फीफा विश्व कप-2018 : भारत क्यों करेगा ब्राज़ील को चीयर ?

गरीब-गुरुबा का खेल, गावों में लोकप्रिय फुटबॉल की सबसे बड़ी चैंपियनशिप रूस में शुरू हो गई है। यह फीफा विश्व कप फुटबॉल चैंपियनशिप के नाम से विश्वप्रसिद्ध है। काश, इसमें भारत भी खेल रहा होता। भारत की गैर-मौजूदगी में अधिकतर भारतीय फुटबॉल प्रेमी ब्राज़ील की टीम का ही हौसला अफजाई करते नज़र आएंगे। भारतीय फुटबॉल प्रेमियों की ब्राज़ील को लेकर निष्ठा शुरू से रही है। हालांकि लैटिन अमेरिकी स्पेनिश भाषी ब्राज़ील देश भारत से हजारों किलोमीटर दूर है, पर हमारे फुटबॉल  प्रेमी  ब्राज़ील में ही भारत की छाप को देखते हैं। पेले, रोमोरियो से लेकर रोनोल्डो और अब नेमार जैसे ब्राज़ील के खिलाड़ियों ने भारत में अपनी खास जगह बनाई हुई है। आगामी विश्व कप में भारतीय फैन्स की नजरें  नेमार पर रहेंगी। वे ब्राज़ील के स्टार फारवर्ड हैं। नेमार में पेले और रोमोरियो जैसा महान फारवर्ड बनने के गुण मौजूद हैं। उनका गेंद पर गजब का नियंत्रण रहता है। उनके गोल पर मारे गए शॉट अचूक होते हैं। अब देखना यह होगा कि कप्तान नेमार अपनी टीम के लिए 16 साल का खिताबी सूखा खत्म कर पाते हैं या नहीं?  मुझे याद है कि 1970 में ब्राज़ील ने फाइनल में अपने दमदार प्रदर्शन से इटली को फाइनल में पराजित किया था। उस टीम में पेले, गेरसन, जौरजिन्हो, रिवेलिनो और तोस्ताओ जैसे उम्दा खिलाड़ी थे। उसके बाद से ही ब्राज़ील की फुटबॉल के कलात्मक खेल के दीवाने हो गए थे भारतीय खेल प्रेमी भी। यूरोप के देश जैसे इटली, फ्रांस,जर्मन, रूस भी बेहतरीन फुटबॉल खेलते हैं। पर भारतीयों को यूरोप की पावर फुटबॉल की अपेक्षा ब्राज़ील की कलात्मक स्टाइल की फुटबॉल कहीं ज्यादा पसंद आती है। निश्चय ही फुटबॉल भारत और ब्राज़ील को अद्भुत ढंग से जोड़ता भी है। दोनों ही देश ब्रिक्स समूह के शक्तिशाली सदस्य भी हैं। दोनों देश कई बहुपक्षीय मंच से जुड़े हैं। दोनों देशों की कई साझी महत्वकांक्षाएं हैं। उनके पास मजबूत सेवा क्षेत्र, आईटी, औषधि क्षेत्र में मजबूत स्थिति है। उनकी विदेश नीति सतत विकास पर केंद्रित है। वे समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं और उनके समक्ष चुनौतियां भी एक जैसी हैं। दोनों का ही मानना है कि अच्छी अर्थव्यवस्था के बिना सामाजिक समावेश संभव नहीं है।    ब्राज़ील की एक विशेषता यह भी है कि ब्राज़ील वासी भारतीय मूल के पुठ्ठे वाली गायों को पालना और उनके दूध, दही, मक्खन, घी का सेवन करना दोंगली किस्म की गायों की बनिस्पत कहीं ज्यादा पसंद करते हैं। ब्राज़ील में भारतीय गायों को ‘‘ब्राह्मण’’ कहा जाता है।  फीफा चैंपियनशिप के मैच दुनिया भर  के अरबों फुटबाल के दीवाने देखेंगे। भारत में भी फुटबॉल को लेकर उत्साह कोई कम नहीं है। भारत विश्व फुटबॉल में शक्ति नहीं बन पाया है, पर भारत में इसे पसंद तो खूब किया जाता है। गांव-गांव में खेला जाता है फुटबाल। भारत ने इस वर्ष फीफा अंडर-17 चैंपियनशिप का सफल आयोजन किया था। उसके चलते भारत में फुटबॉल से जुड़े स्टेडियम और दूसरी सुविधाओं में भी कुछ हद तक गुणात्मक सुधार हुआ है।  एशिया का ब्राज़ील यकीन मानिए कि भारत फुटबॉल में शक्ति रहा है। एक ज़माने में हम फुटबॉल में एक बड़ी ताकत थे। वर्ष 1950 में भारत ने ब्राज़ील में खेले गए फीफा फुटबॉल विश्व कप के लिए क्वालीफाई  भी कर लिया था, लेकिन, वहां पर भारत को खेलने नहीं दिया गया था।  इसका एक कारण यह भी बताया जाता है कि फीफा चैंपियनशिप में खेलने के लिए फुटबॉल बूट पहनने पड़ते हैं, जबकि तब भारतीय खिलाड़ियों को उस वक्त नंगे पांव खेलने की आदत थी और उनके पास कायदे के बूट थे भी नहीं। लेकिन, तब से दुनिया और भारत भी बहुत बदल चुका है। अब भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बन चुका है। और भारत ने 1962 के जर्काता एशियाई खेलों में फुटबॉल का गोल्ड मैडल भी जीता था। उसके बाद भारत को ‘फुटबॉल का ब्राज़ील’ तक कहा जाने लगा था। उस दौर में चुन्नी गोस्वामी, पी.के. बैनर्जी, जरनैल सिंह,, थंगराज जैसे बड़े खिलाड़ी भारत की फुटबॉल टीम की जान थे। पर,  बाद के सालों में फुटबॉल कहीं पिछड़ गया। क्रि केट की लोकप्रियता ने बाकी खेलों को नेपथ्य में धकेल दिया। फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप चैंपियनशिप के बाद भारत में फुटबॉल के प्रति दिलचस्पी फिर से बढ़ने लगी है। हमारे युवा खिलाड़ी भी अब आगे आने को बेताब हैं। फीफा वर्ल्ड कप के मैच नई दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी,, नवी मुंबई,,कोच्चि, गोवा में खेले गए थे। इन सब जगहों पर फुटबॉल को लेकर सकारात्मक माहौल बना है। नौजवान फुटबॉल में कुछ करने को बेताब हैं। ये सच है कि भारत में क्रि केट जुनून और धर्म की शक्ल ले चुका है। पर हमारे यहां फुटबॉल के चाहने वाले क्रि केट प्रेमियों से कहीं ज्यादा हैं, परन्तु, वे ग्रामीण परिवेश में रहने के कारण मीडिया की नज़रों से दूर बने रहते हैं। कई राज्यों में फुटबॉल को क्रि केट से ज्यादा पसंद किया जाता है। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल, गोवा और मणिपुर शामिल हैं। फुटबॉल बंगाल की संस्कृति का हिस्सा रहा है। वहां हर तबके का इंसान फुटबॉल से जुड़ा है। वहां इस खेल को लेकर जुनून की स्थिति है। बंगाल से चुन्नी गोस्वामी, पी.के.बैनर्जी, सुरजीत सेन गुप्ता, सुधीर कमराकर जैसे महान खिलाड़ी निकलते रहे हैं। पी.के.बैनर्जी बिहार शिफ्ट होने से पहले बिहार से भी खेले और चुन्नी गोस्वामी तो अद्भुत खिलाड़ी थे। वे  प्रथम श्रेणी की क्रि केट भी खेले। वे स्तरीय हरफनमौला खिलाड़ी थे। अगर बात केरल की हो तो वहां फुटबॉल की शुरुआत 1890 में हुई जब महाराजा महाविद्यालय तिरु अनंतपुरम के रसायनशास्त्र के प्रोफेसर बिशप बोएल ने युवाओं को फुटबॉल खेलने की प्रेरणा दी। 1930 के दशक में राज्य में कई फुटबॉल क्लब बने। केरल ने भी देश को कई सफल और मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी दिए हैं। और गोवा तो भारत में फुटबॉल का केंद्र बन चुका है। गोवा में सलगांवकर, डेंपो, चिर्चल ब्रदर्स, वॉस्को स्पोर्ट्स क्लब और स्पोर्टिंग क्लब डिगोआ आदि क्लब हैं। गोवा के कई खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया है। गोवा में फीफा विश्व कप के दौरान जिंदगी थम-सी जाएगी। सब तरफ फुटबॉल ही फुटबॉल का माहौल होगा। अब पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर भी फुटबॉल की ताकत बन चुका है। भारत में खेली गई अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप चैंपियनशिप में मणिपुर से 8 खिलाड़ी भारतीय टीम  में थे। बहरहाल, 32  देश फीफा वर्ल्ड के फाइनल राउंड में खिताबी जंग के लिए संघर्ष करेंगे। इन्हें आठ ग्रुपों में रखा गया है। इनमें मिस्र, आइसलैंड, सेनेग जैसे देश भी हैं। तय मानिये कि ये सभी देश क्वार्टर फाइनल तक भी नहीं पहुंच सकेंगे। पर हम तो फिलहाल इनसे भी बहुत पीछे हैं। यह कोई सुखद स्थिति तो नहीं है कि 125 करोड़ की आबादी वाला देश फीफा विश्व कप को दूर से देख रहा होगा।