बच्चों को सिखाएं हार को भी स्वीकारना

बच्चों का मन कोमल और भावुक होता है। उन्हें समझने की जरूरत है और माता पिता से बेहतर उन्हें कौन समझ सकता है। अपनी आकांक्षाओं को उन पर लादने के बजाय उनका मन टटोलें। लगातार मिलने वाली हार से परेशान बच्चा कई बार निरूत्साहित होकर प्रयास करना ही छोड़ देता है। डांट डपट उन पर उलटा असर करती है। जिद में आकर वे विद्रोह पर उतर आते हैं या डिप्रेस्ड रहने लगते हैं। अन्तर्मुखी बन जाते हैं।
बच्चे का व्यवहार देखें : किसी एक ही क्षेत्र में न उलझे रहें। बच्चे का व्यवहार उसकी प्रतिभा को परखें और तद्नुसार उसे आगे बढ़ाएं। क्या हुआ अगर वह डिबेट में अपना सिक्का नहीं जमा पाया। अगर आर्ट्स में वो अच्छा है, एक नन्हा सा आर्टिस्ट उसमें सर उठाए आगे बढ़ने को तत्पर है तो उसे ड्राइंग काम्पीटीशन में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। 
हर समय भाषण न दें : बच्चों को सबसे ज्यादा एलर्जी होती है मां बाप के अनवरत दिए जाने वाले प्रवचन तथा लेक्चर से। स्कूल में भी भाषण, घर पर भी भाषण। भले ही ये उनकी भलाई की खातिर दिए जाते हैं लेकिन बहुत ज्यादा भलाई फिर भलाई नहीं रह जाती जब इससे बच्चे का व्यक्तित्व ही आहत होने लगे।
बच्चे का मनोबल बढ़ाएं : कई बच्चे बेहद प्रतिभाशाली होते हैं। उनमें कई गुण छुपे होते हैं जिन्हें छुपे रूस्तम कहते हैं। कुछ इसी तरह लेकिन नेचर से कुछ शर्मीले और दब्बू किस्म के होने के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी आ जाती है। अपने से धाकड़ मगर प्रतिभा में शून्य सहपाठियों के आगे वे मात खा जाते हैं, सिर्फ इसलिए कि उनमें वो किलर इंस्टिंक्ट नहीं होती जो प्रतियोगिता जीतने के लिए जरूरी है।
(उर्वशी)