बनाया जाने लगा है। वर्ष 2008 में यहां भारतीय विद्यार्थियों पर जानलेवा नस्ली हमले हुए थे। परन्तु इनके विरुद्ध यहां की सरकारें कोई ज्यादा प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकीं। अमरीका में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा रूझान और भी सामने आने लगा है। अब इन देशों में अवैध आप्रवासियों के संबंध में तो बहुत ही कड़े कदम उठाए जाने लगे हैं। भारत जैसा देश जिसकी जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, के लिए बड़ी समस्या यह है कि प्रत्येक वर्ष यहां से लाखों ही लोग किसी न किसी तरह पलायन करने को प्राथमिकता देते हैं। पैदा हो रही यह अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति भारत जैसे देश के लिए बेहद चिन्ताजनक कही जा सकती है, जहां जनसंख्या लगातार बढ़ रही है परन्तु अपनी जनसंख्या को सम्भालने के प्रयास बुरी तरह कम होते जा रहे हैं। यदि विदेशों में जाने का रूझान मजबूरीवश धीमा पड़ गया तो भारत के लिए इस मुहाज़ पर एक और बड़ी चुनौती पैदा हो जाएगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द