अलौकिक दुनिया में ले जाता है चिकमंगलूर

कवि की कल्पनाओं की तरह सजा तमिलनाडु प्रदेश का चिकमंगलूर ज़िला आपको यहां की नैसर्गिक चित्रकारी के जरिए गुनगुनाने को मजबूर कर देगा। पश्चिमी घाट में स्थित यह पर्वतीय स्थल यात्रियों को एक अलौकिक दुनिया में ले जाता है। यदि आप रोमांचक पर्यटन के शौकीन हैं तो यह स्थान आपके इस शौक को भी अपने खास अंदाज में पूरा करता है। कन्नड़ शब्द चिकमंगलूर का अर्थ होता है ‘छोटी बेटी का शहर’। कहा जाता है कि इस शहर को सकरेपट्टना के नेता रूक्मणगडा ने अपनी छोटी बेटी की शादी में दहेज के तौर पर दिया था। 
शास्त्रों में चंद्रद्रोण पर्वतश्रेणी नाम से मशहूर चिकमंगलूर की पर्वतमाला को स्थानीय निवासी बाबा बुदनगिरि की पहाड़ियों के नाम से पहचानते हैं। हरात दादा, हयात कलंदर या बाबा बुदन अरब प्रदेश से आए हुए एक सूफी पीर थे। सदियों पहले बाबा बुदन यमन देश से कॉफी के सात बीज अपने साथ ले आए और इसी पहाड़ी पर सबसे पहला बीज बोकर उन्होंने भारत को ‘कॉफी संस्कृति’ की भेंट दी। 
उल्लेखनीय है कि मुलयनगिरि तथा बाबा बुदनगिरि की चोटियां 6317 फीट की ऊंचाई के साथ कर्नाटक राज्य के उच्चतम शिखर हैं। इन पर फतह करने की आस में हर सप्ताहांत में हजारों ट्रैकर्स प्रकृति के नजारों का लुत्फ उठाते हुए पहाड़ों में चल पड़ते हैं। ओस की बूंदों से सजे पेड़-पौधे और अपनी मधुर आवाज़ में बरखा को आमंत्रित करते पक्षी इस रोमांचक ट्रैक को और भी रोचक बनाते हैं। 
असंख्य सितारों से सजे आसमान के नीचे बाबा बुदनगिरि तथा कुद्रेमुख की पहाड़ियों में जलप्रपातों की गूंज सुनते हुए ऐसा एहसास होता है, जैसे मां प्रकृति खुद उनकी गोद में बैठकर हमें लोरियां सुनाकर सुला रही हैं। मुलयनगिरि तथा बाबा बुदनगिरि के ट्रेक पर ट्रेकिंग के साथ आप इस मनोरम स्थल पर कैंपिंग का रोमांचक अनुभव भी ले सकते हैं। यदि आप खुद का टेंट नहीं ला पाए, तो चिकमंगलूर टाउन से किराए पर भी ले सकते हैं। दोनों ही तरह की व्यवस्थाओं में आनंद ही आनंद है। 
पश्चिमी घाट से घिरे भद्रा डैम के शांत पानी को जब डूबते सूरज की लालिमा अपने रंगों में रंग देती है तो प्रकृति की कला का एक उत्कृष्ट नमूना दिखाई पड़ता है। भद्रा नदी के किनारे स्थित अभ्यारण्य की गिनती भारत के कुछ श्रेष्ठ अभ्यारण्यों में की जाती है। यह प्रोजेक्ट टाइगर का हिस्सा भी है। अभ्यारण्य में स्थित कलथिगिरि शिखर यहां की उच्चतम पहाड़ी है। यहां आप 120 से भी ज्यादा प्रजाति के पौधे, रंगबिरंगी तितलियों और पंछियों की 300 दुर्लभ प्रजातियां भी देख सकते हैं। तेजी से विलुप्त हो रहे हॉर्नबिल नामक सुंदर पक्षी की लगभग चार प्रजातियां भद्रा के मौसमी जंगलों में पाई जाती हैं।  यागाची नदी के किनारे बसे बेलूर और हालेबीडू प्राचीन जुड़वां शहर आपको होयसल राज्य के सुनहरे इतिहास की सैर पर ले जाएंगे। षष्टपर्णी तथा अष्टपर्णी कमल के आकार में बने होयसल मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तुकला में एक क्रांति लाए थे। होयसल वास्तुकला में मुख्यत: हाथी, शेर, घोड़े तथा फूलों की डिजाइन का उपयोग किया जाता है जो इस राज्य के बल, साहस, गति एवं सुंदरता की गाथा सुनाते हैं। 
होयसल शैली में बना चेन्नकेशवा मंदिर बेलूर का मुख्य आकर्षण है और मंदिर के केंद्र में बना एक स्तंभ अपनी धुरी पर घूम सकता है। मंदिर के बाहरी हिस्से में स्थित यह स्तंभ बिना किसी नींव के हवा में लटका हुआ है। हालेबीडू का अर्थ होता है ‘पुराना शहर’। होयसलेश्वारा मंदिर, केदारेश्वर मंदिर तथा जैन मंदिर यहां के मुख्य मंदिर हैं। उत्कृष्ट कलाकारी से पूर्ण स्तंभ, छतें तथा विमान इन मंदिरों की विशेषताएं हैं। लगभग 12वीं सदी के करीब बनाए गए ये मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण हैं। मंदिरों की दीवारों पर बने कुछ दृश्य हमें पौराणिक गाथाओं की स्मृति कराते हैं।
8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठ में से एक श्रृंगेरी मठ चिकमंगलूर के श्रृंगेरी तालुक में स्थित है। तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित श्रृंगेरी मठ यहां के शांत वातावरण में भक्तिभाव के सुर घोलता है। मठ के नजदीक स्थित विद्याशंकर मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर और सिरिमाने जलप्रपात इस स्थान को इतिहास और वास्तुकला का एक अनोखा संगम बनाते हैं। (उर्वशी)

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