समाज का ज़रूरी हिस्सा हैं बेटियां

‘बेटी कुदरत का उपहार
न करो उसका तिरस्कार
जो बेटी को दे पहचान
माता-पिता वही महान।
बेटियां जो कि बहुत ही प्यारी और पापा की लाडली होती हैं। इनके बिना न तो समाज की कल्पना की जा सकती है और न ही संसार की। समाज का ज़रूरी हिस्सा हैं बेटियां। जहां घर में बेटे होते हैं वह घर भूत-बंगले की तरह लगता है मतलब सामान इधर-उधर बिखरा हुआ कोई मतलब नहीं कहां क्या रखना है क्या नहीं? बेटी वाला घर तो सुख-शांति से और प्यार से भरपूर होता है। एक बेटी पैदा होने से घर वालों को उनकी यानि माता-पिता की लाठी मिल जाती है। बेटा तो एक कुल को रोशन करता है, लेकिन बेटियां दो-दो कुलों को रोशन भी करती हैं और दोनों कुलों का सम्मान भी करती हैं। इस प्रकार हर वर्ष हमारे देश में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने के दो कारण है एक तो बेटी को आगे लाना, उसको मज़बूत बना, दूसरा इस दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इस दिन इंदिरा जी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं। इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज की लड़कियां हर क्षेत्र में आगे हैं। चाहे खेल हो, राजनीति हो, घर हो या अन्य कोई क्षेत्र। राष्ट्रीय खेलों में गोल्ड लाना हो या प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति का पदभार संभालना हो, लड़कियां कम नहीं हैं और न ही पीछे हैं। राष्ट्रीय बालिग दिवस मनाने का मुख्य कारण सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। लड़कियों को अन्य अवसर प्रदान करना है। असमानता को और लड़के-लड़की का भेद समाप्त करना है।लड़कियों को समाज द्वारा और खासकर घर वालों से तभी मान-सम्मान अधिकार मिलेंगे जब हम उनको खुले आसमान में उड़ने देंगे। उनको शिक्षित करेंगे, उनका आज सुधारेंगे, तभी भविष्य सुधरेगा। आज जब भी घर में लड़की पैदा होती है तो घर वालों को और कुछ याद आए न आए बस यही बोल याद आते हैं, ‘हाय! लड़की आ गई। अब इसकी शादी, शिक्षा, दहेज का भार उठाना पड़ेगा। लड़का होता तो अच्छा होता।’ यह समाज वालों की खासकर घर वालों और घर में विशेष कर बड़ों की पहली ख्वाहिश यही होती है ‘अगर वह मरने से पहले अपने पौत्र का मुंह देख लेती तो अच्छा था।’ जैसे इसको आगे जाकर पहले यही पूछेंगे अपने पौत्र का मुंह देखकर आई हो या नहीं।’ हमें अपनी बेटियों को आगे लाना चाहिए न कि ऐसी तुच्छ बातें विचार कर या बोलकर उनको पैदा होने से पहले मार देना चाहिए। लड़कियों को समाज से विभिन्न प्रकार के सामाजिक भेदभाव और शोषण से बचाना चाहिए। आज की लड़की खुद समझदार है, उनको अच्छे-बुरे की पहचान है। लड़की-लड़कों से भी आगे निकल सकती है अगर हर लड़की को सही मार्गदर्शन मिले। सहयोग मिले माता-पिता का साथ मिले। विवाह के बाद भी लड़कियां अपने माता-पिता का साथ नहीं छोड़ती। बेटा चाहे छोड़कर बाहर चला जाए या अपनी पत्नी के साथ अलग रहे। लेकिन बेटी को दोनों घर का ध्यान होता है। यदि हम समाज को आगे लाना चाहते हैं तो पहले समाज में हमें, आपको बल्कि इस पूरे विश्व को बेटी का सम्मान करना पड़ेगा। लड़की शिक्षित होगी तो आगे समाज शिक्षित होगा। बेटियां ही घर की रौनक, शान हैं। जो न तो शादी के बाद अपने माता-पिता को भूलती हैं और न उनका प्यार। बेटियों का सम्मान करो, उनको शिक्षित करो न कि उनका अपमान करो। बच्चियों की सुरक्षा ज़रूरी बच्चियों की सुरक्षा का मसला भारत में हमेशा ही एक बड़ा मुद्दा बना रहा है। महिलाओं एवं नाबालिग बच्चियों के साथ होने वाले अपराध की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देश का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहां महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं नहीं होती हैं। आलम यह है कि किशोर उम्र की लगभग एक तिहाई बच्चियां उत्पीडन होने की आशंका को लेकर हमेशा ही डरी रहती हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे सार्वजनिक स्थलों पर जायेंगी तो उनके साथ छेड़छाड़ की घटना हो सकती है। लगभग एक चौथाई लड़कियों को ऐसा लगता है कि सार्वजनिक स्थानों पर उनका शारीरिक शोषण किया जा सकता है अथवा उनके साथ दुष्कर्म भी हो सकता है।  एक गैर-सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रन की नई रिपोर्ट विंग्स 2018 में इन बातों का खुलासा किया गया है। संस्था ने वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स. ए स्टडी ऑन द पर्सेप्शन ऑफ गर्ल्स से टी इन पब्लिक प्लेस शीर्षक से जारी सर्वे में इस बात का भी उल्लेख किया है कि दो तिहाई से अधिक किशोर उम्र की लड़कियां सार्वजनिक स्थानों पर होने वाली छेड़छाड़ को घर में बताना नहीं चाहती हैं। उनको इस बात का डर होता है कि अगर उन्होंने ये बात अपने घर में बताई तो उनके घर से बाहर अकेले आने-जाने पर पाबंदी लग सकती है। इसी डर से वे अपनी परेशानियों को साझा भी नहीं करती हैं। हैरानी की बात तो यह है कि किशोर उम्र की हर तीसरी लड़की सार्वजनिक जीवन में डरी-सहमी रहती है, लेकिन उसके घरवालों या करीबी लोगों को ही इसका पता नहीं होता। शारीरिक उत्पीडन या फिर छेड़छाड़ की डर से किशोर उम्र की बच्चियां के मन में हमेशा ही डर और तनाव की स्थिति बनी रहती है, जो कई बार उनके मेंटल डिसऑर्डर के रूप में भी सामने आती है। ऐसी बच्चियां न तो खुलकर अपनी बात कह पाती हैं और न ही अपने साथ होने वाले शोषण का खुलकर विरोध कर पाती हैं। हमें समाज में बढ़ती ऐसी विकृतियों को रोकना चाहिए।