अपनी खूबियों की खुशबू बिखेरता चंदन का पेड़

 यूं तो दुनिया में शायद ही कोई ऐसा वृक्ष हो, जो इंसान के लिए किसी न किसी रूप में उपयोगी न हो। लेकिन जब बात भारतीय चंदन के पेड़ की आती है, तब तो यह सारा मामला ही खूबियों की खुश्बू का हो जाता है । दुनिया में और भी  बहुत से पेड़ों में खुश्बू पायी जाती है। लेकिन भारतीय चंदन जिसका वैज्ञानिक नाम सैंटलम ऐल्बम है, जैसी खुशबू दुनिया के किसी भी दूसरे पेड़ की लकड़ी में नहीं होती। शायद अपनी खुश्बू के कारण ही चंदन की लकड़ी धार्मिक और पूजनीय हो गई है। चंदन की तारीफ में कवियों ने न जाने कितनी कविताएं लिखी हैं और तुलसीदास का यह दोहा तो करोड़ों करोड़ लोगों की जुबान पर है।
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर
तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुवीर।
चंदन की लकड़ी बहुत महंगी होती है तो इसका एक कारण यह है कि चंदन के पेड़ बहुत कम हैं। इसके लिए सबसे ज्यादा मशहूर कर्नाटक के जंगल हैं। लेकिन चंदन के पेड़ इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इनमें मौजूद खुश्बू और औषधिय गुण बहुत ख़ास होते हैं। एक परिपक्व चंदन का पेड़ अपनी लकड़ी के कारण बीसियों लाख रूपये का होता है। यह एक सदाबहार वृक्ष है और इसका कोई पेड़ कम से कम 20 साल परिपक्व होने में लेता है। इसके बाद ही चंदन से वह लकड़ी प्राप्त की जाती है, जो खुश्बू से तन मन प्रसन्न कर देती है। चंदन के पेड़ का आकार जैसे जैसे बड़ा होता है और इसकी जड़ें पुरानी होती हैं, वैसे-वैसे इसमें सुगंधित तेल की मात्रा बढ़ती जाती है। चंदन का पेड़ आमतौर पर 18 से 20 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते अंडाकार तथा उनका अगला हिस्सा नुकीला होता है। चंदन में भूरे और बैंगनी रंग के फूल खिलते हैं तथा इसमें फल भी लगते हैं, जो गोल आकार के होते हैं।
 चंदन को संस्कृत श्रीखंड कहते हैं। चंदन की लकड़ी इतनी कीमती होती है कि उसे हीरा भी कहा जाता है। दुनिया में ऐसे लोगों की गिनती गिने चुने रईसों में होती है जिनके घर में चंदन का फनीर्चर होता है।
हिंदू धर्म में ज्यादातर धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां चंदन की लकड़ी के बिना पूरी नहीं होतीं। चंदन के तेल के अनगिनत उपयोग हैं, लेकिन इनका सबसे ज्यादा उपयोग सौंदर्य उत्पादों में किया जाता है। 
चंदन की लकड़ी और उसका तेल दुनिया के सभी विकसित देशों में विशेषकर निर्यात किया जाता है। इसके सबसे बड़े ग्राहक फ्रांस, जापान, अमरीका, इटली और सिंगापुर हैं। चंदन एक दुर्लभ वृक्ष है, अपनी कीमती लकड़ी के कारण यह हमेशा तस्करों की नज़र में रहता है। चंदन के तेल के कम से कम 20 से ज्यादा औषधिय उपयोग हैं। भारतीय परंपरा में संत महात्मा अपने माथे पर चंदन लगाते हैं, इसकी वजह यह है कि चंदन लगाने से मस्तिष्क शांत और शीतल रहता है। चंदन भारत के दस प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक वृक्षों में से एक है। लेकिन इसके उपयोग और फायदे धार्मिक व सांस्कृतिक होने से कहीं ज्यादा हैं।
चंदन जितना उपयोगी है, दिखने में भी उतना ही खूबसूरत और सुगंधित वृक्ष होता है। वैसे तो चंदन की पूरी दुनिया में करीब एक दर्जन प्रजातियां पायी जाती हैं। लेकिन भारतीय चंदन उनमें सबसे अच्छा है, सबसे ज्यादा सुगंधित और सबसे ज्यादा तेल वाला है। चंदन की लकड़ी पूजा पाठ में लगभग अनिवार्य होती है। इससे हवन और अगरबत्तियां भी बनती है, इसलिए चंदन बहुत कीमती होता। शायद दुनिया में चंदन गिने चुने पेड़ों में से एक होगा, जिसकी हर चीज काम की है, महत्वपूर्ण है और बाजार में कीमती है। चाहे वो उसकी लकड़ी हो, चाहे उसका तेल हो, चाहे वो उसकी पत्तियां हों, चाहे उसके फूल और फल हों। चंदन इसीलिए दुर्लभ वृक्ष है। लेकिन चंदन की इन धार्मिक सांस्कृतिक महत्ताओं से अलग उसकी पर्यावरणीय महत्ता भी है। चंदन भारत के गिने चुने सदाबहार वृक्षों में से एक है।
इसकी पत्तियां गोल और नुकीली होने के कारण ये अपने अंदर पानी संजोकर रखती हैं। इस लिहाज से यह धरती को हरीभरी रखने वाला पेड़ है। पहले चंदन सिर्फ  कर्नाटक के कुछ हिस्सों में पाया जाता था, लेकिन अब चंदन को कई जगहों पर सफलतापूर्वक उगाया गया है। हालांकि इसकी खुशबू कुछ कम और कर्नाटक के जंगलों वाले चंदन से अलग है। लेकिन अलग-अलग जगहों पर उगाये गये चंदन भी उतने ही उपयोगी हैं, जितने कर्नाटक के जंगल के चंदन हैं। अपनी धार्मिक महत्ता के कारण चंदन दुर्लभ पेड़ों में गिना जाता है।

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