विलुप्ति के कगार पर है -पैंगोलिन

पैंगोलिन दुनिया का सबसे अधिक अवैध रूप से तस्करी किया जाने वाला स्तनधारी है। सिर से लेकर पैर तक केराटिन से बने शल्कों से ढका पैंगोलिन एक ऐसा शर्मीला और अकेला स्तनपायी जीव है, जो अपने प्राकृतिक आवास के बाहर पनप नहीं सकता। यहां तक कि इसे कैद में पालने का प्रयास भी सफल नहीं रहा। इस वजह से अगर पैंगोलिन को दुनिया में जिंदा रखना है, तो इसके प्राकृतिक आवासों में ही इसे सुरक्षा प्रदान करना होगा। हालांकि पैंगोलिन को हर तरह की कानूनी सुरक्षा प्राप्त है, लेकिन कई तरह के औषधीय लाभ के लिए इस्तेमाल होने के कारण इसकी तस्करी रोके नहीं रूक रही। वैसे चीन जैसे देश में इसका जबर्दस्त औषधीय इस्तेमाल है, मगर सच्चाई यह भी है कि अभी वैज्ञानिक इसके जीवन के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते। 
बहरहाल लंबी पूंछ वाले पैंगोलिन का प्राकृतिक आवास सुंडा, फिलिपीन, भारत, चीन और अफ्रीका के कई देश हैं। पैंगोलिन की आठ प्रजातियां पायी जाती हैं जो सभी एशिया और अफ्रीका में मौजूद हैं। लेकिन करीब-करीब सभी जगहों पर ये लुप्तप्राय स्थिति में हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं पैंगोलिन बेहद शर्मीला, मायावी और गुप्त स्तनधारी जीव है, जिसके लिए कंवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इनडैंजर्ड स्पेसीज कानून के तहत सुरक्षा प्रदान किए जाने के बाद भी ये लगातार खतरे में बना हुआ है। जहां तक अपने देश भारत में पैंगोलिन की स्थिति का सवाल है तो यह बेहद चिंताजनक है। भारत में दो तरह की पैंगोलिन प्रजातियां पायी जाती हैं- एक भारतीय पैंगोलिन और दूसरी चीनी पैंगोलिन। भारत में इन दोनो ही पैंगोलिन प्रजातियों को वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है, जो उन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करती है। बावजूद इसके पैंगोलिन भारत में तस्करी का एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। 
वास्तव में इसका सबसे ज्यादा अवैध शिकार मुख्य रूप से इसके कवच की बेहद ऊंची दर पर मांग के कारण होता है। इसका उपयोग पारंपरिक चीनी चिकित्सा में और उसके साथ-साथ कई असाध्य बीमारियों को सही करने के लिए किया जाता है। भारत में साल 2024 की मौजूदा स्थिति में पैंगोलिन सर्वाधिक संकटग्रस्त जीव प्रजाति की खतरनाक सूची में शामिल हैं। खास तौर पर हमारे यहां चीनी पैगोलिन की स्थिति बहुत खराब है इसलिए इसे इसी महीने यानी अक्तूबर 2024 में क्रिटिकली इनडैंजर्ड स्पेसीज में शामिल कर लिया गया है।  
भारत में लगातार पैंगोलिन के संरक्षण का सरकारी ही नहीं बल्कि गैर सरकारी संगठनों के स्तर पर भी प्रयास किया जा रहा है। फॉरेस्ट विभाग और वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के जरिये पैंगोलिनों की तस्करी पर सख्त लगाम लगाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, बावजूद इसके पैंगोलिनों की संख्या लगातार घट रही है। इसलिए सरकार सख्त कानूनों के साथ साथ जमीनी स्तर पर भी इनकी तस्करी और अवैध शिकार को रोकने की कोशिश कर रही है। पैंगोलिन दरअसल मलय भाषा के शब्द पैंगुलिन से आया है, जिसका मतलब होता है रोलर। दरअसल इसका शरीर जिन कठोर शल्कों से ढका होता है, वे शल्क इसकी रक्षा के लिए गेंद की तरह मुड़ने की क्षमता रखते हैं। पैंगोलिन इस मामले में एक विचित्र किस्म का जीव है कि इसकी जीभ करीब 40 सेंटीमीटर लंबी होती है और इसकी लार बहुत ही चिपचिपी होती है, जिसका इस्तेमाल यह चींटियों और दीमकों को अपनी जीभ में चिपकाने के लिए करता है। 
एक पैंगोलिन सालभर में 7 करोड़ से ज्यादा चींटियां और दीमक खा जाता है। जहां पैंगोलिन होते हैं, उसके आसपास चींटियां और दीमक जैसे कीट नियंत्रण में रहते हैं। पैंगोलिन अपने लंबे, तीखे पंजों से दीमकों की बांबी को खोदने और खोदकर दीमकों को निकालने के लिए जाना जाता है। पैंगोलिन की इन गतिविधियों से किसानों को बहुत फायदा होता है, क्योंकि एक तरफ जहां यह चींटी और दीमक जैसे फसलों के लिए हानिकारक कीटों का खात्मा करता है, वहीं यह अपनी गतिविधियों से मिट्टी के लिए विभिन्न पोषक तत्वों को फैलाने और मिट्टी को हवा प्रदान करने में मदद भी करता है। पैंगोलिन वास्तव में कार्निवोरा समूह के निकट हैं, जिसमें बिल्लियां, कुत्ते और भालू भी आते हैं। पैंगोलिन परिवार का वैज्ञानिक नाम मैनिडी है। इसकी तीन उपश्रेणियां हैं- फैटागिनस और स्मुट्सिया अफ्रीका में पाये जाते हैं और तीसरी उपश्रेणी मैनिस एशिया में पायी जाती है। 
कुल मिलाकर पैंगोलिन की आठ अलग-अलग प्रजतियां होती हैं और इन सभी प्रजातियों को आईयूसीएन संरक्षण समिति के तहत सुरक्षा प्राप्त है। लेकिन तमाम कानूनी सुरक्षा हासिल होने के बावजूद पैंगोलिन अत्यधिक शिकार, तस्करी और अपनी आवास क्षति से जबर्दस्त पीड़ित हैं। यही कारण है कि दुनिया की सभी पैंगोलिन प्रजातियां लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में शामिल हैं। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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