सच्ची मित्रता

एक फुर्तीला और चतुर चूहा नदी किनारे मिट्टी के ऊंचे टीले में घर बनाकर रहता था। वह सारा दिन अपने घर के भंडार को अन्न के दानों से भरता और शाम को नदी के तट पर ठंडे-ठंडे पवन के झोकों का आनंद उठाता। उसे नदी किनारे का वातावरण काफी सुहावना लगता। वह बालू के रेत पर फुदक-फुदक कर दौड़ता या फिर नदी की सीपियों से खेलता। एक दिन वह शाम के समय नदी किनारे घूम रहा था, तभी अचानक आसमान में बादल गरज उठे। वह एक अनजाने भय से कांप उठा। वह फौरन अपने बिल में जा घुसा। सुबह जब उठा और बाहर का नज़ारा देखा, तो वह डर से कांप उठा। सारा इलाका पानी से भरा हुआ था। वह अपना बचाव करता कि वह टीला भी पानी के तेज़ बहाव में धंस गया। वर्षा भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। नदी में तूफान भी बढ़ता ही जा रहा था। वह नदी के उग्र रूप को देखकर भयभीत हो रहा था। उसे लगने लगा कि वह आज जीवित नहीं रह पायेगा। उसका बचना अब मुश्किल ही है। वह नदी के जल में अपने प्राण रक्षा के लिए हाथ-पैर मारने लगा। तभी उसे नदी में तैरती हुई कोई वस्तु नज़र आई। वह अपनी जान जोखिम में डालकर उस ओर तैरने लगा और काफी प्रयास के बाद उस पर बैठ गया। उस पर बैठने के बाद ही उसके जान में जान आई। वह निश्चिंत होकर चैन की सांस लेने ही वाला था कि वह वस्तु हिलने-डुलने लगी। उसे समझते देर न लगी कि वह मगरमच्छ के पीठ पर आकर बैठ गया है। उसे काटो तो खून नहीं निकलता। उसके मुख से चीख निकल गई। मगर बड़े प्रेम से बोला—‘डरो नहीं मूषक राज! मैं तुम्हारी सहायता के लिए ही तुम्हारे पास आया हूं। मैं तुम्हें सुरक्षित स्थान पर छोड़ दूंगा। तुम निश्चिंत रहो। मुझे लोगों ने व्यर्थ ही बदनाम कर दिया है। मैं बिना कारण किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाता।
यह सुनकर चूहे को काफी आश्चर्य हुआ। फिर भी वह सांस थामे मगर के पीठ पर बैठा रहा। मगर तैरता हुआ एक ऊंचे स्थान पर ले जाकर छोड़ दिया और बोला—‘उतर जाओ मित्र! मैं तुम्हारे इस उपकार को जीवन भर नहीं भूल पाऊंगा। तुमने इस संकट के समय में मेरी जान बचाकर सूखी धरती पर पहुंचाया है। इसके लिए मैं सदा तुम्हारा आभारी रहूंगा। बरसात के मौसम के बाद मैं प्रतिदिन शाम के समय तुमसे मिलने नदी किनारे आया करूंगा। चूहा इस सुरक्षित स्थान पर अपना घर बनाकर आराम से रहने लगा। बरसात का मौसम बीत गया। नदी का पानी नीचे चला गया। प्रतिदिन चूहा नदी किनारे जाकर मगर से मीठी-मीठी बातें करता और मगर के पीठ पर बैठकर नदी का भ्रमण करता। इस प्रकार चूहे का प्रतिदिन मनोरंजन हो जाता था। एक दिन शाम को जब वह नदी के किनारे आया, तो उसने मगर से बड़े दु:खी स्वर में बोला—‘मित्र, मैं तुम्हें सावधान करने आया हूं।’ मगर चूहे की बात को समझ नहीं पाया और बोला—‘मित्र! मैं तुम्हारे बात समझ नहीं पाया। जो कुछ कहना हो स्पष्ट कहो।’ चूहे ने कहा—‘मित्र! दरअसल बात यह है कि कुछ लालची लोग तुम्हारी चमड़ी के लिए तुम्हें मारना चाहते हैं। तुम्हारी चमड़ी बहुत महंगी बिकती है। कुछ लोग तुम्हारी चमड़ी से बहुत कीमती सामान बनाने की बात कर रहे थे। कल कोई व्यक्ति तुम्हें मारने के लिए मांस के टुकड़े को नदी में फेंकेगा और तुम्हें मूर्ख बनाकर मारकर ले जायेगा। मैंने कुछ लोगों को आज यह सब कहते सुना है। इसलिए मैं तुम्हें सावधान करने आ गया।’ मगर यह जानकर सुबह से ही सतर्क था और नदी के किनारे का कई बार चक्कर लगा चुका था। दोपहर होने वाली थी कि मगर को नदी तट से कुछ दूर एक व्यक्ति नज़र आया। उसके एक हाथ में थैला था और दूसरे हाथ में नुकीला भाला। वह व्यक्ति भाला को बालू के रेत में गाड़कर थैले में से मांस का टुकड़ा निकाल नदी के जल में फेंकने लगा। तभी उसे कुछ दूरी पर मगर हिलता-डुलता नज़र आया। उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही। आदमी ने सोचा कि मगर मांस के लालच में नदी के जल में आगे बढ़ रहा है। यही सोचकर उसने  थैले में से कुछ और मांस के टुकड़े को नदी में डाला और भाला हाथ में लेकर नदी के जल में प्रवेश कर गया। उसने थैले में बचे मांस के टुकड़े को नदी के जल में फेंक दिया। पर मगर कहीं गायब हो चुका था। तभी अचानक आदमी के हाथ में भाला दूर जा गिरा। उसके मुख से चीख निकल गई। मगर ने पैंतरा बदलकर जल के भीतर चुपके-चुपके तैरते हुए आदमी का एक पैर पकड़ कर नदी में खींचना प्रारम्भ कर दिया था।  शाम को चूहे के नदी तट पर आते ही मगर बोला—‘मित्र! आज यदि तुमने मुझे सावधान न किया होता, तो आज मेरी मौत निश्चित थी। तुम मेरे सच्चे मित्र साबित हुए हो। तुम्हारे उपकार को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। तुम्हारे इस उपचार के लिए तुम्हारी प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।’ चूहा बोला—‘मित्र! इस प्रकार की बात कर मुझे शर्मिंदा न करो। तुमने भी तो मुझे संकट के समय जीवन दान दिया था। संकट की घड़ी में मित्र ही मित्र के काम आते हैं। संकट की घड़ी में काम आने वाले ही सच्चे मित्र होते हैं।

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