अमरीका की ट्रेड वार और तीसरी दुनिया के देश

जब से अमरीका में ट्रम्प ने शासन की बागडोर सम्भाली है, तब से उसकी संरक्षणवादी नीतियों से एक ही नारा उभर कर सामने आ रहा है। ‘अमरीका अमरीकियों के लिए’। ट्रम्प की नीति यह है कि यह चाहे जी-सात के देश हों, या भारत और चीन जैसे देश, अगर वह इन देशों से आयात करता है, तो इन पर अपनी आयात ड्यूटी बढ़ा देगा। क्योंकि उन देशों के उत्पादन भारी अनुदान के कारण अमरीकी उत्पादों से सस्ते पड़ते हैं। इस प्रकार उनकी डम्ंिपग अमरीका के स्थानीय उद्योगों को कड़ी प्रतिस्पर्द्धा देती है। अगर यह आयात ड्यूटी लगा कर महंगे कर दिये जाएं तो इनकी मांग कम हो जाएगी और अमरीकी कम्पनियां बच जाएंगी। उनके रोज़गार अवसरों में कमी नहीं आएगी।
अमरीका ने इससे पहले जी-सात देशों के सम्मेलन में अपने स्टील और एल्यूमीनियम के निर्यात पर ड्यूटी बढ़ा दी थी। कनाडा के विरोध के कारण ट्रम्प ने जी-सात देशों के सम्मेलन में बहिर्गमन कर दिया था। इस कारण अब दुनिया में एक संरक्षणवादी ट्रेड वार शुरू हो गई है। अमरीका अपनी आयात और निर्यात दोनों ड्यूटियां बढ़ा कर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपना वर्चस्व पैदा करना चाहता है। इस तरह उसका भुगतान शेष उसके बहुत अनुकूल हो जाएगा और उसके लिए समृद्धि के द्वार खुल जाएंगे। अमरीका का यह व्यवहार केवल जी-सात के समृद्ध देशों के साथ ही नहीं। स्टील और एल्यूमीनियम पर ड्यूटी बढ़ाने से जहां भारत के निर्माण अभियान को धक्का लगेगा। वहां भारत से आयातों पर ड्यूटी बढ़ा देने से भारत के निर्यात को भी धक्का लगेगा, और इनका व्यापार और भी मंदी ग्रस्त हो जाएगा। दूसरी ओर अगर अपने उद्योगों की हित रक्षा के लिए वह उनकी उत्पादित वस्तुओं पर अपनी निर्यात ड्यूटी बढ़ा देता है तो पहले ही हमारा भुगतान शेष अमरीका के साथ बहुत प्रतिकूल चल रहा है, डॉलर के मुकाबले हमारे रुपये का मूल्य पहले ही गिर रहा है, यह और भी गिरेगा और इस प्रकार हमारे निर्यात अधिक बिकने चाहिए थे, वह बिक नहीं पाएंगे, क्योंकि ड्यूटी रुकने से वह महंगे हो गए। हमारे निर्यातों की मांग अमरीका में लोचदार है, इसलिए हमारे उद्योगों को भारी झटका लगेगा। अमरीकी आयातों पर ड्यूटी बढ़ाते हैं तो भारतीय उपभोक्ताओं के लिए ये वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। इसलिए भारत के लिए यह आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति है।
उसके साथ ही अमरीका भारत पर यह प्रतिबंध लगा रहा है कि हम ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद या कम करें। हम अपनी ज़रूरत का अस्सी प्रतिशत कच्चा तेल आयात करते हैं। अगर अमरीका के धाकड़पन से हम इस तेल के आयात को कम या बंद करते हैं, तो देश में तेल की आपूर्ति कम हो जाएगी और इसकी कीमतों में वृद्धि होती रहेगी। ताज़ा समाचार है कि ट्रम्प की इस नीति के विरोध के कारण वह भारत द्वारा ईरान से तेल न खरीदने के निर्देश में कमी कर रहा है, लेकिन अपनी संरक्षणवादी आयात-निर्यात ड्यूटियों में कमी करने के लिए तैयार नहीं। इस ट्रेड वार से हमारे निर्यातकों को झटका लगेगा और उपभोक्ताओं के लिए अमरीका से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी।
अमरीका ने यह व्यापारिक जंग केवल यूरोपीय देशों और भारत के साथ ही नहीं, तीसरी दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण देश चीन के साथ भी छेड़ दी है। अमरीका ने अभी चीन से 2.3 लाख करोड़ के आयात पर 25 प्रतिशत ड्यूटी लगा दी है, दो हफ्ते में एक लाख करोड़ रुपए के आयात पर और लगाएगा। इस समय चीन अमरीका से 35 लाख करोड़ रुपए का आयात करता है। उसने ट्रेड वार में कूदते हुए इस पूरे आयात पर ही ड्यूटी बढ़ाने की चेतावनी दे दी है। अभी चीन के साथ अमरीका 26 लाख करोड़ रुपए के व्यापार घाटे में है। इस ड्यूटियों की ट्रेडवार में दोनों देशों में आर्थिक अव्यवस्था फैल जाएगी और इससे अधिक नुक्सान अमरीकी कम्पनियों को हो सकता है जो चीन के इस आयात के आधे भाग की आऊटसोर्सिंग कर रही हैं। उसका निर्माण कर रही हैं। अमरीका की ट्रेड वार की दादागिरी का मुकाबला यही है कि चीनी कम्पनियां अपना निवेश अमरीका में घटा दें। भारत भी  ऐसा कर सकता है, लेकिन हमारा निवेश वहां चीन के मुकाबले कम है। अमरीका की इस धाकड़ विदेशी व्यापार नीति का मुकाबला करने का यही रास्ता है कि भारत और चीन अपनी व्यापारिक निर्भरता अमरीका पर घटायें, तीसरी दुनिया के देशों से द्विपक्षीय और सर्वपक्षीय व्यापार को बढ़ायें। अभी रूस ने भी अमरीका की इस ट्रेड वार पर एतराज़ किया है। इसलिए तीसरी दुनिया के देशों, चीन, भारत और रूस का अगर एक नया व्यापारिक ज़ोन बन जाता है, तो यह एक उचित जवाब देगा।