बच्चे कहना क्यों नहीं मानते...

आम माता-पिता को यह शिकायत रहती है कि बच्चे कहना नहीं मानते। कभी-कभी इस शिकायत के चलते इन्हें खीझ होने लगती है। कभी वे दु:खी व परेशान हो जाते हैं, तो यदा-कदा निराशा व हताशा में घिर जाते हैं। वे समझ नहीं पाते कि किस तरह बच्चों को समझायें और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करें।स्कूल में भी टीचर परेशान रहते हैं कि बच्चों को पढ़ाई में एकाग्रता नहीं रहती और वे दूसरे बच्चों की तन्मयता को भी भंग करते हैं। बच्चे की शैतानी, लड़ाई-झगड़े इत्यादि की शिकायतें माता-पिता की चिंता को और बढ़ा देती हैं। समाधान की तलाश में अक्सर मां-बाप लड़ लेते हैं और उनकी इस लड़ाई से बच्चों की गतिविधियां  और तेज़ हो जाती हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि आज की दौड़ती-भागती दिनचर्या ने बच्चों को हमसे दूर कर दिया है। पर्याप्त भावनात्मक पोषण एवं सही देख-रेख के अभाव में बच्चे सही रास्ते पर नहीं चल पाते। बच्चों का लालन-पोषण करने में एक माली की कुशलता चाहिए। उन्हें इतना भी अनदेखा न करें कि आवश्यक खाद-पानी भी न मिल सके और इतनी भी देख-रेख की अति न कर दें कि उन्हें स्वाभाविक रूप से मिलने वाली हवा और प्रकाश भी अवरुद्ध हो जाए।
बच्चे आपकी बात मानें व आत्मसात करें, इसके लिए माता-पिता को कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है—
* आप बच्चों के सामने स्वयं ऐसे काम कभी न करें, जिनके लिए आप बच्चों को रोकते हैं।
* बच्चों की हर जायज-नाजायज मांग पूरी करने के बजाय उन्हें धीरे-धीरे सही-गलत का बोध करायें।
* जीवन के व्यावहारिक विषयों जैसे दूसरों से व्यवहार, उठने-बैठने, दौड़ने, चलने के सही तौर-तरीके, शिष्टाचार की सामान्य बातों को रोज़ थोड़ा-थोड़ा करके समझायें।
* अनजान लोगों के सामने उन्हें कदापि अपमानित न करें, न ही बात-बात पर उन्हें झिड़कें।
* अच्छा काम करने पर उन्हें प्रोत्साहित अवश्य कीजिए।

—अंजलि गंगल