पौष्टिक चारा और खाद का भंडार है सिरिस का पेड़

सड़कों के किनारे आपने कभी न कभी ज़रूर एक घनी छाया और छोटी पत्तियों वाला मध्यम आकार का पेड़ देखा होगा, जिसमें बारिश के बाद लंबी फलियां लगती हैं, जो दिसम्बर, जनवरी में पक जाती हैं और फरवरी, मार्च में पककर जमीन में गिर जाती हैं। यह सिरिस का पेड़ है, जो किसानाें के लिए बहुत ही उपयोगी है। क्योंकि इसकी पत्तियां पशुओं का बेहद पौष्टिक चारा होती हैं, खेतों की मेड़ पर मौजूद इस पेड़ की पत्तियां जब खेत में गिरकर सड़ती हैं, तो खेत की मिट्टी को ताकतवर खाद मिलती है। इसके बीज बहुत सी औषधियाें को बनाने के काम आते हैं। यह बाज़ार में अच्छी खासी कीमत पर बिकते हैं। इसका फूल, छाल, पत्ते या कहें पेड़ का हर हिस्सा इंसान के लिए उपयोगी है। 
यह मूलत: ऑस्ट्रेलिया, इंडो-मलाया और न्यू गिनी का स्थानीय पेड़ है, लेकिन वर्षों से भारत में होने के कारण अब इसका भारतीयकरण भी हो चुका है। इसका वैज्ञानिक नाम अल्बिजिया लेब्बेक है और इसे अल्बिजिया कुल में वर्गीकृत किया जाता है। आमतौर पर यह पेड़ 16 से 20 मीटर तक ऊंचा होता है, जबकि इसकी फलियां 10 से 30 सेंटीमीटर  लंबी और 2 से 4 सेंटीमीटर चौड़ी होती हैं। इसके फूल आमतौर पर सफेद और पीले होते हैं, इस पेड़ में बहुत औषधीय तत्व भी होते हैं। यह चरम रोग ठीक करता है, उच्चरक्त चाप या हाई ब्लडप्रेशर में भी यह फायदेमंद हैं। कहीं कहीं इसे शीत पुष्प के नाम से भी जानते हैं। वैसे यह पर्णपाती वृक्ष है यानी हर साल इसकी पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं, इसलिए यह खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत फायदेमंद होता है। 
भारत में तीन प्रकार के सिरिस के पेड़ पाये जाते हैं। काला और लाल सिरिस, पीला सिरिस और सफेद सिरिस। ये भेद उसके फूलों के हैं। यह आमतौर पर भारत के गर्म प्रदेशों में और पहाड़ी क्षेत्रों में 8 हजार की फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। सिरिस का मतलब बारिश का पेड़ होता है। भारत में इसकी ज्योतिषीय महत्ता भी है। माना जाता है भगवान शनि देव और हनुमानजी को इसके फूल चढ़ाने से वो जल्दी खुश होते हैं। सिरिस का पेड़ बहुत उपयोगी होता है, खास तौर पर किसानों के लिए। गर्मियों में देश के जिन इलाकों में 48 से 52 डिग्री तक तापमान रहता है और बहुत ठंड नहीं पड़ती, उन इलाकों के लिए यह बिल्कुल आदर्श पेड़ है। भारत में यह अंग्रेजों द्वारा तब लोकप्रिय पेड़ बना, जब उन्होंने इसे चाय और काफी बागान में छाया के लिए लगाया। वैसे यह भारत के 70 से 75 प्रतिशत भू-भाग में पाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, आंध्रप्रदेश, तेलगाना आदि में यह बहुतायत में पाया जाता है। गहरी काली और दोमट मिट्टी सिरिस के पेड़ के लिए सबसे अच्छी होती है। यह उन जगहों पर बहुत आसानी से होता है, जहां की मिट्टी से जल निकासी की सुविधा बहुत अच्छी होती है।
किसानों के लिए यह खास तौर पर फायदेमंद पेड़ है, इसके फूल, पत्तियां और फल सबकुछ किसानों को समृद्ध करते हैं। इसमें आमतौर पर सफेद और पीले रंग के फूल अप्रैल मई में आते हैं और अगस्त तक फलियां विकसित हो जाती हैं। अक्टूबर तक फलियां हरे रंग की होती हैं और नवम्बर, दिसम्बर तक ये पीली हो जाती है। जनवरी, फरवरी में ये फलियां पेड़ से टूटकर गिरने लगती हैं। सिरिस के पेड़ को सबसे ज्यादा विस्तार इसकी टूटकर गिरी फलियों के बीजों से मिलता है, क्योंकि इन बीजों से नये सिरिस के पेड़ उगते हैं। इसके बीज बहुत उपयोगी होते हैं। इसके बीजों को कीटनाशी कैमिकल से उपचारित करके एयर टाइट डिब्बे में रखना चाहिए, वरना इसके बीजों में कीड़े लग जाते हैं और ये खराब हो जाते हैं। इसके बीजों को प्लास्टिक के बैग में फरवरी, मार्च में उगा लेना चाहिए और सावधानीपूर्वक उन्हें खेतों की मेड़ों पर लगाना चाहिए। क्योंकि इसके पेड़ की छाया खेत की फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती और खेत में टूटकर गिरी इसकी पत्तियां उसे उपजाऊ बनाती हैं।  एक मध्यम आकार का सिरिस का पेड़ हर साल किसान को बहुत मामूली सी देखरेख में 10 से 15 हजार रुपये का चारा, लकड़ी और खाद दे देता है। जबकि इसके फूल, छाल और बीजों के औषधीय लाभ अतिरिक्त हैं।

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