बैडमिंटन में एक नई प्रतिभा है लक्ष्य सेन 

लक्ष्य सेन 18 अगस्त, 2001 को अलमोरा (उत्तराखंड) में साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए। उन्होंने जूनियर विश्व कप में एक नया इतिहास रचा है। इस वर्ष का यह भारत का इकलौता पदक है, जो लक्ष्य ने भारत के नाम कांस्य पदक किया है। भारत ने  पुरुष सिंगल्ज़ में सात वर्ष के  बाद यह उपलब्धि हासिल की है। इससे पूर्व समीर वर्मा और परनीत ने यह पदक जीता था। इससे पहले सायना नेहवाल ने इसका सुनहरी आगमन 2008 में स्वर्ण पदक जीत कर किया था। सैमीफाइनल में उनका मुकाबला थाइलैंड के खिलाड़ी कुलनावरत से था, जिसकी रैंकिंग में बहुत अंतर था। पहली गेम लक्ष्य ने जीती, लेकिन मैच तीन गेम तक चला गया। थाइलैंड के खिलाड़ी उससे उत्तम रैकिंग वाले खिलाड़ी थे और यह मैच उन्होंने 20-22, 21-26, 21-13 से जीत लिया। लक्ष्य की विश्व रैंकिंग किसी समय 8 जून, 2018 को 69 पर पहुंच गई थी, जोकि इस समय कुछ बढ़ कर 87 हो गई है। इसका कारण अंतर्राष्ट्रीय मैच खेलने का अवसर न मिलना है। परन्तु लक्ष्य ने सैमीफाइनल तक के सफर में कई दिग्गज खिलाड़ियों को मात देकर यह उम्मीद जगा दी थी कि वह ज़रूर ही स्वर्ण पदक जीतेंगे। उन्होंने बहुत ही संघर्षमयी खेल खेली और यह साबित कर दिया कि भारत में विश्व स्तर के खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं। भारत में बैडमिंटन अकादमियों ने इस खेल को प्रफुल्लित करने के लिए प्रयास किए हैं। लक्ष्य सेन भी इनकी देन है। यह ऐसा खेल है जिससे भारत को उम्मीद हो सकती है कि टोक्यो ओलम्पिक में भारत की झोली में पदक पड़ सकते हैं।