सदी के सर्वश्रेष्ठ खलनायक प्राण के अनसुने किस्से

लीजेंडरी खलनायक और चरित्र अभिनेता प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान क्षेत्र में प्राण किशन सिकंद के रूप में हुआ था, लेकिन अपना एक्टिंग करियर उन्होंने 1940 में लाहौर में शुरू किया, जहां उन्होंने देश विभाजन से पहले लगभग 22 फिल्मों में काम किया, जो सभी 1947 से पहले रिलीज़ हुई थीं। आज़ादी के बाद वह बॉम्बे (अब मुंबई) आ गये, जहां उन्हें फिल्मों में काम पाने के लिए तकरीबन आठ माह तक संघर्ष करना पड़ा। प्राण की लेखक सादत हसन मंटो और एक्टर श्याम से दोस्ती थी। इन दोनों के सहयोग से ही उन्हें 1948 में देवानंद की फिल्म ‘ज़िद्दी’ में रोल मिला, जिसने दर्शकों को इतना प्रभावित किया कि प्राण ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और छह दशक के अपने लम्बे करियर में उन्होंने 350 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘राम और श्याम’, ‘उपकार’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘डॉन’, ‘ज़ंजीर’ आदि को विशेषरूप से याद किया जाता है।
हालांकि मनोज कुमार अपनी फिल्म ‘उपकार’ के ज़रिये प्राण को खलनायकी की दुनिया से निकालकर चरित्र अभिनेता के संसार में लेकर आये, लेकिन प्राण ने अपनी अमिट छाप नकारात्मक भूमिकाओं में ही छोड़ी, जिन्हें वह अपने अलग अलग गेट-अप व बोलने के अंदाज़ से अधिक दिलचस्प और प्रभावी बना दिया करते थे। 1950 व 1960 के दशकों में प्राण की एक्टिंग का दर्शकों पर इतना गहरा प्रभाव था कि पैरेंट्स अपने बच्चों के नाम ‘प्राण’ यह सोचकर नहीं रखते थे कि कहीं उनका बेटा बड़ा होकर बुरा आदमी न बन जाये। जिस तरह आपको रावण या कंस नाम के व्यक्ति नहीं मिलते उसी तरह प्राण नाम के लोगों को भी एक दौर में तलाश पाना कठिन हो गया था। यही वजह है कि प्राण को हिंदी फिल्मों का सर्वश्रेष्ठ खलनायक माना जाता है। लेकिन इस सबका एक दिलचस्प पहलू यह है कि प्राण ने सबसे पहले ‘सीता’ की भूमिका अदा की थी शिमला की रामलीला में। यह 1938 की बात है और आपको यह सुनकर ताज्जुब होगा कि उनके सामने ‘राम’ की भूमिका में एक अन्य चर्चित खलनायक मदन पुरी थे। 
प्राण ने अपने स्कूल के दिनों में थोड़ी बहुत हॉकी अवश्य खेली थी, लेकिन वह कभी अच्छे खिलाड़ी नहीं थे। बावजूद इसके जब वह 1947 में बॉम्बे आ गये तो खेलों में उनकी दिलचस्पी बहुत अधिक बढ़ गई। वह बॉम्बे के क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सदस्य बन गये और ब्रेबोन स्टेडियम में जो भी प्रमुख मैच होता था, उसे अपने दोस्त निर्माता-निर्देशक राम कमलानी के साथ देखने के लिए अवश्य जाते थे। दोनों सीसीआई पवेलियन की दो खास सीटों पर ही हमेशा बैठा करते थे और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह दोनों खास सीटें किसी अन्य के पास न चली जायें, प्राण सुबह 5 बजे से ही सीसीआई के बाहर टिकट की लाइन में लग जाते थे। क्रिकेट से प्राण को इतना अधिक लगाव हो गया था कि टेस्ट मैच के दौरान वह खेल के पांचों दिन सीसीआई में मौजूद रहते थे। वैसे हॉकी व फुटबॉल को लेकर भी उनमें ऐसी ही दीवानगी थी। यह दोहराने की आवश्यकता नहीं कि जिस दिन महत्वपूर्ण मैच होता तो प्राण शूटिंग नहीं करते थे। 
प्राण की फुटबॉल में दिलचस्पी अख्तर हुसैन की वजह से हुई थी। अख्तर हुसैन ने प्राण को अपनी फिल्म ‘प्यार की बातें’ में कास्ट किया था। लेकिन प्राण की समझ में यह नहीं आता था कि शाम के 4:30 बजते ही अख्तर पैकअप क्यों कर देते थे। मालूम हुआ कि अख्तर फुटबाल फैन थे और ‘द ग्लोब’ नामक उनका अपना क्लब भी था। वह इसलिए पैकअप कर दिया करते थे। प्राण ने कभी फुटबॉल मैच नहीं देखा था। इसलिए एक दिन जिज्ञासावश वह भी अख्तर के साथ मैच देखने चले गये। उन्हें फुटबॉल इतनी पसंद आयी कि वह भी नियमित मैच देखने के लिए जाने लगे और क्लब के अनेक खिलाड़ियों से दोस्ती की। फिर प्राण ने अपना फुटबॉल क्लब बनाने के लिए राज कपूर से बात की। अन्य फिल्मी हस्तियों के आर्थिक सहयोग से प्राण ने बॉम्बे डाइनेमोस फुटबॉल क्लब बनाया। यह नाम मास्को की चर्चित टीम से प्रेरित होकर रखा गया था। प्राण के क्लब के छह खिलाड़ियों ने महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया और इनमें से एक ने तो भारत के लिए ओलंपिक भी खेला।
प्राण ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड तीन बार जीता- 1967, 1969 व 1972 में। उनकी पहली फिल्म पंजाबी भाषा में ‘यमला जट’ (1940) थी। वह फोटोग्राफर बनना चाहते थे, लेकिन इस फिल्म के निर्माता से उनकी इत्तेफाक से मुलाकात हुई और किस्मत उन्हें फिल्मी संसार में ले गई। प्राण को 2001 में पद्मभूषण और 2013 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया। चूंकि वह अपनी बीमारी की वजह से दिल्ली नहीं जा सकते थे, इसलिए पहली बार ऐसा हुआ कि फाल्के अवार्ड किसी कलाकार को उसके घर पर दिया गया। सीएनएन ने 2010 में प्राण को एशिया के टॉप 25 एक्टर्स की सूची में शामिल किया था। प्राण को एक फिल्मी पत्रिका ने विलन ऑ़फ द मिलेनियम अवार्ड भी दिया। वह 90 के दशक में फिल्मों से रिटायर हो गये थे। लम्बी बीमारी के बाद प्राण का मुंबई में 12 जुलाई 2013 को निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर