मोहित

‘मुझे क्षमा कर दीजिए। आगे से रोज कार्य करके लाया करुंगा।’ अपने आंसू पोंछता हुआ मोहित बोला। आज भी वो काम करके नहीं लाया था। इसलिए गणित के अध्यापक ने उसे बहुत मारा था।
मोहित एक गरीब बालक था। उसके माता-पिता दिन रात मज़दूरी करके उसे पढ़ाते थे। उनकी यह विकट स्थिति उससे छुपी न थी, इसलिए वो भी चोरी छिपे काम करके कुछ पैसे कमा लेता था, ताकि वह अपने माता-पिता का कुछ बोझ हलका कर सके। काम से मिले रुपयों को वह चोरी-छिपे नज़दीक के सोनपुर डाकघर में जमा करता था। उसके पास करीब डेढ़ हजार रुपए हो गए थे। स्कूल से लौटने पर वह कभी कुली बनकर सामान उठाता कभी रेलवे स्टेशन अथवा बस स्टॉप पर लई या चना बेचकर पैसे कमाता। इसलिए उसे स्कूल का काम करने का समय न मिल पाता और रोजाना उसको डांट व मार पड़ती। अध्यापक उसके घर की स्थिति से अनभिज्ञ थे। उन्हें नहीं मालूम था कि उसके मां-बाप दिन रात बैलों की भांति काम करके मुश्किल से अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं।
मोहित अपने माता-पिता की अकेली संतान था, इसलिए उसके मां-बाप उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। वे बमुश्किल उसकी फीस भर पाते थे।
एक दिन शाम को जब मोहित घर लौटा तो देखा उसके गणित के अध्यापक उसके पिताजी से बात कर रहे हैं। यह देखकर वह घबरा गया। वह समझ गया कि वह उसकी शिकायत कर रहे होंगे।
अध्यापक के जाने के बाद उसके पिता ने उसे डांटा और कहा-‘तुम्हारे अध्यापक ने मुझे सब कुछ बता दिया है, पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा रहे हो। हम तुम्हारी फीस के लिए बमुश्किल से पैसे जमा कर पाते हैं और तुम पढ़ भी नहीं सकते।’ यह सुनकर मोहित के आंखों में आंसू आ गए। वो बिना कुछ बोले अपने बिस्तर पर सो गया।
अचानक अगले दिन उसके पिता का एक्सीडेंट हो गया। बिल्ंिडग निर्माण के समय लोहे का खंबा उनके उपर गिर पड़ा था। उनको बहुत चोटें आयी थीं। इलाज के लिए डेढ़ हजार रुपए की तुरंत ज़रुरत थी। डेढ़ हजार रुपए इकट्ठे करना उसकी मां के बस में न था। तब मोहित ने यह बात अपने माता-पिता को स्पष्ट की कि वह चोरी-छिपे मेहनत मजदूरी करके कुछ रुपए जमा करता था, वे रुपए आज इस संकट की घड़ी में काम आ जाएंगे, इसी कारण वह पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रहा था।
यह सुनकर माता-पिता ने उसे गले से लगा लिया। पहले तो वे मोहित की मेहनत के पैसों से इलाज कराने को राजी ही नहीं हुए, लेकिन बाद में मोहित की भावना को समझते हुए वह पैसे डॉक्टर को देकर इलाज करवा लिया, जो मोहित ने सोनपुर डाकघर में जमा कर रखे थे। डॉक्टर के इलाज से कुछ समय बाद मोहित के पिताजी स्वस्थ हो गए।
अगले कुछ दिनों बाद जब पिता ठीक होकर घर आए तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे। उन्हें अपने होनहार बेटे पर गर्व हो रहा था।

 (सुमन सागर)
बाल कहानी-नीरज भारती

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