मेंढक और चूहे की मित्रता 

काफी समय की बात है कि चूहे और मेंढक की मित्रता पड़ गई। चूहे ने एक दिन मेंढक को कहा कि चलो, भाई कहीं दूर घूमने के लिए चलते हैं, वहां पेट भर कर भोजन करेंगे। मेंढक चूहे की बात मान कर उसके साथ चल पड़ा। चूहे ने मेंढक को सलाह दी, ‘भाई हम ऐसे करते हैं एक मज़बूत रस्सी से हम एक दूसरे को कमर से बांध लेते हैं। ऐसा करने से हम दोनों एक साथ रहेंगे। कभी आपस से नहीं बिछड़ेंगे और सुख-दुख में एक-दूसरे के काम आ सकेंगे। मेंढक को चूहे की सलाह अच्छी लगी और उसने वैसा ही किया जैसे चूहे ने कहा था।’
दोनों मित्र एक साथ बंधे हुए चल पड़े। उन्होंने अब काफी दूर जाना था। चलते-चलते रास्ते में एक नदी आ गई। उसका गहरा नीला पानी देख कर चूहा घबरा गया और मेंढक को बोला अरे भाई यह पानी तो बहुत गहरा है हम इसे कैसे पार करेंगे। मेंढक ने बिना कुछ बोले पानी में छलांग लगा दी और चूहा भी उसके पीछे खींचा-खींचा पानी में जा गिरा। मेंढक चूहे को गुस्सा होकर बोला अरे, भाई मरे क्यों जाते हो, तैरते-तैरते मेरे पीछे चले आओ। अगर तैरना नहीं आता तो मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं बड़ी सरलता से आप को नदी पार करा दूंगा। जाते-जाते मेंढक को शरारत सूझी और वह तैर कर पानी के भीतर चला गया और चूहा भी उनके पीछे बांधा हुआ पानी के भीतर जाने लगा। चूहा गिड़गड़ाने लगा और मेंढक के आगे तरले करने लगा, ‘अरे भाई आपको अपनी मित्रता की कसम मेरे पर तरस खाओ। पानी के ऊपर आ जाओ नहीं तो मैं मर जाऊंगा।’ परंतु मेंढक के मन में तो खोट थी और जब चूहा चिल्ला रहा था उसको बहुत मजा आ रहा था। भला वह कैसे चूहे की कोई बात सुनने वाला था। चूहा बार-बार कह रहा था ऐ मेंढक भईया मान जाओ तनिक तो मित्रता निभाओ। हमारे प्राणों के ग्राहक न बनो। पुराने लोग सच ही कहते थे कि मित्र पर विश्वास करने से पहले मित्रता की पहचान कर लेनी चाहिए।  नहीं तो बाद में पछताना ही पड़ता है। मेंढक और चूहे की इस खींचातानी में पानी में बड़ी हलचल मची हुई थी। उसी समय आकाश में एक चील उड़ी जा रही थी। वह चूहे को देख कर फौरन उस पर टूट पड़ी और उसको अपने पंजों में लेकर आकाश में उड़ गई। मेंढक तो चूहे के साथ रस्सी से बंधा हुआ था वह भी चूहे के साथ ही चील का शिकार बन गया। सो बच्चों यह बात हमेशा के लिए मन में बिठा लो कि किसी से मित्रता पाने से पहले मित्रता की पहचान ज़रूर कर लेनी चाहिए।

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