दुनिया के सभी रिश्तों से ऊपर है मित्रता

अब के पहले हमेशा भावनाओं के चरम का, भावनाओं के ज्वार का एक मतलब अत्यंत निकटता से भी रहा है। दो दोस्त जब एक दूसरे को दिलोजान से चाहते हों, एक दूसरे पर अपने से ज्यादा भरोसा करते हों तो उनके बैठने, उठने-खाने, बोलने, चलने कहीं पर भी कोई दूरी नहीं रह जाती।  लेकिन कोरोना ने सोशल डिस्टेंसिंग को एक बड़े मूल्य के रूप में एक बड़ी सजगता के रूप में स्थापित किया है, जिसके बाद अब घनिष्ठ से घनिष्ठ दोस्त गर्मजोशी से गले मिलने के पहले 10 बार सोचेगा। गले से लिपट जाना तो बहुत दूर की बात है, अब दुनियाभर में दोस्तों के बीच हाथ मिलाने तक का सिलसिला खत्म हो गया है। लेकिन कई सालों पहले संयुक्त राष्ट्र संघ ने 30 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस इस उद्देश्य से घोषित किया था कि दुनिया के लोग एक दूसरे की संस्कृति को स्वीकारेंगे, एक दूसरे की आस्थाओं, मूल्यों और उपस्थिति का सम्मान करें। इसलिए सन 2011 से संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस 30 जुलाई को मनाया जाता है। लेकिन सही मायनों में इस मित्रता दिवस की शुरुआत करीब एक शताब्दी पहले ग्रीटिंग कार्ड का कारोबार करने वाली कंपनियों ने की थी। करीब 1958 से तो यह नियमित रूप से हर साल अगस्त माह के पहले रविवार को मनाया जाता रहा है। क्योंकि1958 में इसी दिन प्राग में पहली बार इंटरनेशनल फ्रैंडशिप डे मनाया गया था। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस को लेकर एक भ्रम यह भी है कि इसे 30 जुलाई को मनाया जाए या अगस्त के पहले रविवार को। दुनिया इसको लेकर दो खेमों में बंट चुकी है। कुछ देशों में इसे 30 जुलाई को मनाया जाता है, तो भारत जैसे तमाम देशों में अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस अगस्त माह के पहले रविवार को मनाया जाता है,  लेकिन चाहे हम मित्रता दिवस को 2 अगस्त को मनाएं या 30 जुलाई को। असली बात दिन या तारीख नहीं है, असली सवाल यह है कि क्या कोरोना के बाद भी दोस्ती का वह जज्बा लोगों में मौजूद रहेगा, जिस जज्बे को हज़ारों सालों से मित्रता के नाम पर लोग सैल्यूट करते आये हैं? कोरोना ने सब कुछ बदल दिया है। हमारे इर्द-गिर्द के आत्मीय लोगों के उस घेरे को भी इसने छिन्न-भिन्न कर दिया है, जिसमें हमारे अजीज दोस्त हुआ करते थे। सवाल है क्या इंसान हज़ारों सालों से अर्जित और विकसित की गई अपनी इस भावना को कोरोना के डर से हमेशा-हमेशा के लिए त्याग देगा? भविष्य में क्या होगा वह तो अभी पता नहीं फिलहाल अभी कोरोना ने पक्की दोस्ती के सारे दुर्गों को अपने भय से ढहा दिया है? पहले लोग दोस्तों के इतने निकट हुआ करते थे कि लोग मजाक में दो घनिष्ठ दोस्तों के लिए कहा करते थे, ये मिलकर सांस लेते हैं। लेकिन कोरोना ने सोशल और फिजिकल डिस्टेंस के इतने जीवंत तर्क लोगों के दिलो दिमाग में बैठा दिये हैं कि अब दोस्ती के नाम पर हर चीज की अनदेखी करने वाली बेफिक्री दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही। दरअसल दोस्त हमारे मौके, बेमौके भर की जरूरत भर का हिस्सा नहीं होते। दोस्त नाम की जो चलती फिरती चीज है, वह हमें जीने का मूल रसायन देती है। ये दोस्त ही हैं जो हमें व्यक्तियों के रूप में विकसित होने में मदद करते हैं। हमारे परिवार के सदस्य कितने ही आत्मीय, कितने ही जादूगर क्यों न हों, लेकिन हम पर उनका असर हमेशा दोस्तों से कम होता है। दोस्ती एक ऐसी चीज़ है जिसकी भावनाओं को, जिसके एहसास को शब्दों में बांध पाना कभी संभव नहीं होगा। क्योंकि यह जो दोस्ती है, उसमें दर्जनों, सैकड़ों नहीं हजारों भावनाएं, हजारों इच्छाएं और हजारों भाईचारे समाहित हैं।  शायद इसीलिए मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ‘दोस्ती हमें मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ भर नहीं रखती है बल्कि वही हमें विकसित करती है। ये दोस्त ही हैं जो न केवल हमारे सामाजिक संबंधों की सबसे मजबूत श्रेणी को निर्मित करते हैं बल्कि यही हमारे सामाजिक संबंधों को गहरी और विकासवादी दृष्टि देते हैं। क्योंकि दोस्ती के भाव के बिना इसका विकास ही संभव नहीं है।’ हमारे पास दोस्ती का कितना बड़ा खजाना है, यह इस बात से तय नहीं होता कि हमारे पास दोस्त कितने हैं बल्कि इस बात से तय होता है कि जितने भी हमारे दोस्त हैं, चाहे वह एक ही क्यों न हो, क्या हमारे और उसके बीच भावनाओं की अधिकतम निकटता, एक दूसरे के लिए नैतिक और मानवीय से लेकर वैयक्तिक तक आकर्षण है या नहीं? फिलहाल तो पूरी दुनिया में कोरोना के कारण इस दोस्ती नाम की संस्था का सबसे ज्यादा क्षरण हुआ है। लेकिन इतिहास गवाह है कि इंसान ने एक से बढ़कर एक त्रासदियां झेली हैं और उनसे उबरा है। इसलिए हमें यह उम्मीद करना चाहिए कि आज भले कितना मुश्किल लग रहा हो, लेकिन एक न एक दिन दोस्ती के  वो दिन लौटेंगे, जो फिलहाल तो किस्सा, कहानी हो गये हैं। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर