बाढ़, रबी, डी.ए.पी. तथा यूरिया
गेहूं पंजाब की मुख्य फसल है जिसकी बिजाई 88 लाख एकड़ क्षेत्रफल पर की जाती है। प्रत्येक छोटा-बड़ा किसान इसकी बिजाई करता है, चाहे यह धान आदि से मुनाफा कम देती है। इसकी खाद की ज़रूरत अपेक्षाकृत अधिक है। चाहे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना द्वारा सिफारिश की गई नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश आदि खाद किसान अधिक डाल रहे हैं, इस उम्मीद में कि ऐसा करने से उत्पादन बढ़ेगा, परन्तु कई बार ऐसा करने से अन्य समस्याएं आ जाती हैं, जैसे बीमारियों तथा कीड़े-मकौड़ों का बढ़ना, जिससे किसान महंगे मूल्य की दवाइयों का स्प्रे करने के लिए मजबूर होते हैं। खरीफ की फसल अभी पकने को तैयार है। खरीफ की फसल में पानी खड़ा है। गेहूं की बिजाई शुरू होने में 4 से 5 सप्ताह का समय शेष है। किसान अभी से यूरिया तथा डी.ए.पी. के प्रबंध के बारे में सोच रहे हैं। उन्होंने जगह-जगह पर मंडियों में डीलरों तथा गांवों की सहकारी संस्थाओं और सोसाइटियों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं, परन्तु उन्हें ज़रूरत के अनुसार यह खाद मिलने का आश्वासन नहीं मिल रहा। कई स्थानों पर किसान निर्धारित कीमत से अधिक दाम पर यूरिया तथा डी.ए.पी. खरीदने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं।
यदि खाद का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना हो तो मध्यम, उपजाऊ और अच्छा उत्पादन देने वाली ज़मीनों में 55 से 60 किलो डी.ए.पी., 20 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ डालने की सिफारिश है। गुरदासपुर, होशियारपुर, रोपड़ तथा शहीद भगत सिंह नगर आदि ज़िलों में 40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश डालने की सिफारिश की गई है। कलराठी ज़मीन में 25 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन डालें। आम किसानों की यह धारणा है कि पिछेती मध्य-दिसम्बर के बाद बोई गई गेहूं को नाइट्रोजन अधिक देनी चाहिए, परन्तु पी.ए.यू. के अनुसार इसे 25 प्रतिशत नाइट्रोजन कम डालने की ज़रूरत है। खरीफ की फसलों के मुकाबले गेहूं की फसल के लिए फास्फोरस की अधिक ज़रूरत होती है। इसलिए फास्फोरस वाली खाद जैसे डी.ए.पी. फसल में सिफारिश के अनुसार ही पूरी डालने की ज़रूरत है। इसकी मात्रा कम नहीं होनी चाहिए। पूरे उत्पादन की प्राप्ति के लिए डी.ए.पी. पूरी मात्रा में तथा सही ढंग से डालें। यदि फास्फोरस तत्व के लिए डी.ए.पी. के बजाय सुपरफास्फेट खाद का इस्तेमाल किया जाए तो बिजाई के लिए 30 किलो प्रति एकड़ यूरिया सिफारिश है, परन्तु डी.ए.पी. के साथ यूरिया डालने की ज़रूरत नहीं।
विशेषज्ञों के अनुसार डी.ए.पी. तथा यूरिया की मांग तथा अपूर्ति को ठीक करने के लिए किसानों को यह खाद सूझबूझ के साथ तथा पी.ए.यू. की सिफारिशों के अनुसार इस्तेमाल करनी चाहिए। इस वर्ष बारिश अधिक होने के कारण धान, मक्की तथा गन्ना तीनों फसलों की काश्त के अधीन क्षेत्रफल कुछ बढ़ा है। देश में अगस्त तक किसानों ने 400 लाख हैक्टेयर पर धान की बिजाई की थी, जो गत वर्ष 15 अगस्त तक 362.92 लाख हैक्टेयर हुई थी। मक्की की काश्त के अधीन क्षेत्रफल बढ़ कर 82.97 लाख हैक्टेयर से 92.79 लाख हैक्टेयर हो गया। पंजाब में यह 1 लाख हैक्टेयर को छू गया है।
इस वर्ष किसानों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। शुरू में धान उत्पादक खुश थे कि बारिश अच्छी हुई है और फसल भरपूर होगी। बाद में बाढ़ ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। धान की फसल प्रमुख होने के कारण यदि अच्छी हो तो किसानों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। हज़ारों एकड़ फसल इस वर्ष बाढ़ से बर्बाद हो गई। यही नहीं जहां फसल खड़ी भी है, वहां तेले का हमला हो गया है, जिसके लिए किसानों को महंगे-महंगे छिड़काव करने पड़ रहे हैं।
परन्तु कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा एग्रो इनपुट्स डीलर्स के अनुसार यूरिया, डी.ए.पी. म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा कम्पलैक्स फर्र्टिलाइज़र्स के भंडार ज़रूरत से कम हैं। यूरिया की मांग बढ़ गई है। उधर, आपूर्ति में कमी आई है। चीन से आयात कम हो गया है। चीन पिछले वर्षों में भारत को भारी मात्रा में यूरिया तथा डी.ए.पी. आपूर्ति का स्रोत रहा है। फिर भारत के खाद प्लांटों में आंध्र प्रदेश का नागअर्जुन फर्टिलाइज़र्स एवं कैमिकल्स प्लांट तथा तेलंगाना के प्लांट की तकनीकी खराबी के कारण फर्टिलाइज़र्स उत्पादन बंद होने के कारण आपूर्ति लगभग इन प्लांटों से भी ठप्प हो गई है। यूरिया तथा डी.ए.पी. आदि रासायनिक खादों की खपत कम करने के लिए कृषि तथा किसान कल्याण विभाग, आई.सी.ए.आर. (इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट) नई दिल्ली तथा आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. के विशेषज्ञों के अनुसार अनुसंधान तथा प्रमाणित संस्थाओं से सिफारिश की गईं किस्मों जैसे गेहूं की एच.डी.-3386, एच.डी.-3385, एच.डी.-3406, एच.डी.-2369, एच.डी.-3298 (पिछेती बिजाई के लिए) तथा एच.डी.-3086 आदि, डी.बी.डब्ल्यू-372, डी.बी.डब्ल्यू-371, डी.बी.डब्ल्यू-370, डी.बी.डब्ल्यू-222, डी.बी.डब्ल्यू-327, डी.बी.डब्ल्यू-187 तथा पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश पी.बी.डब्ल्यू.-869, पी.बी.डब्ल्यू.-766, पी.बी.डब्ल्यू.-826 आदि तथा अन्य पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश किस्मों तथा डब्ल्यू.एच.-1105 (एच.ए.यू.) की काश्त करनी चाहिए। रबी की बिजाई के लिए ज़मीन अधिक योग्य होने के कारण किसान नेताओं के अनुसार यूरिया तथा डी.ए.पी. की मांग बढ़ेगी तथा कृषि विभाग के लिए समय पर इन खादों को किसानों तक पहुंचाने का प्रबंध करना ज़रूरी है।