बेटियां हमेशा प्यारी बनी रहती हैं 

महिलाओं के साथ भेदभाव शताब्दियों से होता चला आया है। समाज हो या संस्कृति, घर हो या दफ्तर, कला का क्षेत्र हो या राजनीतिक सभी जगह, सभी हर समय पर इस भेद के अनेकानेक उदाहरण हमें दिखाई देते हैं। घरों में बेटियां और बेटों के पालन-पोषण में भी अंतर रखा जाता है। बेटी का पालन-पोषण ‘पराया’ धन के रूप में किया जाता है। सम्पत्ति अधिकारों में भी अक्सर भेदभाव की घटनायें सामने आती रही हैं, जिससे कई बार मामला अदालत तक पहुंच जाता है। हाल ही में पैतृक सम्पत्ति को लेकर देश के उच्चतम न्यायालय ने बेटियों के हक में एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के तहत बेटी भी सम्पत्ति में बराबर की हकदार है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि 9 सितम्बर, 2005 को कानून में संशोधन लागू होने के समय उसके पिता जीवित थे या नहीं या बेटी का जन्म 2005 से पहले हो चुका था। जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा कि बेटियां हमेशा प्यारी बेटियां रहती हैं।  बेटे तो बस विवाह तक ही बेटे रहते हैं। बेटियां पूरी ज़िन्दगी माता-पिता को प्यार देती हैं, जबकि बेटों की नीयत और व्यवहार विवाह के  बाद बदल जाते हैं। बेटियां कभी नहीं बदलतीं। दलअसल याचिका एक महिला ने दायर की थी, जिसके भाईयों की दलील थी कि पिता की मृत्यु कानून लागू होने से पहले 1999 को हो गई थी। ऐसी स्थिति में यह कानून लागू नहीं होता। कोर्ट ने  भाईयों की दलील खारिज कर दी। कोर्ट का यह फैसला कुछ अपीलों पर था, जिनमें एक अहम बखूबी मुद्दा उठाया गया था कि क्या हिन्दू उत्तराधिकारी (संशोधन) अधिनियम 2005 पिछले समय से लागू माना जाएगा। जस्टिस ने बताया कि बेटी पूरा जीवन हमवारिस रहेगी। भले ही पिता जीवित हो या नहीं। कोर्ट ने फैसले में कहा कि उत्तराधिकारी कानून 1956 की धारा 6 में वर्णित प्रावधान संशोधन से पहले या उसके बाद जन्मी बेटियों को बेटों के हमवारिस का दर्जा देता है। होता यह रहा है कि बेटी को मांगने पर अधिकार दिया नहीं जाता जब वह कानून की मदद लेती है, सब भाई कहते हैं कि वे तो मकान बेचना नहीं चाहते। केस कई साल तक  चलता रहा। परेशान होकर महिला को अपना हिस्सा भाईयों को ही बेचना पड़ता है। अब जैसे-तैसे बहन ने अपना हक तो प्राप्त कर लिया परन्तु क्या वह बहन-भाई का सम्बंध बचा पाई। यदि पिता जीवित है और बेटियों को उसका अधिकार देना चाहते हैं, तब इतनी मुश्किल नहीं आती परन्तु पिता के देहांत हो जाने पर केस दीवानी अदालत में करना पड़ता है। इस जहां में एक लड़की का जीवन संघर्ष उसे एक सम्मानजनक जगह तो दिलवा सकता है परन्तु घटिया पुरुष मानसिकता के आगे सभी कुछ आधारहीन हो जाता है। सुरीक्षा भाटी की खबर संभव है कि पाठकों तक पहुंची हो। यू.एस. में 4 करोड़ की स्कालरशिप पाने वाली लड़की जिसे तब भी सौभाग्यशाली नहीं कह सकते। वह कोरोना वायरस के चलते अपने घर आ गई थी। उत्तर प्रदेश से आती इस बेटी ने घर, परिवार, प्रदेश-देश सभी का नाम ऊंचा किया। वह ग्रेटर नोएडा से थी और मामा से मिलने जा रही थी। पढ़ाई में तेज़। 12 में 98 प्रतिशत नम्बर पाये थे, उसने  मामा के जहां जाते हुए बुलेट सवार कुछ असांस्कृतिक, मनचले लड़के छेड़खानी पर उतर आए। बार-बार ओवरटेक से गाड़ी पर नियंत्रण नहीं रहा और हादसा हो गया। सुरीक्षा की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सहयात्री चाचा अस्पताल में दाखिल है। वह छोटे घर से आई थी, बड़े सपने लेकर, जिन्हें पूरा करने की हिम्मत और योग्यता भी थी। उसके पिता ढाबा चलाकर घर का खर्च पूरा करते रहे।