इन्सान के जानते-समझते हुए भी  प्लास्टिक लिख रहा है धरती का शोकगीत

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

आगामी 5 जून 2023 को दुनियाभर के 143 देशों में 51वां विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जायेगा। इस साल इसकी थीम ‘रु बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ है। कोटे डि आइवर (पुराना नाम आइवरी कोस्ट),नीदरलैंड की साझेदारी में, इस बार विश्व पर्यावरण दिवस 2023 के कार्यक्रमों की मेजबानी कर रहा है। एक पखवाड़े पहले से ही दुनियाभर में होने वाले इन कार्यक्रमों की जोरशोर से तैयारियां शुरु हो गई हैं। राजनेताओं, पर्यावरण विशेषज्ञों और जिस किसी को भी लगता है कि उसके पास यह समझदारी है कि पर्यावरण बिगड़ रहा है तथा उसे बचाया जाना चाहिए, वे सब इस दिन अपने सुझावों और उपदेशों की बारिश कर देंगे। लेकिन अफसोस की बात यह है कि पर्यावरण को लेकर ये तमाम चिंताएं, ये गहमागहमी सिर्फ वैश्विक स्तर पर इस दिन को सेलिब्रेट करने तक ही सीमित रहेंगी। अगले दिन से हम फिर पर्यावरण को बिगड़ने से बचाने की तमाम अच्छी अच्छी बातें भूल जाएंगे। ये दोबारा तभी याद आएंगी, जब हम फिर से ऐसे ही किसी औपचारिक मंच पर होंगे।
यह सिलसिला साल 1973 से चल रहा है, जब पहली बार 5 से 16 जून तक दुनियाभर के बड़े-बड़े नेता, प्रभावशाली व्यक्तित्व, स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में इकट्ठे होकर धरती को इंसानी करतूतों से बचाने के लिए हर साल पर्यावरण दिवस मनाने का संकल्प किया था। उद्देश्य यही था कि पिछली आधी सदी में इंसान ने अपने अंधाधुंध दोहन, उपभोग और बेलगाम जीवनशैली के कारण धरती को जितना नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपायी की जाए और भविष्य के लिए ऐसे नियम कायदे बनाए जाएं कि कुदरत इंसानों का बोझ ढोते हुए लहूलुहान न हो। मगर मंच से हर साल सिर्फ रस्मी बातें ही होती रहीं। बिगड़ते पर्यावरण पर बार बार व्यक्त की गईं चिंताओं के बाद भी यह सिलसिला रूका नहीं बल्कि लगातार पर्यावरण की सेहत खराब ही हुई है। पर्यावरण दिवस महज एक रस्म अदायगी बनकर रह गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस दिन दुनियाभर के वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और राजनेताओं के द्वारा बिगड़ते पर्यावरण पर जो चिंताएं व्यक्त की जाती हैं, वे सब की सब सही और डराने वाली होती हैं। 
यह भी सही है कि आमतौर पर हर साल विश्व पर्यावरण दिवस की चुनी गई थीम बेहद सटीक और समस्या पर फोकस करने वाली होती है। लेकिन कोई ठोस काम नहीं होता। इस दिन बिगड़ते पर्यावरण को सुधारने के लिए नीतियां और कार्यक्रम तो एक से बढ़कर एक बनते हैं, लेकिन इन अच्छी अच्छी बातों, योजनाओं और सुझावों पर हकीकत में अमल नहीं होता। यही वजह है कि हर साल पर्यावरण को लेकर डराने वाली चिंताएं व्यक्त की जाती हैं, मगर पर्यावरण सलामत रहे, इसके लिए कुछ खास नहीं किया जाता। जो बड़ी-बड़ी रिपोर्टें और कार्यक्रम बनते हैं, वह भी एक किस्म की खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं होते। मसलन साल 2023 के लिए चुनी गई थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ बहुत मौजूं थीम है। एक तरह से यह आज के पर्यावरण की मुख्य समस्या के केन्द्र पर रख दी गई अंगुली है। क्याेंकि हम सब जानते हैं कि प्लास्टिक आज पूरी दुनिया के लिए नासूर बन चुका है। 
यह सिर्फ इस बार के पर्यावरण दिवस की थीम की बात ही नहीं है, दुनियाभर के पर्यावरणविद कहते हैं कि प्लास्टिक धरती के अस्तित्व के लिए बहुत ही खतरनाक है। यह अपने जहर से हर गुजरते दिन के साथ धरती का शोकगीत लिखने पर उतारू है। लेकिन सवाल है क्या हम विश्व पर्यावरण दिवस की थीम चुनकर दुनिया को प्लास्टिक से बचाने के लिए जो ज़रूरी कदम उठाये जाने चाहिए, वे उठा रहे हैं? व्यवहारिक सच्चाई के आईने में जवाब दें तो यह होगा नहीं। क्योंकि देखने में आ रहा है कि भले दुनियाभर की सरकारें प्लास्टिक की दिन रात आलोचनाएं करती हों, लेकिन दुनिया को प्लास्टिक से बचाने का शायद ही कोई कदम उठाती हों। यही कारण है कि आज दुनिया के हर कोने में प्लास्टिक पहुंच गया है। हद तो यह है कि समुद्र का कोई एक कोना भी ऐसा नहीं बचा जो प्लास्टिक से मुक्त हो। जबकि ठीक इन्हीं दिनों दुनिया के अनेक देशों की सरकारों ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की बात करती रही हैं, लगाया भी है और लोगों को इससे जागरूक बनाने की भी कोशिशें की हैं। लेकिन देखने में हर बार यही आता है कि बड़े-बड़े विश्व मंचों पर पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण दिवसों पर तो धरती को सेहतमंद बनाने के लिए, उसे प्लास्टिक मुक्त वातावरण प्रदान करने की बात कही जाती है, लेकिन कार्यक्रमों के बाद जिम्मेदार लोग इस सबको भूल जाते हैं। 
वैसे प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों के बारे में दुनिया को कोई पहली बार नहीं पता चला। पिछले चार पांच दशकों से हम सब इस बात को भलीभांति जानते हैं। हमें यह भी पता है कि आज धरती ही नहीं बल्कि समुद्र भी प्लास्टिक के जहरीले कचरे से पट गया है। भूमि और समुद्र के भीतर अरबों टन प्लास्टिक का कचरा जमा हो चुका है। फिर भी दुनिया में प्लास्टिक का इस्तेमाल आखिर बंद क्यों नहीं हो रहा? दूसरे देशों की तो छोड़िए, अपने यहां भी पिछले साल (1 जुलाई 2022) से सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। लेकिन हकीकत हम सबको पता है कि आज भी हम इन्हीं प्लास्टिक की थैलियों में दूध, फल और सब्जियां लाते हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक के पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद प्लास्टिक की थैलियां बाज़ार से जरा भी गायब नहीं हुई। सवाल है आखिर प्लास्टिक हमसे छूटती क्यों नहीं? यह हमारी इस कदर कमजोर कड़ी क्यों बनी हुई है? अपने अस्तित्व को भी दांव में लगाकर हम आखिर प्लास्टिक का इस्तेमाल करना क्यों नहीं छोड़ते? 
शायद इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हमारी आधुनिक जीवनशैली को सुविधाजनक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका प्लास्टिक थैलियों की ही है। हमें स्मार्ट बनाने में भी इनका बड़ा योगदान है। पिछले चार पांच दशकों में हमने अपनी जीवनशैली को जिस तरह ज्यादा से ज्यादा पोर्टेबल बना लिया है, उसके कारण प्लास्टिक हर कदम में मुख्य भूमिका में आ गई है। आज प्लास्टिक थैलियां हमारी हर तरह की पैकेजिंग का अहम हिस्सा हैं। नि:संदेह इसकी वजह यह है कि ये टिकाऊ होती हैं। प्लास्टिक कांच की तरह टूटता या कागज की तरह बिखरता नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्लास्टिक की थैलियों में जिन चीजों की पैकिंग की जाती है, उनमें इस पैकिंग के ऊपर लिखना भी बहुत आसान होता है। 
इस कारण प्लास्टिक थैलियां हम चाहकर भी नहीं छोड़ पा रहे। लेकिन एक तरफ इसकी सुविधाएं हैं, तो दूसरी तरफ इससे होने वाले जबरदस्त नुकसान भी हैं। क्योंकि प्लास्टिक सदियों तक नष्ट नहीं होता, इस कारण इससे सिर्फ हम इंसानों को ही नहीं बल्कि वनस्पतियों और वन्यजीवों को भी खतरा है। प्लास्टिक को तैयार करने में जिन रासायनिकों का इस्तेमाल किया जाता है, उनके जहर से जमीन, वनस्पति और पानी तीनों को नुकसान पहुंचता है। क्योंकि ये प्लास्टिक विभिन्न कार्बर्न इंधनों जैसे गैस, तेल और कोयले से तैयार होती है। यही वजह है कि यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती है। 
इसका इतना नुकसानदायक होना एक तरफ है तो दूसरी तरफ यह भी सच है कि इस प्लास्टिक ने हमारी जीवनशैली में जबरदस्त घुसपैठ की है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 5 दशकों में प्लास्टिक का इस्तेमाल दुनिया में 2000 प्रतिशत बढ़ा है। आज की तारीख में पैकेजिंग, बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, ट्रांसपोर्टेशन और इंडस्ट्रियल मशीनरी जैसे हर क्षेत्र में प्लास्टिक इस्तेमाल होता है। पिछले 50 सालों में धरती का कोई ऐसा कोना नहीं बचा, जहां प्लास्टिक न पहुंच गया हो। यहां तक कि नीदरलैंड में हुए कई शोधों से पता चला है कि इंसान के खून में भी प्लास्टिक के तत्व पहुंच चुके हैं। इसलिए वैज्ञानिक हमें चीख चीखकर चेतावनी दे रहे हैं कि प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद नहीं हुआ तो यह धरती के अंत का शोकगीत लिख देगी। 


-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर