कैसी रहेगी आयुष्मान भारत योजना ?

विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान भारत, जिसका उद्देश्य 50 करोड़ भारतीयों को कवर करना है, के समक्ष ज़बरदस्त संकट खड़े हो गये हैं। इस योजना के तहत जो 1350 प्रक्रियाएं कवर होनी हैं, उनके संदर्भ में सरकार ने मई में वह रेट (दर) प्रकाशित किये जो बीमा कम्पनियों को अस्पतालों को अदा करने हैं। यह दर अस्पतालों के लिए चिंता का कारण बन गये हैं और उन्होंने इनकी आलोचना करते हुए कहा है कि यह बेतुके व बहुत कम हैं। मसलन, सीजेरियन सेक्शन का रेट 9000 रुपये निर्धारित किया गया है, अस्पताल में पांच दिन के स्टे, फूड व कंसल्टेशन (डाक्टरों की फीस) के लिए। यह हास्यस्पद है, ऐसा एसोसिएशन फॉर हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (एएचपीआई) के महानिदेशक गिरधर ज्ञानी का कहना है। उनके अनुसार सरकारी अस्पताल में भी एक बेड को एक दिन मेंटेन करने के लिए 7000 रुपये का खर्च आता है। डाक्टरों ने इस बात की भी आलोचना की है कि रेट लिस्ट में विभिन्न बीमारियों को एक साथ जोड़ दिया गया है। मसलन, टीबी व एचआईवी (जटिलताओं के साथ) का उपचार 2000 रुपये प्रतिदिन की समान दर से रिइम्बर्स किया जायेगा। गाजियाबाद के संतोष मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर अनुपम सिंह के अनुसार यह अतार्किक है। वह कहते हैं, ‘एचआईवी जटिलताएं बहुत गंभीर हो सकती हैं। क्रिप्टोकोकल मैनिंजाइटिस के लिए महंगी एंटी-फंगल्स की आवश्यकता पड़ती है।’ इसका अर्थ यह है कि दोनों रोगों की भरपाई दर अलग-अलग होनी चाहिए। दरअसल, बुनियादी समस्या, दोनों डाक्टरों व अस्पतालों, के अनुसार यह है रिइम्बर्समेंट रेट का हिसाब वैज्ञानिक अंदाज में नहीं लगाया गया।लेकिन दूसरी ओर इस योजना के निदेशक दिनेश अरोरा का कहना है कि आयुष्मान भारत ने 60 शहरों में 100 से अधिक अस्पतालों को लेकर किये गये अध्ययन के आधार पर अपने रेट निर्धारित किये हैं। लेकिन ये अस्पताल अधिकतर टियर 2 व टियर 3 शहरों के हैं और वह भी 50 बेड से कम वाले। अनेक कारणों से इन अस्पतालों की खर्च संरचना टियर 1 शहरों के तृतीयक-केयर वाले अस्पतालों की तुलना में बहुत कम होता है। तृतीयक-केयर अस्पतालों में सुपर-स्पेशलिस्ट, नर्स/बेड का अधिक अनुपात और हाईटेक सुविधाएं जैसे कैथिटरइजेशन लैब्स आदि होते हैं, जिन सबका खर्चा बहुत अधिक आता है। ज्ञानी का कहना है कि लगभग सभी न्यूरोसर्जिकल प्रक्रियाएं और अनेक कार्डियो प्रक्रियाएं ऐसी ही सुविधाओं में करनी होती हैं, क्योंकि चंद छोटे अस्पताल ही ऐसा कर सकते हैं। लेकिन आयुष्मान भारत की दरें इस अंतर को संज्ञान में नहीं लेते हैं। सवाल यह है कि इसमें सरकार का दृष्टिकोण क्या है? फिलहाल के लिए सरकार इस बात पर बजिद है कि 15 अगस्त को इस योजना को लांच कर दिया जायेगा। लेकिन अधिकारी यह कहते हैं कि दरों पर फिर से विचार किया जायेगा। आयुष्मान भारत ने एएचपीआई से कहा है कि वह 100 मुख्य प्रक्रियाओं की सूची दे, जिनका विस्तृत खर्च अध्ययन किया जायेगा। अरोड़ा के अनुसार इसके नतीजे जनवरी 2019 के आसपास ही आ सकेंगे। तब तक आयुष्मान भारत ने अस्पतालों से सहयोग करने के लिए कहा है और एएचपीआई ने सहमति व्यक्त की है। ज्ञानी के अनुसार, ‘हम ने तब तक योजना को सपोर्ट करने की कमोबेश सहमति दे दी है।’लेकिन एक अन्य समस्या है। सीजीएचएस का रिइम्बर्समेंट कभी समय पर नहीं मिलता। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल रिलेशंस के 2010 के पेपर के अनुसार सीजीएचएस के तहत अस्पतालों को रिइम्बर्समेंट अदा करने में औसत देरी चार माह की होती है। एएचपीआई के अनुसार सीजीएचएस पर अब भी अस्पतालों का बैक पेमेंट में 400 करोड़ रुपया बकाया है। इन अनियमितताओं के चलते सीजीएचएस की जो स्थिति है वह किसी से छुपी हुई नहीं है। ऐसे में जब नाम बदलकर सरकार की एक वैसी ही योजना सामने आये तो उसे लेकर आशंकाएं स्वाभाविक हैं। फिर भी अरोड़ा विश्वास दिलाते हैं कि जिन समस्याओं से सीजीएचएस ग्रस्त है, वह आयुष्मान भारत को प्रभावित नहीं करेंगी क्योंकि इसके दिशा-निर्देशों में स्पष्ट है कि पेमेंट 15 दिनों के भीतर कर दिया जायेगा।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर