वैज्ञानिकों को कैसे पता चला जानवर कलर ब्लाइंड होते हैं ?

‘दीदी, सांड लाल कपड़े को देखकर उस पर हमला करने का प्रयास क्यों करता है?’
‘यह तो मिथ है, सच बात नहीं है। वह लाल रंग पर नहीं बल्कि हिलते कपड़े को देखकर हमला करता है। कपड़ा अगर हिलाया न जाये तो सांड उस पर हमला नहीं करेगा।’
‘ऐसा क्यों?’
‘दरअसल, सांड क्या, कोई भी जानवर किसी रंग को नहीं देख सकता, क्योंकि वह कलर ब्लाइंड होते हैं। वैज्ञानिकों का ऐसा ही कहना है।’
‘वैज्ञानिकों को कैसे पता चला कि जानवर कलर ब्लाइंड होते हैं?’
‘वैज्ञानिकों ने जितने भी जानवरों पर प्रयोग किये उन सबको कलर ब्लाइंड पाया।’
‘मसलन?’
‘कुत्तों को इस तरह से ट्रेन किया गया कि जब भी कोई निश्चित संगीत बजाया जाये तो उसकी ध्वनि सुनकर उनके मुंह में पानी आ जाये। ऐसा इसलिए होता था कि वह नोट्स बजाने पर कुत्तों को खाना दिया जाता था। फिर इसी प्रकार का प्रयोग अलग-अलग रंगों के साथ किया गया। लेकिन फूड के सिग्नल के तौर पर कुत्तों के लिए एक रंग से दूसरे में अंतर करना असंभव हो गया। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि कुत्ते कलर ब्लाइंड होते हैं।’
‘यह तो कुत्तों की बात हुई...।’
‘इसी प्रकार का प्रयोग बिल्लियों के साथ भी किया गया। छह अलग-अलग रंगों की प्रतिक्रिया में अलग-अलग बिल्लियों को फूड के लिए ट्रेन करने का प्रयास किया गया। लेकिन बिल्लियां हमेशा अपने रंग और उन्हें दिखाए गये शेड्स ऑ़फ ग्रे में फर्क नहीं कर पाती थीं। इसलिए यह माना गया कि बिल्ली भी कलर ब्लाइंड होती है।’
‘तो क्या यह बात उन जानवरों पर भी लागू होती है जो मानव प्रजाति के अधिक करीब समझे जाते हैं?’
‘कुछ प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि बंदर और एप्स रंग देख सकते हैं।’
‘किस तरह से?’
‘उन्हें ट्रेन किया गया कि वह अपने फूड के लिए अलमारी के पास जायें जिसका दरवाज़ा खास रंग से पेंट किया गया था। वह उन दरवाज़ों के पास नहीं जाते थे जिनका अलग रंग था और जिनमें फूड नहीं था। लेकिन वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि अधिकतर जानवर कलर ब्लाइंड हैं, इस बारे में पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं। अधिक प्रयोगों की ज़रूरत है ताकि अतिरिक्त जानकारी मिल सके। घोड़ों पर किये गये प्रयोगों से मालूम हुआ कि वह शेड ऑ़फ ग्रे से हरे व पीले का अंतर बता सकते हैं, लेकिन वह लाल या नीले रंगों को नहीं पहचान सके।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर